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‘I Love You कहना, हाथ पकड़ना और महिला को खींचना उसकी मर्यादा का अपमान’, छत्तीसगढ़ HC का फैसला

कोर्ट ने साफ कहा कि आरोपी का व्यवहार किसी भी लड़की के लिए अस्वीकार्य है, खासकर जहां सामाजिक संवेदनशीलता ज्यादा हो. मामले की पूरी परिस्थितियां देखते हुए सजा में नरमी बरती गई, लेकिन अपराध को गंभीर माना गया.

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक अनोखे फैसले में कहा कि किसी लड़की का हाथ पकड़कर उसे अपनी ओर खींचना और 'आई लव यू' कहना महिला की गरिमा का अपमान है. इस मामले में 19 साल के एक युवक को ट्रायल कोर्ट ने आईपीसी की धारा 354 और पॉस्को एक्ट के तहत तीन साल की सजा सुनाई थी, क्योंकि उसने स्कूल से लौट रही एक लड़की का हाथ थामा और उसे खींचा. हाईकोर्ट के जस्टिस नरेश कुमार चंद्रवंशी ने अपील सुनते हुए पॉस्को के तहत सजा को रद्द कर दिया, क्योंकि पीड़िता की उम्र नाबालिग होने का पुख्ता सबूत नहीं मिला, लेकिन आईपीसी धारा 354 के तहत उसे दोषी बनाए रखा.

कोर्ट ने सजा घटाकर किया 1 साल


कोर्ट ने सजा को तीन साल से घटाकर एक साल कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि आरोपी नाबालिग नहीं था बल्कि युवा था और उसने हाथ पकड़ने के अलावा कोई और आपत्तिजनक हरकत नहीं की. आदेश में कहा गया कि ग्रामीण इलाकों में ऐसी हरकतें बेहद आपत्तिजनक मानी जाती हैं, जो सीधे महिला की मर्यादा को ठेस पहुंचाती हैं. आरोपी जमानत पर था, कोर्ट ने उसे सरेंडर करने का निर्देश दिया ताकि बाकी सजा काट सके.

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दरअसल, पीड़िता अपनी छोटी बहन और दोस्त के साथ घर लौट रही थी और आरोपी ने अचानक 'आई लव यू' कहते हुए हाथ पकड़ लिया. पीड़िता डर गई और पास के एक मजार में छिप गई. राज्य की ओर से वकील प्रभा शर्मा ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को सबूतों पर आधारित बताया, जबकि आरोपी के वकील पुनीत रूपारेल ने कहा कि 'आई लव यू' कहना कोई यौन अपराध नहीं, न ही हाथ पकड़ने में यौन इरादा साबित होता है.

हाईकोर्ट ने 'मॉडेस्टी' की परिभाषा पर हुई चर्चा

हाईकोर्ट ने 'मॉडेस्टी' की परिभाषा पर चर्चा की, जिसमें वेबस्टर और ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के हवाले से कहा कि यह महिला की शालीनता, व्यवहार की मर्यादा और कोमलता का प्रतीक है. सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों का जिक्र करते हुए कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि ऐसी हरकतें महिलाओं की गरिमा पर सीधा हमला हैं. यह फैसला ग्रामीण क्षेत्रों में लड़के-लड़कियों के बीच होने वाले छोटे-छोटे व्यवहारों पर नई बहस छेड़ सकता है, जहां कई बार इरादा साफ न होने पर भी ऐसी घटनाएं कानूनी पचड़े में फंस जाती हैं.

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कोर्ट ने साफ कहा कि आरोपी का व्यवहार किसी भी लड़की के लिए अस्वीकार्य है, खासकर जहां सामाजिक संवेदनशीलता ज्यादा हो. मामले की पूरी परिस्थितियां देखते हुए सजा में नरमी बरती गई, लेकिन अपराध को गंभीर माना गया.


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