उत्तर भारत की प्राकृतिक सुरक्षा कवच माना जानी वाली अरावली पहाड़ियों को लेकर देशभर में माहौल गर्माया हुआ है. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली समेत पूरे उत्तर भारत में अरावली को लेकर चर्चा तेज है. वहीं, हरियाणा और राजस्थान में करीब 6 जिलों के 100 से अधिक गावों पर संकट दिखाई दे रहा है.
सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले ने 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों को खनन के लिए खोले जाने के बाद से अरावली बचाव अभियान को लेकर लोगों ने मोर्चा खोल दिया है. मेवात, नूह और राजस्थान के कई जगह पर विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है. हालांकि, इस मामले में पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई है.
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हम जब दिल्ली से निकले तो दिल्ली से सबसे पहले हमने फरीदाबाद के सूरज कुंड को कैमरे में कैद किया. उसके बाद हम निकल गए हरियाणा के नूह जहां पर करीब 60 गांव सुप्रीम कोर्ट के फैसले से प्रभावित होंगे. नूह के सत्तावारी गांव जहां पर 6 पहाड़िया हैं. 100 मीटर से नीचे और 50 से जायदा पहाड़ियां…यानी करीब 5000 हजार की आबादी प्रभावित हो सकती है.
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इस गांव में असल में 2,000 से ज्यादा की आबादी है जो पहाड़ पर ही रहती है और वहीं पर जीवन यापन करती है. हमनें पहाड़ पर जाकर उन लोगों से उनका हाल जानने का प्रयास किया क्योंकि अगर खनन शुरू होगा तो उनका आशियाना उजड़ना तय है.
इसके बाद हमने मेवात के नागलमुबरकपुर गांव की तरफ रुख किया. इस गांव की आबादी भी 6000 है और करीब 2 से 3 हजार लोग पहाड़ पर ही रहते हैं. यानी करीब 200 से 250 घर तो पहाड़ी के ऊपर ही हैं. इस पहाड़ी की ऊंचाई करीब 70 मीटर है. ऐसे में जब से इन लोगों को पता चला है कि इनका घर उजड़ सकता है तो ये समझ नहीं पा रहे हैं अब आगे क्या किया जाए.
तीसरा गांव नगलसबात… इस गांव में भी करीब 5000 से ज्यादा आबादी है. इस गांव के लोगों का कहना है कि पहाड़ है तो जीवन है और अगर नहीं तो कुछ भी नहीं है. यहां करीब 250 से ज्यादा मकान पहाड़ पर हैं.
नूंह के आस-पास के करीब 40 गांवों पर संकट बना हुआ है. नूंह से सटे तिजारा, खैरथल, किशनगढ़वास, अलवर, जुरहेड़ा, नगर, पहाड़ी, गोपालगढ़ व कामां क्षेत्र के करीब 60 से अधिक गांव कोर्ट के फैसले से प्रभावित होंगे. इसका असर हरियाणा और राजस्थान के 6 जिलों के 100 से अधिकर गांवों पर संकट बन रहा है.