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Yamraj Ji Ki Aarti | धर्मराज कर सिद्ध काज प्रभु में शरणागत हूं तेरी… भाई दूज पर जरूर पढ़ें यमराज जी की आरती

Yamraj Ji Ki Aarti in Hindi: सनातन धर्म में मृत्यु के देवता के रूप में पूजे जाने वाले यमराज की आराधना का खास महत्व है, जिनकी नियमित रूप से आरती करना भी शुभ होता है. मान्यता है कि जो लोग नियमित रूप से यमराज की पूजा-अर्चना करते हैं, उन्हें अकाल मृत्यु के भय, रोजाना हो रही दुर्घटनाओं, खराब सेहत और दरिद्रता से मुक्ति मिलती है. चलिए अब जानते हैं यमराज की सही और संपूर्ण आरती के बारे में.

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Yamraj Ji Ki Aarti Lyrics in Hindi: महाभारत काल में धृतराष्ट्र-पांडु के भाई और कौरवों-पांडवों के चाचा विदुर थे, जिन्हें कलयुग में यमराज, धर्मराज, मृत्यु के देवता, अंतक, काल और चित्रगुप्त के नाम से जाना जाता है. यमराज आत्मा को शरीर से अलग करते हैं और उसे उसके कर्मों के अनुसार स्वर्ग या नर्क में पहुंचाते हैं.

देश के कई राज्यों में यमराज को समर्पित मंदिर हैं, जहां रोजाना उनकी पूजा-अर्चना की जाती है. जो लोग नियमित रूप से यमराज की पूजा नहीं कर पाते हैं, उन्हें नरक चतुर्थी और भाई दूज के दिन पूजन जरूर करना चाहिए. मान्यता है कि जिन लोगों को यमराज की विशेष कृपा प्राप्त होती है, उन्हें अकाल मृत्यु के भय, दुर्घटनाओं और मानसिक तनाव से मुक्ति मिलती है. जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है और दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है. हालांकि, यमराज की पूजा उनकी आरती के बिना अधूरी होती है. चलिए अब जानते हैं यमराज की आरती के सही लिरिक्स के बारे में.

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यमराज जी की आरती (Yamraj Ji Ki Aarti in Hindi)

धर्मराज कर सिद्ध काज, प्रभु मैं शरणागत हूँ तेरी।
पड़ी नाव मझदार भंवर में, पार करो, न करो देरी॥
॥ धर्मराज कर सिद्ध काज..॥

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धर्मलोक के तुम स्वामी, श्री यमराज कहलाते हो।
जों जों प्राणी कर्म करत हैं, तुम सब लिखते जाते हो॥

अंत समय में सब ही को, तुम दूत भेज बुलाते हो।
पाप पुण्य का सारा लेखा, उनको बांच सुनते हो॥

भुगताते हो प्राणिन को तुम, लख चौरासी की फेरी॥
॥ धर्मराज कर सिद्ध काज..॥

चित्रगुप्त हैं लेखक तुम्हारे, फुर्ती से लिखने वाले।
अलग अगल से सब जीवों का, लेखा जोखा लेने वाले॥

पापी जन को पकड़ बुलाते, नरको में ढाने वाले।
बुरे काम करने वालो को, खूब सजा देने वाले॥

कोई नही बच पाता न, याय निति ऐसी तेरी॥
॥ धर्मराज कर सिद्ध काज..॥

दूत भयंकर तेरे स्वामी, बड़े बड़े दर जाते हैं।
पापी जन तो जिन्हें देखते ही, भय से थर्राते हैं॥

बांध गले में रस्सी वे, पापी जन को ले जाते हैं।
चाबुक मार लाते, जरा रहम नहीं मन में लाते हैं॥

नरक कुंड भुगताते उनको, नहीं मिलती जिसमें सेरी॥
॥ धर्मराज कर सिद्ध काज..॥

धर्मी जन को धर्मराज, तुम खुद ही लेने आते हो।
सादर ले जाकर उनको तुम, स्वर्ग धाम पहुचाते हो।

जों जन पाप कपट से डरकर, तेरी भक्ति करते हैं।
नर्क यातना कभी ना करते, भवसागर तरते हैं॥

कपिल मोहन पर कृपा करिये, जपता हूँ तेरी माला॥
॥ धर्मराज कर सिद्ध काज..॥

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है. News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है.


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