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One Nation One Election : कब और कितनी बार देश में एक साथ हुए चुनाव? जानें, क्या है ‘वन नेशन वन इलेक्शन’

One Nation One Election : केंद्र की मोदी सरकार ने संसद का विशेष सत्र बुलाया है। 18 से 22 सितंबर के बीच 5 दिनों के इस विशेष सत्र में मोदी सरकार कोई बड़ा फैसला ले सकती है। यहां अभी इस विशेष सत्र का एजेंडा पब्लिक डोमेन में नहीं आया है। लिहाजा, अटकलों का बाजार गर्म […]

One Nation One Election
One Nation One Election : केंद्र की मोदी सरकार ने संसद का विशेष सत्र बुलाया है। 18 से 22 सितंबर के बीच 5 दिनों के इस विशेष सत्र में मोदी सरकार कोई बड़ा फैसला ले सकती है। यहां अभी इस विशेष सत्र का एजेंडा पब्लिक डोमेन में नहीं आया है। लिहाजा, अटकलों का बाजार गर्म है। चर्चा है कि इस विशेष सत्र के दौरान केंद्र सरकार संसद में 'वन नेशन वन इलेक्शन' को लेकर विशेष बिल संसद में पेश कर सकती है।

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमेटी

'एक देश एक चुनाव' के सुगबगाहट के बीच केंद्र सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया है जो इस मुद्दे पर सभी राजनीतिक दलों के साथ-साथ अन्य लोगों से चर्चा करेंगे।

दुनिया के कई देशों में लागू है 'वन नेशन वन इलेक्शन'

आपको बता दें 'एक देश एक चुनाव' या 'वन नेशन वन इलेक्शन' कोई नई बात नहीं है। मौजूदा समय में भी यह दुनिया के कई देशों में लागू है। भारत में 1967 इस आधार पर देश में लोकसभा और राज्यों में विधानसभा के चुनाव हो चुके हैं। उसके बाद 1970 में लोकसभा भंग कर दी गई और इसके कारण एक देश-एक चुनाव की परंपरा भी खत्म हो गई। फिलहाल, जर्मनी, हंगरी, इंडोनेशिया, स्पेन, दक्षिण अफ्रीका, पोलैंड, बेल्जियम, स्लोवेनिया और अल्बानिया जैसे देशों में एक ही बार चुनाव कराने की परंपरा है। [caption id="attachment_325383" align="aligncenter" ] One Nation One Election[/caption]

आजादी के बाद लगातार चार बार एक साथ हो चुके हैं चुनाव

'वन नेशन वन इलेक्शन' का मतलब पूरे देश में एक साथ लोकसभा और राज्यों विधानसभाओं के चुनाव से है। यानी वोटर लोकसभा और विधानसभा के लिए एक दिन या चरणबद्ध तरीके से अपना वोट सकेंगे। आजादी के बाद देश में 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही कराए गए। लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले हो गईं। उसके बाद 1970 में लोकसभा भी भंग हुई, जिसके बाद देश में 'वन नेशन वन इलेक्शन' की परंपरा खत्म हो गई।

'वन नेशन वन इलेक्शन' पर तकरार

'वन नेशन वन इलेक्शन' के मुद्दे को लेकर सरकार और विपक्ष आमने-सामने है। दोनों पक्ष अपने अपने हिसाब से इसके फायदे और नुकसान के बारे में बताने में जुटी है। विपक्ष पार्टियां इसका विरोध कर रही है, तो वहीं सरकार के पक्ष के लोगों का कहना है कि देश में अलग-अलग चुनाव कराने से पैसे के साथ-साथ की बर्बादी होती है और अलग-अलग व्यवस्थाएं करनी होती है। इन लोगों का कहना है कि देश में हर हर साल करीब 5-6 राज्यों में चुनाव होते हैं। इससे विकास कार्यों में खलल बाधा पड़ता है। लिहाजा, लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ होने चाहिए।

'वन नेशन-वन इलेक्शन' के पक्ष में लॉ कमीशन 

आपको बता दें कि खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी 'एक देश एक चुनाव' के पक्ष में हैं और इसकी वकालत करते रहते हैं। मई 2014 में केंद्र में मोदी सरकार के आने के कुछ दिन बाद से 'एक देश और एक चुनाव' को लेकर बहस शुरू हो गई थी। इसके बाद दिसंबर 2015 में लॉ कमीशन ने वन नेशन-वन इलेक्शन पर एक रिपोर्ट पेश की थी। इसमें बताया था कि अगर देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभा के चुनाव कराए जाते हैं, तो इससे करोड़ों रुपए बचाए जा सकते हैं।

सरकार के लिए आसान नहीं 'वन नेशन-वन इलेक्शन'

वहीं, कानून के जानकारों का कहना है कि सरकार 'वन नेशन वन इलेक्शन' को लेकर संसद में कानून बना सकती है, लेकिन इसके लिए दो-तिहाई राज्यों की सहमति जरूरत होगी। ऐसे नॉन बीजेपी पार्टियों की सरकारें इसका विरोध करेंगी। देश में अगर एक साथ चुनाव कराए जाते हैं तो सवाल उठता है कि जिन राज्यों में अभी हाल में चुनाव हुए और सरकारें बनी है उन्हें किया बर्खास्त कर दिया जाएगा? ऐसे में इसको लेकर कई कानूनी अड़चनें भी आ सकती हैं। और पढ़िए – देश से जुड़ी अन्य बड़ी ख़बरें यहां पढ़ें


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