आखिर कहां गुम हो गया छात्र राजनीति का वो सुनहरा दौर, जिसने तय की देश की दिशा ?
प्रत्यक्ष मिश्रा
Student Politics Now : कोरोना के तीन साल बीत जाने के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (DUSU) के चुनाव में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) ने तीन पदों पर जीत हासिल की है, वहीं एक पद पर नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया(NSUI) को जीत मिली। इस दौरान चुनाव प्रचार में हिंसा की कई घटनाएं देखने को मिलीं, जिससे छात्र राजनीति पर सवाल उठना जायज है। अब सवाल केवल छात्र राजनीती तक ही सीमित नहीं है, बल्कि उससे निकले निष्कर्ष को लेकर है।
कहां गुम हो गया वो दौर ?
देश ने छात्र राजनीति का ऐसा भी दौर देखा, जिसने भविष्य में एक आदर्श राजनीति की नजीर पेश की, लेकिन सवाल है कि वो कहां पर गुम हो गई ? एक समय था जब 1970 के दौर में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का आधार बहुत मजबूत था, और फिर ऐसा समय भी आया जब देश को आपातकाल का काला दौर देखना पड़ा ,उस दौर को भला कौन भूल सकता है। आज का नौजवान भले ही फेसबुक, इंस्टाग्राम के जरिए क्रांति की बात करता रहे लेकिन आपातकाल में जयप्रकाश नारायण वो चेहरा थे जिन्होंने न केवल इंदिरा गांधी की सरकार को हिला दिया था बल्कि एक मजबूत और सटीक छात्र राजनीती का उदाहरण भी पेश किया, उनकी छात्र राजनीती में मजबूत पकड़ थी इसलिए उनके कहने पर बिहार के छात्रों ने इतने बड़े आंदोलन को अंजाम दिया।
जब चिमनभाई को गवानी पड़ी थी सरकार
जेपी आपातकाल में वो चेहरा थे जिनकी आवाज चारों और सुनी जा सकती थी। उनकी वजह से ही साल 1974 में, गुजरात में कांग्रेस सरकार के खिलाफ एक छात्र आंदोलन के कारण मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल को इस्तीफा देना पड़ा था। जेपी के अलावा और भी ऐसे कई राजनीतिक चेहरे हुए, जिन्होंने छात्र राजनीती से अपने करियर की शुरुआत की और आगे चलकर देश की सत्ता संभाली। पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी (ABVP), कांग्रेस महासचिव के सी वेणुगोपाल, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इसका उम्दा उदाहरण हैं।
छात्र राजनीती से की शुरुआत
अरुण जेटली ने छात्र राजनीति का सफर दिल्ली विश्वविद्यालय से शुरू किया, जहां वह विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा लेते हुए बाद में एबीवीपी में शामिल हो गए थे, उसके बाद बीजेपी में उनकी जो अहमियत थी उसको बताने की जरुरत नहीं है।
जेटली, आपातकाल के खिलाफ आवाज उठाने वाले भी प्रमुख चेहरों में से थे। उन्होंने सत्याग्रह आंदोलन का हिस्सा होने के कारण 19 महीने की जेल की काटी थी। वहीं मार्क्सवादी राजनीति में येचुरी का प्रवेश जेएनयू से शुरू हुआ, जिन्होंने आगे चलकर भारतीय राजनीती का मार्ग प्रशस्त किया। वहीं सुशील कुमार मोदी का राजनीति में प्रवेश उनके कॉलेज के दिनों के दौरान शुरू हुआ जब वह पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ में शामिल हुए। आज भारतीय जनता पार्टी में वह मुख्य चेहरा हैं।
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