तीन महीने-चार महीने का कार्यकाल अपर्याप्त है, मुख्य न्यायाधीश का कार्यकाल बढ़ाये जाने की जरूरत है!
Justice lalit
नई दिल्ली: देश के मुख्यन्यायाधीश से दो महीने, तीन महीने के कार्यकाल में न्यायपालिका में क्रांतिकारी सुधार की उम्मीद बेमानी है! इसके लिए CJI का कार्यकाल तय करना जरूरी है!
जस्टिस यू यू ललित ने पद संभालते ही उठाएं कई कदम
जस्टिस यू यू ललित ने तीन महीने से भी कम समय के लिए जब देश के मुख्यन्यायाधीश के रूप में शपथ लिया था, सुप्रीम कोर्ट की कार्यप्रणाली को लेकर उनकी प्राथमिकताएं तय थीं। कोर्ट में दायर नए मामलों की तत्काल लिस्टिंग और सुनवाई वर्षों से लंबित मामलों का निस्तारण उनकी प्राथमिकता थी।
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संवैधानिक महत्व के मामले जो संविधानपीठ के गठन के अभाव में वर्षों से इंतजार कर रहे थे, जस्टिस ललित की प्राथमिकता में थे। इसके लिए जस्टिस ललित ने मुख्य न्यायाधीश का पद संभालते ही कई कदम उठाए।
जस्टिस यू यू ललित ने नए मामलों की लिस्टिंग और सुनवाई की व्यवस्था में बदलाव किया
नए मामलों की लिस्टिंग और सुनवाई की पुरानी व्यवस्था में बदलाव किया। पहले नए मामलों सप्ताह में सामान्यतया दो ही दिन सोमवार और शुक्रवार को सुनवाई होती थी, इसे बढ़ाकर पांचों दिन कर दिया गया। दोपहर तक पुराने मामलों पर सुनवाई और दोपहर के बाद नए मामलों पर सुनवाई होने लगी है। इसका सकारात्मक असर भी दिखने लगा है। नए मामलों की सुनवाई के लिए इंतजार कम हो गया है।
सुप्रीम कोर्ट में वर्षों से लंबित पुराने मामलों के निस्तारण के लिए जस्टिस ललित के निर्देश पर 11 अक्टूबर से करीब 300 ऐसे मामले सुनवाई के लिए लिस्ट हो रहे हैं जो 25-30 साल से सुनवाई का इंतजार कर रहे थे। ऐसा ही एक मामला 1979 से लंबित था जो 11 अक्टूबर को सुनवाई के लिए लिस्ट हुआ था।
तकनीकि कमियों वाले मामलों को किया बंद
सुप्रीम कोर्ट में लंबित करीब 70 हज़ार मामलों में 13 हज़ार के आसपास ऐसे मामले थे जो 2014 से पहले फ़ाइल हुए थे लेकिन उन याचिकाओं में कुछ न कुछ तकनीकि कमियां थीं। लेकिन बार बार रिमाइंडर के बाद भी याचिकाकर्ताओं ने उसे दूर करने में कोई रूचि नहीं दिखाई। जस्टिस ललित ने उन मामलों बंद करने का निर्देश दे दिया। क्योंकि इससे बेवजह लंबित मामलों की कतार लंबी हो रही थी।
कई संविधानपीठों का किया गठन
कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने, ईडब्ल्यूएस कोटा, नोटबन्दी की वैधानिकता जैसे दर्जनों संवैधानिक महत्त्व के मुद्दे संविधान पीठ के गठन के अभाव में लम्बे समय से लंबित थे उनके लिए जस्टिस ललित ने चार संविधानपीठों का गठन किया है। सुप्रीम कोर्ट में एक साथ चार चार संविधान पीठ इससे पहले शायद ही कभी गठित हुआ हो। यह जस्टिस यू यू ललित के कार्यकाल में ही संभव हुआ है।
नए चीफ जस्टिस को मिलेगा अधिक समय
मुख्यन्यायाधीश के रूप में जस्टिस ललित का कार्यकाल मात्र 74 दिन का है। अगले सीजेआई जस्टिस चंद्रचूड़ का कार्यकाल 2 साल का होगा। उनके पास अपनी प्राथमिकताओं के मुताबिक काम करने के लिए थोड़ा अधिक समय समय मिलेगा। भारत में सुप्रीम कोर्ट के मुख्यन्यायाधीश की नियुक्ति वरिष्ठता के मुताबिक होती है और सीजेआई रिटायर होने की उम्र 65 साल निर्धारित है। देश के 22वें मुख्यन्यायाधीश जस्टिस के एन सिंह का कार्यकाल मात्र 17 दिन का था। जबकि जस्टिस वाय वी चंद्रचूड़ ( जस्टिस डी वाय चंद्रचूड़ के पिता ) का कार्यकाल अबतक सबसे अधिक 7 साल 3 महीने का था।
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देश के मुख्यन्यायाधीश का औसत कार्यकाल करीब डेढ़ साल का है
एक आँकड़े के मुताबिक देश के मुख्यन्यायाधीश का औसत कार्यकाल करीब डेढ़ साल का है जो दुनिया के विकसित देशों की अपेक्षा बहुत कम है। अमेरिका की व्यवस्था के मुताबिक वहाँ मुख्य न्यायाधीश की कुर्सी पर बैठने वाला जीवनपर्यंत मुख्यन्यायाधीश रहता है जबतक महाभियोग से उसे हटाया नहीं जाता। इंग्लैंड में चीफ जस्टिस 75 साल की उम्र तक अपने पद पर रह सकता है। एक बार पूर्व अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने मुख्य न्यायाधीश के कार्यकाल को बढ़ाये जाने की जरूरत बताते हुए कहा था कि सीजेआई का कार्यकाल कम से कम 3 साल निर्धारित किया जाना चाहिए।
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