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Same Gender Marriage: ‘इस मसले को संसद पर छोड़ दीजिए….’, सुप्रीम कोर्ट से केंद्र ने की अपील

Same Gender Marriage: समलैंगिक विवाह को मान्यता दिए जाने की मांग पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का 5वां दिन था। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया कि सेम जेंडर मैरिज को कानूनी मंजूरी देने की मांग वाली याचिकाओं पर उठाए गए सवालों को संसद पर छोड़ने का विचार किया जाए। यह […]

Supreme Court
Same Gender Marriage: समलैंगिक विवाह को मान्यता दिए जाने की मांग पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का 5वां दिन था। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया कि सेम जेंडर मैरिज को कानूनी मंजूरी देने की मांग वाली याचिकाओं पर उठाए गए सवालों को संसद पर छोड़ने का विचार किया जाए। यह एक ऐसा विषय है जिसे संसद पर छोड़ देना चाहिए। समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिए जाने की मांग वाली याचिकाओं पर सीजेआई की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय पीठ सुनवाई कर रही है। जिसमें न्यायमूर्ति एसके कौल, न्यायमूर्ति रवींद्र भट, न्यायमूर्ति हेमा कोहली और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा शामिल हैं। और पढ़िए – Same Gender Marriage: सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- शादी के लिए अलग-अलग जेंडर के पार्टनर जरूरी? जानें पूरा मामला पिछली चार सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को सुना था। 5वें दिन बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के तर्कों को सुनना शुरू किया है। केंद्र इन याचिकाओं का विरोध कर रहा है। याचिकाओं की मांगों को शहरी एलीट अवधारणा बताते हुए इसे खारिज करने की मांग की थी। और पढ़िए – Chhattisgarh Naxal Attack: दंतेवाड़ा में नक्सलियों का बड़ा हमला, 10 DRG जवान और चालक शहीद, सीएम ने बुलाई हाईलेवल मीटिंग

पढ़िए केंद्र के चार अहम तर्क

  • बुधवार को केंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क रखा। उन्होंने कहा कि शादी किससे और किसके बीच होगी इस पर फैसला कौन करेगा? शादी की नई परिभाषा गढ़ने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। मेरी अपील है कि इसे और आगे ले जाने के बजाय यह एक ऐसा विषय है जिसे संसद पर छोड़ देना चाहिए।
  • उन्होंने कहा कि कानून निर्धारित करता है कि किस उम्र में शादी करनी है और किससे करनी है। दोनों को कैसे अलग होना है, इसका भी नियम है। याचिकाकर्ताओं की अर्जियां बेहद अस्पष्ट हैं। शादी की मान्यता के लिए सामाजिक स्वीकृति आवश्यक है। इस विषय पर संसद और विधानसभाओं में बहस होनी चाहिए।
  • उन्होंने कहा कि LGBTQI समाज के लिए हानिकारक है। आप लोगों की इच्छा के विरुद्ध कुछ कर रहे हैं। हम उस ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को नहीं भूल सकते जिसके कारण विवाह की संस्था बनी।
  • संसद समलैंगिक और समलैंगिक लोगों के बारे में जानती थी। इसीलिए विशेष विवाह अधिनियम का गठन करते समय प्रवर समिति ने 'पुरुष' और 'महिला'शब्द का इस्तेमाल करने के बजाय पार्टियों शब्द का इस्तेमाल किया। बहस के बाद पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग उम्र पेश करने के लिए संशोधन लाया गया।
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