Opinion: ‘माय बॉडी, माय चॉइस’ का अगला पड़ाव मैरिटल रेप… वह दिन भी आने वाला है!
'माय बॉडी, माय चॉइस' का मुद्दा महिलाओं का है, इसलिए महिलाएं ही इस मुद्दे पर लिख और बोल रही हैं। लेकिन मुझे लगता है कि बात एकतरफा हो रही है। महिलाओं के इस मुद्दे पर पुरुषों की प्रतिक्रिया भी लेनी चाहिए, क्योंकि महिलाओं की दुनिया में पुरुषों का होना जरूरी है। महिलाओं को मिलने वाला प्रत्येक नया अधिकार पुरूष प्रधान समाज के पुरुषों को अवश्य प्रभावित करता है।
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि सभी महिलाओं को सुरक्षित और क़ानून सम्मत तरीके से गर्भपात कराने का अधिकार है। इसके साथ ही गर्भपात के मामले में विवाहित, अविवाहित महिला में भेद खत्म हो गया है। महिलाएं कोर्ट के इस फैसले को सेलिब्रेट कर रही हैं और यह सेलिब्रेशन होना भी चाहिए, क्योंकि पूरा न सही... थोड़ा ही सही लेकिन 'माय बॉडी, माय चॉइस' की बात कुछ तो आगे बढ़ी ही है।
प्रेम संबंध और लिव इन में रहने वाले कपल्स के लिए यह खबर सुकून देने वाली है, क्योंकि अब अविवाहितों को अनचाहे गर्भ से मुक्ति के लिए जिंदगी दांव पर नहीं लगानी पड़ेगी। यह बात वो अच्छी तरह समझ सकते हैं जो ऐसी परिस्थिति से कभी गुजरे होंगे।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले में एक बात और कही गयी है कि शादीशुदा महिला भी बगैर पति की मर्जी के उस गर्भ का गर्भपात करा सकती है जो गर्भ उसकी इच्छा के बिना शारीरिक संबंध के दौरान रह गया था। यहां इच्छा और अनिच्छा के बीच के अंतर में बहुत सारे कारण शामिल हो सकते हैं। बंद कमरे में शारीरिक संबंध के उस घड़ी में इस इच्छा के दस्तावेजीकरण का न कोई प्रावधान है और न यह संभव है। ऐसे में इसे अनिच्छा साबित करने में मुश्किल भी नहीं होगी।
कोर्ट के फैसले के पहले शादीशुदा महिला बिना पति की सहमति के यह कदम नहीं उठा सकती थी। इस नई व्यवस्था का असर शादीशुदा पुरूष पर पड़ेगा। बदलते समाज और करियर को लेकर संजीदा आज के शादीशुदा जोड़ों में बच्चा पैदा करने को लेकर अक्सर सहमति बनने में दिक्कत होती है। यहां एक विवाद की गुंजाइश दिखाई दे रही है।
इच्छा-अनिच्छा के इस वर्गीकरण का असर वैवाहिक जीवन पर भी पड़ेगा। हिंदू मैरिज एक्ट में सेक्स का अधिकार शामिल है। क़ानूनन ये माना गया है कि पति या पत्नी दोनों में से कोई भी सेक्स से इनकार करता है तो यह क्रूरता की श्रेणी में आता है और इस आधार पर तलाक मांगा जा सकता है।
पत्नी की इच्छा के बिना शारीरिक संबंध को बलात्कार (मैरिटल रेप) का अपराध बनाने की मांग पुरानी है जो देश की सबसे बड़ी अदालत में लंबित है। दिल्ली हाईकोर्ट के दो जजों में सहमति नहीं बन पाई थी इसलिए मामला सुप्रीम कोर्ट आया था। हाईकोर्ट के जज जस्टिस राजीव शकधर ने कहा था कि विवाहित महिला के साथ उसकी इच्छा के विरुद्ध पति सम्बंध बनाए तो इसे बलात्कार माना जाना चाहिए, लेकिन दूसरे जज जस्टिस सी हरि शंकर ने पति को कानून में दी गयी आपवादिक छूट को सही ठहराया था।
दरअसल, बलात्कार से जुड़ी आईपीसी की धारा 375 के अपवाद के प्रावधान के मुताबिक, विवाहित महिला से उसके पति द्वारा की गई यौन क्रिया को दुष्कर्म नहीं माना जाएगा जब तक कि पत्नी नाबालिग न हो। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात से जुड़े क़ानून मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट के सीमित उद्देश्य के लिए इसे इस अपवाद को हटा दिया है। मतलब केवल गर्भपात के उद्देश्य के लिए इसे बलात्कार माना जायेगा। अब इस फैसले का विस्तार वहां तक होना तय है जिसमें पति भी बलात्कार का दोषी होगा, आजीवन कारावास की सजा होगी। यह वक़्त आने में थोड़ा समय लगेगा लेकिन यह दिन आने वाला है। क्योंकि जब सुप्रीम कोर्ट मैरिटल रेप पर सुनवाई करेगा तो उसके सामने यह गर्भपात क़ानून से जुड़ा यह फैसला भी होगा।
बदलते समाज की आकांक्षाओं और जरूरतों के मुताबिक पहले से चल रहे कानूनों में बदलाव और नए कानून की जरूरत है। गर्भपात क़ानून में यह बदलाव और मैरिटल रेप के प्रावधान की मांग उसी तरह की जरूरत है। लेकिन इसका समाज और विवाह जैसी पवित्र व्यवस्था पर व्यापक असर पड़ेगा। जिस किसी बदलाव का असर सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों पर पड़ने वाला हो तब बदलाव बहुत सोच विचार कर किया जाना चाहिए।
(ये लेखक प्रभाकर कुमार मिश्रा के निजी विचार हैं।)
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