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सुषमा एक सोच: भारत में कैसी राजनीतिक संस्कृति चाहती थीं सुषमा स्वराज?

Sushma Swaraj Death Anniversary: भारत की सनातन परंपरा में मृत्यु को जीवन का अंत नहीं पूर्णता बताया गया है। इंसान का शरीर पंचतत्व में विलीन हो जाता है, लेकिन उसके कर्म इसी धरती पर रह जाते हैं। यही किसी इंसान की असली कमाई और जमा पूंजी होती है। आज बीजेपी की दिग्गज नेता सुषमा स्वराज […]

News 24 Editor in Chief Anurradha Prasad Show
Sushma Swaraj Death Anniversary: भारत की सनातन परंपरा में मृत्यु को जीवन का अंत नहीं पूर्णता बताया गया है। इंसान का शरीर पंचतत्व में विलीन हो जाता है, लेकिन उसके कर्म इसी धरती पर रह जाते हैं। यही किसी इंसान की असली कमाई और जमा पूंजी होती है। आज बीजेपी की दिग्गज नेता सुषमा स्वराज की चौथी पुण्यतिथि है। चौड़े बॉर्डर वाली साड़ी, माथे पर लाल बिंदी और मुस्कुराता चेहरा... टीवी पर कुछ ऐसी ही छवि दिखती थी सुषमा स्वराज की।

लोकतंत्र को मजबूती देने के प्रयास में खुद को खपा दिया

वो भारतीय राजनीति के अध्याय का एक ऐसा पन्ना हैं जिन्होंने संसदीय लोकतंत्र को मजबूती देने के भगीरथ प्रयास में खुद को खपा दिया। वो भारतीय राजनीति का एक ऐसा सौम्य और विनम्र चेहरा थीं, जिसकी विरोधी भी दिल से कद्र करते थे। वो भारतीय समाज में लड़कियों के हौसलों को उड़ान वाली एक ऐसी शख्सियत थीं। वो बेटियों को हर कदम पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देती थीं। वो एक ऐसी राजनेता थीं जो पत्रकारों के हर तरह के सवालों का खुलकर जवाब देती थीं। वो सिर्फ 25 साल की उम्र में देश की सबसे कम उम्र की मंत्री बनीं। वह वाजपेयी सरकार से लेकर मोदी सरकार तक में कैबिनेट मंत्री रहीं। कुछ समय के लिए दिल्ली की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर भी बैठीं। सुषमा जी की शख्सियत जितनी प्रभावशाली थी उतनी ही ओजस्वी उनकी वाणी रही। ऐसे में सुषमा स्वराज की पुण्यतिथि के मौके पर उनकी राजनीति और जिंदगी के पन्नों को पलटना बहुत जरूरी है? हम समझने की कोशिश करेंगे कि आज की राजनीति को उनकी जैसी शख्सियत की कितनी जरूरत है? उनकी सियासत से आज के नेताओं को किस तरह की सीख लेने की जरूरत है? उन्होंने बतौर विदेश मंत्री दुनिया के नक्शे पर किस तरह से भारत का झंडा ऊंचा किया? किस तरह से बड़ी-बड़ी समस्याओं का रास्ता बड़ी चतुराई से निकाला? विरोधी पार्टी के नेताओं के साथ सत्ता पक्ष के रिश्ते किस तरह के होने चाहिए? ऐसे सभी सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे।

सुषमा स्वराज की जिंदगी में अनुशासन का महत्व 

सुषमा स्वराज की जिंदगी में अनुशासन का बहुत महत्व था। उनके अंदर अनुशासन के बीज स्कूल में पढ़ाई के दौरान भी पड़ चुके थे, जब वो एनसीसी कैडेट थीं। जब सियासत में भी आईं तो उन्होंने खुद को पूरी तरह अनुशासित रखा, लेकिन अपनी बात पार्टी फोरम पर रखने में जरा भी हिचक नहीं दिखाई। ये उनकी शख्सियत का मजबूत पक्ष ही कहा जाएगा कि जब बीजेपी आलाकमान ने उन्हें दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने का ऑफर किया, तो उन्होंने इनकार कर दिया, लेकिन पार्टी की जरूरत और रणनीतिक को समझते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के लिए तैयार हो गईं।

