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नितिन नवीन… यानि मोदी-शाह का मिशन बिहार अभी जारी है?

जी हां, नीतीश कुमार के सीएम बनने के बाद मोदी और अमित शाह के जिस मिशन बिहार को ‘अकम्पलिस्ड’ माना जा रहा था, वो अभी ‘कम्प्लीट’ नहीं हुआ है। 45 साल के युवा नितिन नवीन को बीजेपी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने का ये सबसे बड़ा निहितार्थ है। बड़े बड़े राजनीतिक विश्लेषकों का ध्यान पता नहीं इस ओर क्यों नहीं जा रहा? ज्यादातर कायस्थ वोट बैंक पर ही अटके हैं, जिससे नितिन नवीन आते हैं। सवाल है कि जब बड़े-बड़े नाम कतार में हों नितिन का ‘आउट ऑफ द ब्लू’ अध्यक्ष बनाया जाना क्या कह रह है? पढ़िए लेखक राजशेखर त्रिपाठी के विचार।

दिल्ती में बीजेपी कार्यवाहक अध्यक्ष का पदभार ग्रहण करने पहुंचे नितिन नवीन। न नवीन

राजशेखर त्रिपाठी

नितिन नवीन की सबसे बड़ी उपलब्धि पीएम मोदी और अमित शाह से करीबी है। ये करीबी भी आज की नहीं 2013 से पहले की है, जब नीतीश खुद को पीएम की कुर्सी का दावेदार मानते थे और मोदी उन्हें फूटी आंख नहीं सुहाते थे। तब मोदी गुजरात से अपना काम पटना में युवा नितिन नवीन से ही कराते थे। इनमें मोदी के अखबारी विज्ञापनों से लेकर सड़क की होर्डिंग लगवाना तक शामिल था। इन्हीं में पंजाब एनडीए की रैली वाली वो तस्वीर भी थी, जिसमें मोदी ने जबरन नीतीश का हाथ पकड़ कर विजयी मुद्रा में ऊपर उठा दिया था। उस वक्त तो नीतीश हंस रहे थे, लेकिन बाद में जब पटना में ये तस्वीरें ‘स्ट्रैटजिकली’ छपने लगीं तो वो खफा हो गए। इतने खफा हुए कि बीजेपी को दिया एक भोज ही कैंसल कर दिया।

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उस वक्त नीतीश का टेरर ऐसा था कि, बीजेपी में भी उनकी मर्जी के बगैर पत्ता नहीं हिलता था। सुशील मोदी बेचारे डिप्टी सीएम थे ज़रूर मगर नीतीश के यस मैन ही माने जाते थे। ऐसे में मोदी ने नितिन नवीन को एक साहसी नौजवान के तौर पर देखा। मोदी-शाह से नितिन की करीबी की ये खबर नीतीश को बखूबी थी। एक बार तो नीतीश ने विधानसभा में नितिन को डपटते हुए कहा – “जो कह रहा हूं चुपचाप सुनो न जी, बाकि हमारे खिलाफ जितना बोलोगे ऊपर तुम्हारा नंबर उतना बढ़ेगा” ऊपर से नीतीश का आशय मोदी और शाह ही था, बिहार एनडीए में तो उनसे ऊपर कोई था नहीं। हालांकि बाद में नीतीश ने नितिन को न चाहते हुए मलाईदार मंत्रालय में बिठाया।

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अब मोदी और शाह ने जब नितिन को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने का बड़ा कदम उठाया है, तो नीतीश लगभग लाचार हैं। गृहमंत्रालय जैसा विभाग उनसे पहले ही छीना जा चुका है। स्पीकर भी बीजेपी ने अपना बना लिया।

ऐसे में नितिन नवीन को राष्ट्रीय अध्यक्ष जैसे पद पर बिठा देना नीतीश कुमार को और श्रीहीन करता है। चर्चा तो थी ही कि चुनाव नतीजों के बाद उन्हें हटा दिया जाएगा, बीजेपी तत्काल ये नहीं कर पायी मगर लगता है उसका ये मिशन खत्म नहीं हुआ है। नितिन नवीन को पार्टी की इकॉनमी क्लास से सीधे फर्स्ट क्लास में अपग्रेड कर देना कहानी तो यही बयान कर रहा है।

