अनंतनाग में शहीद मेजर Ashish Dhonchak का सपना रह गया अधूरा, फैमिली को देने वाले थे खास तोहफा
Major Ashish Dhonchak
Martyr Major Ashish Dhonchak Had Planned To Housewarming Next Month: एक मध्यमवर्गीय परिवार के लिए सबसे अधिक मायने क्या रखती है? आसान सा जवाब रोटी, कपड़ा और मकान है। जम्मू-कश्मीर के अनंगनाग में शहीद हुए मेजर आशीष धोंचक ने भी यही सपना देखा था। जिसे वे पूरा करने में भी कामयाब रहे। उनका हरियाणा के पानीपत में एक तीन मंजिला आलीशान मकान बनकर खड़ा हो गया है। जल्द ही वे अपने परिवार के साथ किराए के अपार्टमेंट से निकलकर मकान में शिफ्ट होने वाले थे। 23 अक्टूबर को उनका बर्थडे था, उस दिन मेजर आशीष बड़ी पार्टी देने वाले थे। लेकिन आशीष को उस नए मकान में रहने का मौका नहीं मिला। परिवार को उनका तिरंगे में लिपटा हुआ पार्थिव शरीर मिलेगा। शुक्रवार को आशीष की पार्थिव देह उनके घर लाए जाने की उम्मीद है।
दरअसल, बुधवार को जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग में आतंकियों के साथ जवानों की मुठभेड़ हुई। इस मुठभेड़ में मेजर आशीष धोंचक, कर्नल और जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक जवान शहीद हो गए। मेजर धोंचक 19 राष्ट्रीय राइफल्स में थे।
पिछले महीने मिला था सेना मेडल
मेजर धोंचक ने पानीपत के सेक्टर 7 में घर बनवाया है। पिछले महीने स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर उन्हें प्रतिष्ठित सेना पदक से सम्मानित किया गया था। उन्होंने अपने दोस्तों और परिवार को बताया था कि वह 13 अक्टूबर को घर आएंगे और वे 23 अक्टूबर को पदक मिलने, उनके जन्मदिन और गृहप्रवेश का जश्न मनाने के लिए एक भव्य पार्टी रखेंगे।
23 अक्टूबर को नए घर में होने वाले थे शिफ्ट
मेजर धोंचक अपने पीछे पत्नी, ढाई साल की बेटी, माता-पिता और अपनी तीन बहनों को छोड़ गए हैं। उन्होंने परिवार से वादा किया था कि वे सभी 23 अक्टूबर के बाद तीन मंजिला इमारत में एक साथ रहेंगे। लेकिन परिवार की खुशियों को क्रूर नियति ने छीन लिया। अब उनका परिवार मेजर के अंतिम दर्शन और उनके अंतिम संस्कार की तैयारी कर रहा है।
पार्थिव शरीर को रिश्तेदारों, दोस्तों और परिचितों के अंतिम दर्शन के लिए घर में रखा जाएगा और दोपहर में पानीपत से लगभग 15 किमी दूर मेजर धोंचक के पैतृक गांव में अंतिम संस्कार किया जाएगा।
बहनोई बोले- घर के लिए कई सामान खुद खरीदना चाहता था
मेजर धोंचक के बहनोई सुरेश ने कहा सेना मेडल मिलने के बाद मैंने आशीष से बात की और उसने मुझसे कहा था कि देश में अब कम दुश्मन हैं। उसने मंगलवार को अपनी बहन से बात की। नया घर तैयार है और वे शिफ्ट नहीं हुए थे क्योंकि आशीष ने कहा था कि वह घर के लिए कुछ चीजें खुद खरीदना चाहता है। 23 अक्टूबर को उसके जन्मदिन के लिए गृहप्रवेश की योजना बनाई गई थी।
बहन से हुई थी आखिरी बात
ऑपरेशन से पहले उसने अपनी बहन से कहा कि उसे एक तलाशी अभियान के लिए जाना है और वह दो-चार घंटे बाद फोन करेगा। लेकिन उसने कभी फोन नहीं किया। उसकी यूनिट से किसी ने हमें बुधवार दोपहर को फोन किया और कहा कि गोलीबारी के बाद वह बुरी तरह घायल हो गया है। हमें लगा कि वह ठीक हो जाएगा। रात में, हमें मीडिया रिपोर्टों से पता चला कि उसकी मृत्यु हो गई है।
सुरेश ने कहा कि किसी भी मां को इस तरह का कष्ट नहीं उठाना चाहिए। हमारे सैनिक बार-बार तिरंगे में लिपटे हुए वापस आ रहे हैं।
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