गुजरात के वन एवं पर्यावरण मंत्री श्री अर्जुनभाई मोढवाडिया ने बुधवार को अरावली पहाड़ियों के संरक्षण और टिकाऊ विकास को लेकर राज्य सरकार का दृढ़ संकल्प व्यक्त करते हुए कहा कि गुजरात सरकार राज्य के वन क्षेत्रों और पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों को बचाने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है. गुजरात के विभिन्न जिलों में फैली अरावली पर्वतमाला और उसके वन क्षेत्रों में राज्य सरकार ने आज तक कभी भी खनन की अनुमति नहीं दी है और भविष्य में भी खनन गतिविधियों को अनुमति नहीं दी जाएगी.
श्री अर्जुनभाई मोढवाडिया ने जोड़ा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार गुजरात सरकार अरावली पहाड़ियों की नई परिभाषा और संरक्षण के सभी पहलुओं का कार्यान्वयन कर रही है. इसके अनुसार, स्थानीय भूतल से 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाले सभी भू-आकारों को ‘पर्वत’ के रूप में परिभाषित किया गया है, ताकि किसी भी प्रकार की कानूनी बचाव का रास्ता न रहे. इसके अतिरिक्त, 100 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले दो या अधिक पर्वतों के बीच के 500 मीटर तक के सभी क्षेत्र को भी अरावली पर्वतमाला का ही भाग माना जाएगा.
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उन्होनें स्पष्ट किया कि गुजरात सरकार द्वारा राज्य के संरक्षित क्षेत्रों, इको-सेंसिटिव जोन्स, रिजर्व एरिया, वेटलैंड्स और कैम्पा (CAMPA) बुवाई साइट्स जैसे ‘कोर और इनवायलेट’ जोन्स में खनन पर पूर्ण प्रतिबंध रहेगा. राज्य सरकार का मुख्य उद्देश्य विकास के साथ पर्यावरण का संरक्षण करना है, ताकि भावी पीढ़ियों को सुरक्षित और हरित गुजरात मिल सके. अरावली पर्वतमाला केवल पत्थरों का ढेर नहीं है, बल्कि यह रेगिस्तान को आगे बढ़ने से रोकने के लिए एक प्राकृतिक अवरोध के रूप में कार्य करती है और भूमिगत जल रिचार्ज के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है.
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वन एवं पर्यावरण मंत्री ने ‘अरावली ग्रीन वॉल प्रोजेक्ट’ का उल्लेख करते हुए कहा कि इस प्रोजेक्ट अंतर्गत गुजरात के साबरकांठा, अरवल्ली, बनासकांठा, मेहसाणा, महिसागर, दाहोद और पंचमहल जिलों के कुल 3,25,511 हेक्टेयर वन क्षेत्र को शामिल किया गया है. इसमें ग्रीन कवर को बढ़ाने के लिए वर्ष 2025-26 के दौरान कुल 4,426 हेक्टेयर क्षेत्र में 86.84 लाख स्थानीय प्रजातियों के पौधों की बुवाई की गई है.
इसके अतिरिक्त; मंत्री श्री अर्जुन मोढावाडिया ने अंत में कहा कि 150 हेक्टेयर क्षेत्र से बबूल और लेंटाना जैसी आक्रामक वनस्पतियों को हटाया गया है. आगामी वर्ष 2026-27 के दौरान इस प्रोजेक्ट अंतर्गत लगभग 4,890 हेक्टेयर क्षेत्र में वृक्षारोपण तथा संरक्षण का कामकाज किया जाएगा .