सेमेस्टर पेपर में पूछे गए एक सवाल को लेकर जामिया मिलिया इस्लामिया के प्रोफेसर को सस्पेंड कर दिया गया. इस सवाल को लेकर सोशल मीडिया पर काफी विवाद हुआ. विश्वविद्यालय ने मामले की जांच के लिए एक कमेटी भी बना दी. यह विवाद इसी सप्ताह हुए बीए (ऑनर्स) सोशल वर्क के पहले सेमेस्टर की परीक्षा के एक सवाल को लेकर शुरू हुआ. यह सवाल 'भारत में सामाजिक समस्याएं' नाम के पेपर में पूछा गया था.
सवाल में छात्रों से कहा गया था कि 'उपयुक्त उदाहरण देते हुए भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों के खिलाफ होने वाले अत्याचारों पर चर्चा करें.'
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प्रोफेसर वीरेंद्र बालाजी शहारे ने यह एग्जाम पेपर तैयार किया था. शिकायत के बाद, विश्वविद्यालय ने इसे लापरवाही और असावधानी करार दिया. यूनिवर्सिटी का कहना है कि जब तक जांच कमेटी की रिपोर्ट नहीं आ जाती, तब तक प्रोफेसर निलंबित रहेंगे.
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उनके सस्पेंशन ऑर्डर पर कार्यवाहक रजिस्ट्रार सीए शेख सफीउल्लाह के साइन हैं. यह ऑर्डर भी सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो रहा है. आदेश में यह भी कहा गया है कि 'निलंबन के दौरान प्रोफेसर शहारे नई दिल्ली में ही रहेंगे, और वह सक्षम प्राधिकारी की पूर्व अनुमति के बिना मुख्यालय नहीं छोड़ेंगे.'
उसी आदेश में यह भी पुलिस एफआईआर दर्ज किए जाने का भी जिक्र किया गया था. हालांकि, रिपोर्ट्स के मुताबिक, विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने बाद में स्पष्ट किया कि वर्तमान में प्रोफेसर के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का कोई इरादा नहीं है.
सोमवार को एग्जाम पेपर की तस्वीरें ऑनलाइन शेयर की जाने लगीं. इसको लेकर कई यूजर्स ने तीखे रिएक्शन दिए हैं. यूजर्स ने राजनीतिक या सांप्रदायिक पूर्वाग्रह का आरोप लगाया.
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की वरिष्ठ सलाहकार कंचन गुप्ता के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर सस्पेंशन नोटिस शेयर किए जाने के बाद यह मुद्दा और अधिक चर्चा में आ गया. कंचन गुप्ता ने पेपर सेट करने वाले प्रोफेसर की आलोचना करते हुए लिखा, 'जामिया मिलिया इस्लामिया एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है. यहां सभी समुदाय के छात्र पढ़ते हैं. यह प्रश्न दुर्भावनापूर्ण इरादे को दर्शाता है.'
हालांकि, जामिया मिलिया इस्लामिया ने निलंबन आदेश के अलावा कोई विस्तृत सार्वजनिक बयान जारी नहीं किया. जांच कमेटी इस बात की जांच करेगी कि सवाल कैसे तैयार और मंजूर किया गया. कमेटी के नतीजों के आधार पर ही इस मामले में अगली कार्रवाई तय की जाएगी.