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Chandra Grahan 2025: ग्रहण के सूतक काल में बंद क्यों होते हैं मंदिर? इसके पीछे क्या हैं लोगों की मान्यताएं

Chandra Grahan 2025 Why most Temples close during Sutak: चंद्रग्रहण से 9 घंटे पहले शुरू होने वाले सूतक काल में हिंदू मंदिरों के कपाट बंद क्यों होते हैं? इसके पीछे अलग-अलग मान्यताएं हैं। कोई इसे राहु-केतु से जोड़ता है तो कोई ब्रह्मांड की नेगेटिव एनर्जी से। जानें मान्यताएं।

Chandra Grahan 2025 Why most Temples close during Sutak: चंद्रग्रहण के सूतक काल में मंदिरों के कपाट बंद क्यों होते हैं? हिंदू धर्म में इसके पीछे कई रीति-रिवाज, मान्यताएं और परंपराएं हैं, जो सदियों से चली आ रही हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार सूतक को धार्मिक रूप से अशुद्ध समय माना जाता है और कई धार्मिक गतिविधियां रोक दी जाती हैं। ग्रहण के बाद मंदिरों को जनता के लिए फिर से खोलने से पहले शुद्ध किया जाता है। कुछ मान्यताओं के अनुसार, ग्रहण के दौरान देवताओं के आसपास का विशेष ऊर्जा क्षेत्र कमजोर हो सकता है। मंदिर को बंद करने से दिव्य स्वरूपों की रक्षा होती है।

मंदिरों के बंद होने के 5 अहम कारण

  • मंदिरों को पवित्र स्थान माना जाता है और ग्रहण को अशुभ घटना माना जाता है, इसलिए ग्रहण के सूतक काल में मंदिरों के कपाट बंद रहते हैं।
  • ऐसा माना जाता है कि मंदिरों के कपाट को बंद करने से देवताओं को ग्रहण से जुड़ी नेगेटिव एनर्जी से सुरक्षा मिलती है।
  • ऐसा माना जाता है कि ग्रहण के दौरान पूजा करने से नेगेटिव एनर्जी मिलतीहै, इसलिए मंदिरों को बंद करने से इससे बचाव में मदद मिलती है।
  • स्कंद पुराण जैसे कुछ हिंदू धर्मग्रंथ ग्रहण के दौरान मंदिरों को बंद रखने की सलाह देते हैं।
  • यह प्रथा सदियों से चली आ रही है और कई मंदिर इस परंपरा को रीति-रिवाज के रूप में जारी रखे हुए हैं।

विज्ञान की नजर से, क्यों लगते हैं ग्रहण?

खगोलीय दृष्टिकोण से चंद्र ग्रहण तब होता है जब पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच आ जाती है और चंद्रमा पर छाया डालती है। सूर्य ग्रहण तब होता है जब चंद्रमा सूर्य के सामने आ जाता है और पृथ्वी पर छाया बनाता है। हालांकि ये घटनाएँ प्राकृतिक हैं और हम इनकी भविष्यवाणी कर सकते हैं, लेकिन इनकी नाटकीय प्रकृति के कारण, कई सभ्यताओं ने इन्हें रहस्यमय और अंधविश्वासी महत्व दिया है।

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पौराणिक कथा से जानें, क्यों लगते हैं ग्रहण?

हिंदू पौराणिक कथाओं में ग्रहण को राहु और केतु की कथा से समझाया गया है। किंवदंतियों के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान, राहु नामक राक्षस ने अमरता का अमृत पीने के लिए भगवान का रूप धारण किया था, लेकिन सूर्य और चंद्रमा ने उसे पकड़ लिया और भगवान विष्णु को इसकी सूचना दी। क्रोधित होकर विष्णु ने राहु का सिर काटकर उसका वध कर दिया, लेकिन अमृतपान करने के कारण उसका सिर और शरीर अमर हो गए। शरीर को केतु और सिर को राहु कहा गया है, इसलिए राहु और केतु अपने कभी न खत्म होने वाले क्रोध में समय-समय पर सूर्य और चंद्रमा को निगल जाते हैं, इसीलिए ग्रहण होते हैं।

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आधुनिक समाज की बदलती सोच

आधुनिक समय में, कुछ हिंदुओं ने ग्रहणों की पारंपरिक मान्यताओं और अनुष्ठानों पर सवाल उठाए हैं। जैसे-जैसे विज्ञान उन्नत होता जा रहा है और खगोलीय घटनाओं की बेहतर समझ विकसित हो रही है, कई लोग इसे केवल एक प्राकृतिक घटना मानते हैं, जिसका अध्यात्म से कोई संबंध नहीं है। हालांकि, इसका मौलिक सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व अभी भी प्रभावशाली बना हुआ है, और कई मंदिर अपनी परंपराओं को आज भी कायम रखे हुए हैं।

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