ट्विटर पर भी सुलझाती थीं समस्याएं

सरकार हो या संगठन सुषमा जी को जो भी जिम्मेदारी सौंपी गई, उसे पूरी शिद्दत से निभाती गईं। संगठन में रहीं तो कमल खिलाने के लिए खुद को पूरी तरह झोंक दिया। सरकार में आईं तो तय जिम्मेदारी को निभाने में खुद को पूरी तरह समर्पित कर दिया। बतौर विदेश मंत्री तो वो ट्विटर पर भी आने वाली समस्याओं को सुलझाने में देर नहीं लगाती थीं। चाहे संयुक्त राष्ट्र में भारत का पक्ष रखना हो या फिर आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को लताड़ना, हर रोल पूरी शिद्दत से निभाती गईं। ना अहंकार, ना टकराव...बिना किसी विवाद के नई लकीर खींचती चली गईं।

कई भाषाओं पर पकड़ 

बीजेपी की विचारधारा को विश्व पटल पर सम्मान दिलाने का श्रेय भी सुषमा स्वराज को ही जाता है। खास बात ये है कि जब वो बीजेपी या हिंदुत्व से जुड़ी कोई बात करती थीं तो तथ्य, तर्क और भावनाओं का ऐसा खूबसूरत मिलन होता था कि सुनने वाला बस सुनता रह जाता था। नई जुबान सीखने में भी सुषमा स्वराज का कोई तोड़ नहीं था। सिर्फ हिन्दी, अंग्रेजी और संस्कृत पर ही उनकी पकड़ नहीं थी...1999 के लोकसभा चुनाव में सुषमा स्वराज कर्नाटक के बेल्लारी से सोनिया गांधी के खिलाफ चुनावी मैदान में थीं तब स्थानीय वोटरों से बात करने के लिए सुषमा जी ने कन्नड़ सीख ली। इसके बाद वो चुनावी रैलियों में कन्नड़ में धाराप्रवाह भाषण देने लगीं। लेकिन, उनकी शख्सियत का सबसे अलहदा पहलू था ... विरोधियों के दिलों में जगह बनाने का तरीका ।   और पढ़ें - सोशल मीडिया का सम्मोहन कितना हानिकारक: रिश्तों की कमजोर कड़ी में कैसे बनेगा संतुलन?  

भाषा की मर्यादा

सुषमा स्वराज की शख्सियत से आज के नेताओं को एक बात और गंभीरता से सीखने की जरूरत है। वो अपनी पार्टी के भीतर के टकरावों पर भी जितनी सफाई से सवालों को टाल जाती थीं, उतनी ही सावधानी विरोधी पार्टियों के नेताओं पर हमला बोलने में भी रखती थीं। भाषा की मर्यादा उनकी जिंदगी के अनुशासन की तरह ही रहा, जिसे उन्होंने कभी टूटने नहीं दिया। फिर चाहे संसद के भीतर की बहस हो या फिर मीडिया के तीखे सवाल, सबको बड़ी चतुराई और सौम्यता के साथ हैंडल करने के हुनर की विरासत पीछे छोड़ गईं।

अगली पीढ़ी को दिखाई आदर्श राह 

सुषमा स्वराज को दुनिया छोड़े चार साल बीत चुके हैं, लेकिन सियासत, समाज और संसदीय परंपरा में वो एक ऐसी चमकदार और ईमानदार लकीर खींच गई हैं, जो लोकतंत्र की मजबूती के मूलमंत्र की तरह है। संगठन से सरकार तक. समाज से संसद तक उन्होंने जिस तरह से किरदार निभाया वो वर्तमान और अगली पीढ़ी को आदर्श राह दिखा रही है। महिला सशक्तीकरण में अहम भूमिका निभाने वाली सुषमा स्वराज को हम जैसे महिला पत्रकारों की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि।

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