समलैंगिक शादियों को मान्यता की मांग वाली याचिकाओं पर SC में सुनवाई जारी, केंद्र सरकार ने किया है विरोध
Same Gender Marriage: समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है। भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ मामले को सुन रही है। बता दें कि याचिकाओं में कोर्ट से कानून के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग की है। याचिका में तर्क दिया गया है कि अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार LGBTQIA+ नागरिकों को भी मिलना चाहिए।
बता दें कि न्यायमूर्ति चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला की पीठ ने 13 फरवरी को संबंधित पक्षों की दलीलें सुनने के बाद मामले को पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष विचार के लिए भेज दिया था। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा था कि संविधान पीठ 18 अप्रैल से इस मामले की सुनवाई शुरू करेगी।
बता दें कि केंद्र सरकार ने याचिका का विरोध किया है। केंद्र ने कहा है कि समलैंगिक शादी, अर्बन इलिटिस्ट (शहरी संभ्रांत लोगों) की सोच है। केंद्र ने गुहार लगाई कि इस याचिका को खारिज किया जाए।
अखिल भारतीय संत समिति ने किया समलैंगिक विवाह का विरोध
अखिल भारतीय संत समिति ने भी सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिकाओं का विरोध किया है। एक हस्तक्षेप आवेदन में संगठन का दावा है कि वह 127 हिंदू संप्रदायों का प्रतिनिधित्व करता है। संगठन हिंदू धर्म और वैदिक संस्कृति के कल्याण और उत्थान की दिशा में काम करता है।
संगठन का कहना है कि समलैंगिक विवाह पूरी तरह से अप्राकृतिक और समाज के लिए विनाशकारी है। अखिल भारतीय संत समिति ने अपनी याचिका में कहा है कि विवाह एक पुरुष और एक महिला के बीच एक पवित्र रिश्ता है। संगठन का कहना है कि याचिकाकर्ता समान-लिंग विवाह को बढ़ावा देकर विवाह की भारतीय अवधारणा को नष्ट करने की कोशिश कर रहे हैं।
संगठन ने ये भी कहा कि हिंदू धर्म में विवाह सोलह संस्कारों (संस्कारों) में से एक है। पुरुष और महिला न केवल शारीरिक और सामाजिक उद्देश्यों के लिए बल्कि आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी विवाह के बंधन में बंधते हैं। समिति ने याचिकाओं का इस आधार पर भी विरोध किया है कि समलैंगिक विवाह पश्चिमी देशों से आयात किया गया है। कहा कि समलैंगिक संबंधों को पश्चिमी देशों में स्वीकृति मिल चुकी है, लेकिन इसे भारतीय समाज में अनुमति नहीं दी जा सकती है।
समलैंगिक विवाहों को वैध बनाने के पक्ष में तर्क
दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (DCPCR) ने यह कहते हुए याचिका का समर्थन किया है। बाल अधिकार निकाय ने तर्क दिया है कि कई अध्ययनों ने कहा गया है कि समान-लिंग वाले जोड़े अच्छे माता-पिता हो सकते हैं। ऐसे 50 से अधिक देश हैं जो समान-लिंग वाले जोड़ों को कानूनी रूप से बच्चों को गोद लेने की अनुमति देते हैं।
बता दें कि भारतीय मनश्चिकित्सीय सोसाइटी (Indian Psychiatric Society) समान लिंग परिवार के समर्थन में आई थी और तर्क दिया था कि यह समाज में उनके समावेश को बढ़ावा देगा। चिकित्सा निकाय का कहना है कि समलैंगिकता कोई बीमारी नहीं है। बता दें कि इस सोसाइटी ने 2018 के उस फैसले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी जिसने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था।
इन देशों में समलैंगिक विवाह को मिली है कानूनी मान्यता
प्यू रिसर्च सेंटर के अनुसार, 30 देशों में समलैंगिकों को शादी करने की इजाजत देने वाले राष्ट्रीय कानून बनाए हैं। इन देशों में कोस्टा रिका (2020), उत्तरी आयरलैंड (2019), इक्वाडोर (2019), ताइवान (2019), ऑस्ट्रिया (2019), ऑस्ट्रेलिया (2017), माल्टा (2017), जर्मनी (2017), कोलंबिया (2016), संयुक्त राज्य अमेरिका ( 2015), ग्रीनलैंड (2015), आयरलैंड (2015), फिनलैंड (2015), लक्जमबर्ग (2014), स्कॉटलैंड (2014), इंग्लैंड और वेल्स (2013), ब्राजील (2013), फ्रांस (2013), न्यूजीलैंड (2013) , उरुग्वे (2013), डेनमार्क (2012), अर्जेंटीना (2010), पुर्तगाल (2010), आइसलैंड (2010), स्वीडन (2009), नॉर्वे (2008), दक्षिण अफ्रीका (2006), स्पेन (2005), कनाडा (2005) ), बेल्जियम (2003), नीदरलैंड (2000) शामिल हैं।
Get Breaking News First and Latest Updates from India and around the world
on News24. Follow News24 and Download our - News24
Android App. Follow News24 on Facebook, Telegram, Google
News.