Hindu Dharma: ऋषि, मुनि, साधु, संत और संन्यासी होते हैं जो भगवान की भक्ति में लीन रहते हैं. लोग अक्सर इन सभी में अंतर नहीं कर पाते हैं. लोग ऋषि, मुनि, साधु, संत और संन्यासी में अंतर नहीं कर पाते हैं. यह सभी ज्ञान और साधना से समाज कल्याण के लिए काम करते हैं. लेकिन इन सभी में खास अंतर होता है. आपको बता दें, कि इन सभी का कार्य, आध्यात्मिक ज्ञान, रहन-सहन बिल्कुल अलग होता है. इसे के आधार पर इनमें अंतर किया जाता है. चलिए इन सभी में क्या अंतर होता है जानते हैं.
ऋषि, मुनि, साधु, संत और संन्यासी में क्या अंतर होता है?
ऋषि वह होते हैं जो कठिन तपस्या कर ब्रह्मांडीय सत्य और वेदों के मंत्रों का ध्यान करते हैं. ऋषियों को मंत्रद्रष्टा भी कहते हैं. मुनी वह होते हैं जो गहन मौन, साधना और ध्यान में लीन रहते हैं. यह अनावश्यक वाणी और चीजों से दूर रहकर मन को ईश्वर की प्रार्थना में लगाते हैं. जो सांसारिक मोह का त्याग कर सेवा, धर्म और भक्ति का मार्ग को अपनाते हैं वह साधु होते हैं. संत सत्य और ईश्वार का प्रत्यक्ष अनुभव कर उसे प्रेम और भक्ति के रूप में समाज तक पहुंचाते हैं. संन्यासी वह होते हैं जो परिवार, धन और पद का त्याग कर अपना जीवन व्यतीत करते हैं.
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ज्ञान, रहन-सहन और कार्य
ऋषियों को ग्रंथों की रचना और शोध करने के लिए जाना जाता है. यह कठिन तपस्या कर ग्रंथों की रचना करते हैं. मुनी का संबंध मौन शब्द से है. यह यह शांत रहते हैं और कम बोलते हैं. यह जीवन में सुख की इच्छा नहीं करते हैं. भय और क्रोध से रहित जीवन जीते हैं. साधु एकांत में या कई बार समाज में रहकर साधना करते हैं. यह काम, क्रोध, लोभ से मुक्त रहते हैं. संत हमेशा शांत रहते हैं. यह वाणी से और हर स्थिति से शांत रहते हैं. यह अपनी भूख प्यास पर नियंत्रण करते हैं और इच्छाओं रहित जीते हैं. संन्यासी अपना जीवन भिक्षा मांगकर और तपस्या में लीन रहकर बीताते हैं.
डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है. News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है.