El Nino And La Nina Effect: दिसंबर का महीना शुरू हो गया है। देश में मौसम तेजी से बदल रहा है। मौसम का जिक्र होता है तो दो नाम अक्सर सुनने को मिलते हैं। एक है ला नीना दूसरा अल नीनो। मौसम विभाग के मुताबिक, इसी महीने से ला नीना भी एक्टिव होने वाने वाला है, जिसका असर देश के कई राज्यों में देखने को मिलेगा। कई लोगो को लगा है कि ला नीना और अल नीना एक ही हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। इन दोनों का प्रभाव देश दुनिया के मौसम पर अलग-अलग होता है। जानिए कैसे?
अल नीनो क्या है?
ऐसी स्थिति जब प्रशांत महासागर किनारे पानी गर्म होने लगता है, जो अल नीनो कहलाता है। जिसके कारण हवा में नमी ज्यादा हो जाती है। इसकी वजह से ज्यादा बारिश देखने को मिलती है। वहीं, उत्तर-पश्चिम में सर्दियों का तापमान सामान्य से अधिक गर्म रहता है और बारिश में कमी आ जाती है। जबकि दक्षिण-पूर्व में सामान्य से ज्यादा बारिश देखने को मिलती है।
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ला नीना क्या है?
जहां अल नीनो की वजह से महासागर किनारे पानी गर्म होता है, वहीं, ला नीना की वजह से सतह ठंडी होती है। सामान्य शब्दों में कहें तो जब एक ही क्षेत्र में ठंडा पानी बनता है, तो ला नीना अपोजिट इफेक्ट रता है। जिसकी वजह से अमेरिका में, सर्दियों का तापमान उत्तर-पश्चिम में औसत से ठंडा और दक्षिण-पूर्व में औसत से गर्म होता है। कहा जा सकता है कि ला नीना और अल नीनो, सर्दन ऑसिलिएशन (ENSO) प्रक्रिया के दो खास चरण हैं। यह प्रक्रिया मुख्य तौर पर प्रशांत महासागर के समुद्री तापमान में बदलाव से करती है।
मौसम पर कैसे पड़ता है असर?
ला नीना और अल-नीनो सर्दन ऑसिलिएशन (ENSO) प्रक्रिया का एक हिस्सा है। ENSO इवेंट प्रशांत महासागर में होता है। अगर अल नीनो की स्थिति बनती है तो ये भारत समेत दुनिया के कई हिस्सों में नुकसान पहुंचता है। जबकि ला नीना कई देशों के लिए फायदेमंद होता है, जिसमें एशियाई देश शामिल हैं। प्रशांत महासागर में पानी गर्म होने की वजह से इसमें अल नीनो की स्थिति होती है, जिससे भारत समेत कई देशों में सूखे के हालात बन सकते हैं। वहीं, जब प्रशांत महासागर की सतह पर पानी ठंडा होता है जो ला नीना की वजह से होता है। इसकी वजह से मानसून मजबूत होने के साथ सर्दियां भी ज्यादा होती हैं।