TrendingYear Ender 2025T20 World Cup 2026Bangladesh Violence

---विज्ञापन---

अरावली को लेकर मोदी सरकार का बड़ा फैसला, राज्यों को दो टूक-खनन के नए पट्टे की नहीं मिलेगी मंजूरी

Aravalli Hills News: अरावली की पहाड़ियों को लेकर चल रहे विवाद के बीच मोदी सरकार ने बड़ा एक्शन लिया है. पर्यावरण मंत्रालय ने अरावली में नए खनन पट्टे देने पर रोक लगा दी है. साथ ही राज्यों को दो टूक वार्निंग देने हुए कहा है कि अरावली में खनन की नई मंजूरी किसी को नहीं मिलेगी. पूरे लैंडस्केप पर यह नियम समान रूप से लागू होगा.

Aravalli Hills News: अरावली की पहाड़ियों को लेकर केंद्र सरकार ने स्पष्ट आदेश जारी कर दिया है कि अरावली में कोई नया खनन नहीं होगा, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की "100 मीटर" वाली परिभाषा को लेकर अभी भी अस्पष्टता बनी हुई है. इसमें सरकार ने कहीं भी ये जिक्र नहीं किया कि परिभाषा को लेकर सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटीशन दायर की जाएगी. गौरतलब है कि अरावली की पहाड़ियां दिल्ली-एनसीआर से गुजरात तक फैली हैं. अवैध खनन होने के कारण अरावली पर्वत श्रृंखला को काफी नुकसान पहुंचा था. केंद्र सरकार ने अरावली पर्वत श्रृंखला में नए खनन पट्टों (Mining Leases) पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है. पर्यावरण मंत्रालय ने अवैध खनन रोकने के लिए राज्यों को सख्त निर्देश दिए हैं. हालांकि, इस फैसले पर सियासत गरमा गई है.

यह भी पढ़ें: ‘अरावली के साथ छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं करेंगे’, CM भजन लाल का कांग्रेस पर करारा प्रहार, बोले-हर गिरिराज के भक्त

---विज्ञापन---

अरावली को लेकर जमकर चल रही सियासत

अरावली पर्वतमाला को लेकर पिछले कुछ दिनों से जमकर सियासत हो रही है. सरकार के 100 मीटर से ऊंची पहाड़ियों को ही अरावली मानने के मानक पर विवाद शुरू हुआ तो कांग्रेस ने बीजेपी को सीधे कटघरे में खड़ा कर दिया. आरोप है कि इससे खनन माफियाओं की नजर पहाड़ियों की तलहटी पर बने किलों और मंदिरों पर टिक गई. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद डोटासरा ने आरोप लगाया था कि अरावली की नई परिभाषा देकर भाजपा ऐतिहासिक देवस्थानों, महलों और किलों के अस्तित्व को खतरे में डाल रही है. वहीं, बीजेपी प्रवक्ता रामलाल शर्मा ने कांग्रेस के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि अरावली को लेकर जो परिभाषा लागू है, वह नई नहीं है.

---विज्ञापन---

जानें, विवाद का असल मुद्दा क्या है?

हकीकत यह है कि 2010 से पहले ही 100 मीटर या उससे अधिक ऊंची पहाड़ियों को अरावली मानने की परिभाषा तय हो चुकी थी. इसी आधार पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया, जो राजस्थान के साथ-साथ दिल्ली, हरियाणा और गुजरात पर भी लागू होता है. इस परिभाषा के लिए रिचर्ड मर्फी (1968) के लैंडफॉर्म क्लासिफिकेशन को बेंचमार्क माना गया. पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि इसी वजह से अरावली आज अवैध खनन, पानी की कमी, रेगिस्तान के फैलाव और प्रदूषण से जूझ रही है. अब आरोप यह भी है कि पहाड़ियों के कटाव से ऐतिहासिक इमारतों की नींव कमजोर हो रही है, जिससे ये धरोहरें भविष्य में अस्थिर हो सकती हैं.

यह भी पढ़ें: अरावली को ‘बचाने’ नहीं ‘बेचने’ की तैयारी? गहलोत का बड़ा आरोप, बोले- केंद्र की मंशा हुई उजागर


Topics:

---विज्ञापन---