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Chitragupta Puja 2025: आज है चित्रगुप्त पूजा, जानिए इसका महत्व और पूजन का शुभ मुहूर्त

Chitragupta Puja 2025: चित्रगुप्त पूजा आज यानी 23 अक्टूबर को मनाई जा रही है। आइए जानते हैं, चित्रगुप्त पूजा को कलम-दवात पूजा और कर्मों का लेखा-जोखा क्यों कहा जाता है और चित्रगुप्त पूजा का महत्व क्या है?

Chitragupta Puja 2025: चित्रगुप्त महाराज हिन्दू धर्म में एक ऐसेदेवता हैं जिन्हें यमराज के सचिव या लेखाकार के रूप में जाना जाता है। उनके पास हर जीव के अच्छे और बुरे कर्मों की पूरी जानकारी होती है, जिसे मृत्यु के बाद यमराज के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार, चित्रगुप्त जी को भगवान ब्रह्मा के ‘मन से उत्पन्न’ पुत्र माना गया है। यह भी मान्यता है कि वे कलम-दवात लेकर जन्मे पहले देवता हैं। इसीलिए वे लेखकों, शिक्षकों, बुद्धिजीवियों और न्यायप्रिय लोगों के आदर्श देवता माने जाते हैं।

कायस्थ समाज के सबसे खास देवता

मान्यता है कि कायस्थ समाज की उत्पत्ति चित्रगुप्त जी से हूई है। इसलिए भारत का कायस्थ समाज चित्रगुप्त महाराज को अपना सबसे खास देवता मानते हैं। इस समाज द्वारा हर साल चित्रगुप्त पूजा को 'कलम-दवात पूजा' के रूप में मनाया जाता है। इस दिन कलम-दवात, खाते-बही, कागज-पेन की पूजा की जाती है। इस पूजा को धर्म और कर्म के लेखा-जोखा का पर्व भी कहा जाता है।

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चित्रगुप्त पूजा का महत्व

चित्रगुप्त महाराज कर्मों का हिसाब-किताब रखते हैं। इसलिए चित्रगुप्त पूजा हमें अपने कर्मों का स्मरण करवाता है और यह पूजा हमें अपने कर्मों के प्रति सजग रहने और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है। चूंकि चित्रगुप्त जी कलम और बुद्धि के देवता माने जाते हैं, इसलिए विद्यार्थी, लेखक, और शिक्षा से जुड़े लोग इस दिन विशेष पूजा करते हैं। इस दिन नया हिसाब शुरू करने की भी परंपरा है, लिहाजा व्यापारी वर्ग इस दिन नई बहीखातों की शुरुआत करते हैं।

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चित्रगुप्त पूजा का शुभ मुहूर्त

चित्रगुप्त पूजा हर साल दीपावली के दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल द्वितीया यानी भाई दूज के दिन मनाई जाती है। साल 2025 में कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि बुधवार 22 अक्टूबर की शाम में 08:16 PM बजे शुरू होगी और इसका समापन गुरुवार 23 अक्टूबर को रात में 10:46 पी एम बजे होगा। इस साल चित्रगुप्त पूजा कल यानी 23 अक्टूबर को मनाई जाएगी।

पूजा का शुभ मुहूर्त: दोपहर बाद 01:13 PM से 03:28 PM तक

मस्याधार पूजा भी कहते हैं इसे

दवात को संस्कृत में 'मस्याधार' कहा जाता है। मस्याधार यानी मसि अर्थात स्याही का आधार, इस प्रकार वह पात्र जो स्याही को संजोए। चित्रगुप्त जी, जो लेखनी और ज्ञान के प्रतीक हैं, उनकी पूजा में कलम-दवात का विशेष महत्व होता है। इसलिए यह पर्व 'मस्याधार पूजा' के नाम से भी प्रसिद्ध है। मस्याधार को ज्ञान, विवेक, न्याय और लेखन की शक्ति का प्रतीक माना गया है।

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है और केवल सूचना के लिए दी जा रही है. News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है.


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