मोदी-शाह की जोड़ी ने नितिन नवीन के बहाने एक तीर से कई ‘बड़े शिकार’ किए हैं। यूं तो उनको अभी कार्यकारी अध्यक्ष का ही ‘अपाइंटमेंट लेटर’ मिला है। मगर सबको पता है कि ‘जोर का झटका-धीरे से लगे’ लिहाजा वो अभी ‘प्रोबेशन पीरियड’ पर दिखाए जाएंगे। जेपी नड्डा भी पहले कार्यकारी अध्यक्ष ही बनाए गए थे, बाद में पूर्ण कालिक हुए।

दरअसल बीते डेढ़ साल से संघ नए अध्यक्ष की नियुक्ति का दबाव बना रहा था। आज बीजेपी जिसे सैद्धांतिक तौर पर ‘इलेक्शन’ कह रही है, वो ‘सेलेक्शन’ है। मोदी-शाह की जोड़ी ने अपने आदमी को ही अध्यक्ष बनाया है। भागवत, होसबोले और बी एल संतोष की एक नहीं चली। हां, संघ का जोर दो बातों पर था

  • राष्ट्रीय अध्यक्ष विचारधारा के तौर पर समर्पित संघी होना चाहिए।
  • इस पद पर नई पीढ़ी के नेता को ही मौका दिया जाना चाहिए।

नितिन नवीन का संघ से पुराना नाता है। उनके पिता नवीन सिन्हा बिहार बीजेपी के संस्थापक सदस्यों में से थे। यही वजह है कि जब मोदी-शाह ने तुरुप का इक्का ही चल दिया तो संघ हथियार डालने को मजबूर हो गया।

जहां तक युवा अध्यक्ष बनाने की बात है, मोदी-शाह के इस कदम ने बड़ी लाइन तो खींच ही दी है। सियासी पंडितों का मानना है कि देर-सबेर सबको इस लाइन पर आना पड़ेगा। बुजुर्ग सोशलिस्ट विचारक रघु ठाकुर तक इसकी तारीफ करने से खुद को रोक नहीं पाए। सोशल मीडिया पर उन्होंने लिखा –

“नितिन नवीन का चयन निसंदेह अन्य राजनीतिक दलों के लिए चुनौती साबित होगा और उन्हें भी अपने नेतृत्व की पीढ़ी की उम्र बदलने वाले निर्णय करने को मजबूर करेगा। यह निर्णय भाजपा का है और मैं कोई बीजेपी का समर्थक नहीं हूं ना उसका सदस्य हूं। परंतु राजनीति के लिए यह एक अच्छा कदम माना जाना चाहिए। इस दृष्टिकोण से मैं भाजपा नेतृत्व को साधुवाद देता हूं।“

अब रही कायस्थ वोट बैंक की बात, तो देशभर में इनकी आबादी ही दो-ढाई फीसदी है। इसमें भी यूपी, बिहार और बंगाल में सबसे ज्यादा कुल 2.5 से 3 करोड़। जिस बंगाल चुनाव की वजह से कायस्थ नवीन को अध्यक्ष बनाए जाने की बात कही जा रही है, वहां इनकी संख्या 27-28 लाख बतायी जाती है। बंगाली भद्रलोक में इनकी होड़ सीधे ब्राम्हणों से मानी जाती है। घोष, बोस, दत्ता, दास, गुहा और दीगर सरनेम के साथ ये पूरे बंगाल में बिखरे हैं। लेकिन मुश्किल ये है कि बंगाल का, समाज जाति की लाइन पर उस तरह बंटा नहीं है जिस तरह यूपी और बिहार का। यूपी में इनकी संख्या ज़रूर प्रभावी है।प्रदेश के तीन-चार फीसदी कायस्थ 25 सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं, मगर बिहार में जहां से खुद नितिन आते हैं वहां कायस्थों की आबादी एक फीसदी से भी कम बतायी जाती है।

इसलिए सच का सामना कीजिए, मोदी-शाह की सियासत समझिए, और समझिए कि बतौर अध्यक्ष नितिन नवीन की ‘फंक्शनिंग’ कैसी होगी ।

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News24 उत्तरदायी नहीं है.)


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