लघुकथा: प्रयासों की शीघ्रता
Laghukatha
Short Story: ऊमा सदैव छोटे-छोटे बच्चों के साथ समय बिताना पसंद करती थी, क्योंकि वो जानती थी कि ईश्वर का सबसे सुंदर सृजन बच्चों की मासूमियत में ही छिपा हुआ है। बच्चों का हँसना, खिलखिलाना, उत्साह से प्रत्येक कार्य करना, खेलने में अपनी सम्पूर्ण ऊर्जा लगाना यह सब जीवन में नई ऊर्जा को संचारित करता था। सबके लिए जीवन में समय व्यतीत करने के अपने-अपने तरीके हो सकते है, परंतु बचपन को जीना तो केवल वर्तमान समय को जीना है। ऊमा का ममत्व हर बच्चे के लिए समान था। हर बच्चे की देखरेख, उसकी चिंता उसके स्वभाव में शामिल था। वह अपनी सरकारी नौकरी में भी बच्चों की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखती थी। शायद वह बच्चों की पारिवारिक सम्बन्धों की गूढ़ता को बहुत बारीकी से समझती थी।
ऊमा अपने किसी जरूरी कार्य से अपनी दुपहिया गाड़ी से जा रही थी कि उसने अचानक देखा की बच्चों की स्कूल बस किसी ट्रक से टकरा गई है। मासूम नन्हें बच्चे हताहत हो गए। बहुत सारे पत्रकार वहाँ इकट्ठे हुए, कुछ लोगों ने वीडियो बनाना शुरू किया, कुछ लोगों ने दुर्घटना के फोटो लिए; पर लोगों का झुंड उनको जल्दी से जल्दी प्राथमिक चिकित्सा मुहैया कराने की ओर प्रयासरत नहीं था। जब हम घरवालों को अचानक से दुर्घटना और बच्चों के आहत होने की खबर देते है तो उन परिवारों पर क्या बीतती होगी। इसी मनःस्थिति को जानते हुए ऊमा ने सबसे पहले प्राथमिक व्यवस्था जुटाने की ओर लोगों का ध्यान केन्द्रित किया। उसने लोगों के समूह को एकजुट होकर यथा संभव सहयोग देने के लिए प्रेरित किया। छोटे-छोटे प्रयास सार्थक रूप लेते गए। समय पर मासूमों का ईलाज शुरू हो गया और जो विडियो बच्चों के माता-पिता को भेजे गए उनमें बच्चों को समय पर अस्पताल पहुंचाते हुए दिखाया गया जोकि परिवारजन में एक संतोष का भाव उत्पन्न करता है।
ईश्वर की कृपा और सबके सहयोग से मासूमों का यथा संभव बेहतर ईलाज हो गया। जब सबने ऊमा से पूछा कि इतने अच्छे से कार्य को कैसे अपेक्षित परिणाम में परिवर्तित किया, तब उसने कहा की यह गुण भी उसने बच्चों से ही सीखा है। वे अपने कार्य को किसी भी परिस्थिति में पूर्ण करने के लिए पूरा प्रयास करते है। सारे मतभेद मिटाकर सिर्फ मिल जुलकर रहना सिखाते है। उनमें निश्छलता होती है और वे प्रेम की परिभाषा समझाते है।
इस लघुकथा क्या शिक्षा मिलती है?
इस लघुकथा से यह शिक्षा मिलती है कि जीवन में ऊर्जावान बनें रहने के लिए नकारात्मक सोच, निंदा, आलोचना और ईधर-उधर की बातें करने की बजाए क्रियात्मक रहने वाली क्रियाओं में स्वयं को लिप्त करें। सहयोग के संकल्प को आगे बढ़ाएँ। बच्चों की निश्छलता से स्वयं भी जुड़िए और उनके गुणों को आत्मसात भी करिए। ऊमा ने बच्चों की शिक्षा से प्रेरित होकर ही प्रयासों की शीघ्रता के द्वारा सार्थक दिशा में सही कदम उठाया।
डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)
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