Most Popular Gita Shloka: श्रीमद्भगवद्गीता केवल एक आध्यात्मिक ग्रंथ नहीं बल्कि जीवन-प्रबंधन का सर्वोत्तम मार्गदर्शन है. महाभारत के युद्धभूमि में अर्जुन को दिया गया श्रीकृष्ण का उपदेश आज हर व्यक्ति के लिए उतना ही उपयोगी है जितना उस समय था. जीवन की उलझनों, दुख, निर्णय, कर्तव्य और मन के उतार-चढ़ाव में गीता अद्भुत प्रकाश देती है. आइए गीता जयंती पर अर्थ सहित जानें, वे 10 लोकप्रिय और अत्यंत प्रेरक श्लोक, जो मनुष्य को भीतर से मजबूत बनाते हैं. आइए जानते है, ये चुनिंदा श्लोक कौन-से हैं?
1. धर्म के संकट में ईश्वर का अवतार
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽअत्मानं सृजाम्यहम्॥
(अध्याय 4, श्लोक 7)
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इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि जब-जब धर्म का ह्रास होता है और अधर्म बढ़ता है, तब मैं स्वयं अवतार लेकर धर्म की स्थापना करता हूं. यह संदेश हमें यह विश्वास देता है कि सत्य और धर्म कभी नष्ट नहीं होते हैं.
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2. सज्जनों की रक्षा और दुष्टों का विनाश
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥
(अध्याय 4, श्लोक 8)
भगवान कहते हैं कि मैं धर्म की स्थापना, सज्जनों के कल्याण और दुष्टों के नाश के लिए प्रत्येक युग में जन्म लेता हूं. यह श्लोक हमें जीवन में अच्छाई की ओर बढ़ने की प्रेरणा देता है.
3. आत्मा अमर और अजेय है
नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः॥
(अध्याय 2, श्लोक 23)
यह श्लोक बताता है कि आत्मा को न तो शस्त्र काट सकते हैं, न आग जला सकती है, न पानी भिगो सकता है और न हवाएँ सूखा सकती हैं.आत्मा शाश्वत और अजर-अमर है.
4. युद्ध में निष्काम भाव से कर्तव्य निभाएं
हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्।
तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः॥
(अध्याय 2, श्लोक 37)
भगवान कहते हैं कि युद्ध में यदि अर्जुन वीरगति प्राप्त करते हो तो स्वर्ग मिलेगा और यदि जीतते हो तो पृथ्वी का सुख भोगेगे. इसलिए कर्म निष्ठा और दृढ़ निश्चय से कार्य करो, फल की चिंता मत करो.
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5. कर्म करो, फल की चिंता मत करो
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
(अध्याय 2, श्लोक 47)
यह गीता का अत्यंत महत्वपूर्ण श्लोक है. हमारा अधिकार केवल कर्म पर है, फल पर नहीं. कर्म को फल के लिए मत करो और कार्य में आसक्ति न रखो.
6. विषयों पर मन टिकना आसक्ति लाता है
ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।
सङ्गात्सञ्जायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥
(अध्याय 2, श्लोक 62)
मन यदि बार-बार किसी वस्तु या विषय पर लगा रहे, तो उससे आसक्ति पैदा होती है. आसक्ति से इच्छा और इच्छा के विफल होने पर क्रोध जन्म लेता है.
7. क्रोध से मनुष्य का पतन
क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः।
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥
(अध्याय 2, श्लोक 63)
क्रोध से भ्रम और मति का ह्रास होता है। जब बुद्धि नष्ट हो जाती है, तो व्यक्ति अपने ही नाश का कारण बन जाता है.
8. श्रेष्ठ पुरुष का आचरण समाज का मार्गदर्शन
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥
(अध्याय 3, श्लोक 21)
जो श्रेष्ठ पुरुष करता है, वही समाज के लिए आदर्श बनता है. इससे यह स्पष्ट होता है कि हमारे कर्म दूसरों पर प्रभाव डालते हैं.
9. श्रद्धा, संयम और ज्ञान का समन्वय
श्रद्धावान् लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥
(अध्याय 4, श्लोक 39)
श्रद्धा और इंद्रियों पर संयम रखने वाला व्यक्ति ज्ञान प्राप्त करता है. ज्ञान मिलने पर उसे परम शांति प्राप्त होती है.
10. सभी धर्म छोड़कर मेरी शरण में आओ
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥
(अध्याय 18, श्लोक 66)
भगवान कहते हैं कि सभी धर्म और आश्रय छोड़कर मेरी शरण में आओ. मैं तुम्हें सभी पापों और संकटों से मुक्त कर दूंगा, इसलिए शोक मत करो.
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