आग उगलने वाला राक्षस अनलासुर
सतयुग के समय की बात है। उस समय देव और दानवों में भयंकर युद्ध होता है। ऐसे समय में धरती पर हर जगह राक्षसों का आतंक फैला हुआ था। राक्षसों के अत्याचार से देवता और ऋषि-मुनि सभी दुखी और परेशान थे। राक्षसों में भी एक राक्षस अनलासुर ने हाहाकार मचा रखा था। वह ऋषि-मुनियों और मनुष्यों को जिंदा निगल जाता था और मुंह से ‘अनल’ यानी आग की लपटें फेंकता था। इसलिए उसे अनलासुर कहते थे।भगवान शिव ने कही ये बात
अनलासुर राक्षस के आतंक से धरती ही नहीं स्वर्ग लोक में भी हाहाकार मचा था। सभी देवतागण उससे बहुत ज्यादा डरते थे। जब अनलासुर के दुष्ट काम और अत्याचार से मनुष्य, देवतागण, ऋषि-मुनि सभी परेशान हो गए थे, तब वे अनलासुर से मुक्ति पाने भगवान शिव के पास पहुंचे। देवताओं और ऋषि-मुनियों ने गुहार लगाईं, “हे त्रिकालदर्शी महादेव! अनलासुर के आतंक से पूरी सृष्टि त्राहिमाम कर रही है, हमें उससे निजात दिलाएं प्रभो।” इस पर महादेव शिव ने कहा, “हे देवगण और ऋषि-मुनि! अनलासुर का विनाश केवल गणेश ही कर सकते हैं, इसलिए आप लोग उन्हीं के पास जाएं।”भगवान गणेश ने अनलासुर का किया ये हाल
[caption id="attachment_857805" align="alignnone" ]श्री गणेश और अनलासुर में हुआ भयानक युद्ध
कहते हैं कि भगवान श्री गणेश ने जब अनलासुर ललकारा, तो उसने भगवान गणपति को निगलना चाहा लेकिन सफल नहीं हुआ। फिर उन दोनों के बीच बहुत भयानक युद्ध हुआ। अनलासुर बार-बार अपने मुंह से आग की लपटें श्री गणेश पर फेंकता था, जिससे भगवान गणेश को क्रोध आ गया और उन्होंने अनलासुर को पकड़ा जिंदा निगल लिया।भगवान गणेश की पीड़ा
भगवान गणेश एक पेट में जाने के बाद भी अनलासुर ने आग उगलना बंद नहीं किया। हालांकि कुछ समय बाद अनलासुन का अंत हो गया। लेकिन इसके बाद श्री गणेश के पेट में जलन और पीड़ा होने लगी। इस जलन को ठीक करने के लिए देवताओं और ऋषि-मुनियों ने कई उपचार खोजे लेकिन किसी उपचार से लाभ नहीं हुआ। भगवान गणेश की पीड़ा को देख सभी दुखी और व्यथित थे।दूर्वा की 21 गांठ से हुआ कमाल!
ऋषि-मुनियों ने अनलासुर के अंत और भगवान गणेश की पीड़ा के बारे में कश्यप ऋषि को बताया। कहते हैं कि इसके बाद कश्यप ऋषि ने पेट की जलन से पीड़ित भगवान श्री गणेश को दूर्वा यानी दूब घास की 21 गांठ खाने के लिए दी थीं। दूर्वा की पत्तियां खाने से श्री गणेश के पेट की जलन शांत होने लगी और फिर पूरी तरह ठीक हो गई। मान्यता है कि पेट की जलन शांत होते ही दूर्वा घास गणेशजी की प्रिय हो गई। इससे प्रसन्न होकर उन्होंने कहा कि आज के बाद जो भी उन्हें दूर्वा घास चढ़ाएगा, वे उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी करेंगे। मान्यता है कि तभी से भगवान श्री गणेश को दूर्वा घास चढ़ाने की परंपरा चली आ रही है। ये भी पढ़ें: Numerology: मां लक्ष्मी इन 4 मूलांकों की तारीखों में जन्मे लोगों पर रहती हैं मेहरबान, इनमें कहीं आप भी तो नहीं!
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