Bhishma Panchak 2025: 'पंचक' शब्द का अर्थ है, 'पांच दिनों की एक विशेष अवधि.' हिंदू पंचांग में महीने के अंतिम 5 दिनों को पंचक कहा जाता है. सामान्यतः यह समय अशुभ माना जाता है. प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, इन दिनों में विवाह, गृहप्रवेश या नए कार्य आरंभ करने जैसे मांगलिक कामों से बचा जाता है. हालांकि हर पंचक अशुभ नहीं होता है. कुछ विशेष महीनों में आने वाले पंचक अत्यंत शुभ और पुण्यदायी माने गए हैं. आपको बता दें कि जब पंचक का संबंध किसी धार्मिक घटना या देव उपासना से होता है, तो वह पवित्र और कल्याणकारी बन जाता है.
भीष्म पंचक क्या है?
भीष्म पंचक, जिसे विष्णु पंचक भी कहते हैं, कार्तिक मास के अंतिम 5 दिन होते हैं. इसे 'पंच भीखम' या 'पंचभीका' भी कहा जाता है. इस अवधि में लोग व्रत, पूजा-पाठ और दान करते हैं, जिससे पूरे कार्तिक मास का व्रत करने का लाभ मिलता है. यह व्रत महाभारत के भीष्म पितामह के सम्मान में किया जाता है, जिन्हें महाभारत युद्ध के बाद श्री कृष्ण ने ज्ञान देने के लिए कहा था. कहते हैं, यह ज्ञान एकादशी से पूर्णिमा तक 5 दिनों तक चला. इन दिनों में भगवान विष्णु की पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है.
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कब से कब तक भीष्म पंचक 2025?
भीष्म पंचक हर साल कार्तिक मास खत्म होने के पांच दिन पहले शुरू होता है और इस माह की पूर्णिमा के दिन समाप्त होता है. इस बार 2025 में भीष्म पंचक व्रत 1 नवंबर से शुरू होगा और 5 नवंबर को समाप्त होगा.
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भीष्म पंचक को क्यों मानते है पवित्र?
कार्तिक मास के अंतिम 5 दिनों में पितामह भीष्म ने अपनी देह त्यागने से पहले उपवास किया था. यह चातुर्मास के अंत में आता है, जिसे मोक्ष की प्राप्ति के लिए शुभ माना जाता है. मुख्य रूप से भीष्म पंचक व्रत भीष्म पितामह के स्मरण में मनाया जाता है. माना जाता है कि जो लोग पूरे कार्तिक मास का व्रत नहीं कर पाते, उन्हें भीष्म पंचक का व्रत करने से पूरे महीने का पुण्य मिल जाता है.
भीष्म पंचक में क्या करें, क्या नहीं?
मान्यता है कि यदि कोई व्यक्ति पूरे कार्तिक मास का व्रत नहीं कर पाता, तो भीष्म पंचक के इन 5 दिनों के व्रत से उसे पूरे मास के व्रत का पुण्यफल प्राप्त होता है. आइए जानते हैं, इस पंचक के अवधि में क्या करें और क्या नहीं?
क्या करें:
- सुबह ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करें और मन को शुद्ध करके व्रत का संकल्प लें.
- भगवान विष्णु और तुलसी माता की श्रद्धापूर्वक पूजा-अर्चना करें.
- ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः’ मंत्र का जप करें और संभव हो तो विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें.
- पूरा दिन संयम और सात्विकता के साथ व्यतीत करें. एक समय हल्का भोजन या फलाहार करें.
- व्रत के दौरान वस्त्र, अन्न, जल, तिल और दक्षिणा का दान अवश्य करें, क्योंकि यह पुण्यफल को कई गुना बढ़ा देता है.
क्या नहीं करें:
- इस अवधि में झूठ-मिथ्या, चतुराई-धोखा, क्रोध इत्यादि से दूर रहना चाहिए.
- इस दौरान तामसिक भोजन, अनाज का अधिक सेवन या आपाधापी वाला आहार टालें.
- इस समय में नए महत्वपूर्ण काम, जैसे विवाह आदि करना, पारंपरिक रूप से टालने की सलाह दी जाती है.
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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है और केवल सूचना के लिए दी जा रही है. News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है.