Indira Gandhi: सख्त रवैया, विवादों से नाता, 2 फैसले पड़े जान-करियर पर भारी, ‘आयरन लेडी’ के अनसुने किस्से
इंदिरा गांधी 1971 के मध्यावधि चुनाव में तीसरी बार प्रधानमंत्री बनी थीं।
Indira Gandhi Birth Anniversary Special: आज 19 नवंबर को देश की पहली और एकमात्र महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की 106वीं जयंती है। आज ही के दिन 1917 में नेहरु परिवार में इंदिरा का जन्म हुआ। ब्राह्मण परिवार में जन्मीं, बनिये से की शादी और 1966 में प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के अचानक निधन के बाद मोरारजी देसाई को हराकर प्रधानमंत्री बनीं। सख्त रवैया था, पर हर दिल अजीज थीं। विवादों से भी नाता रहा, पर हर दिल में बसती थीं, लेकिन 2 फैसलों ने जहां उनका करियर बर्बाद किया, वहीं उनकी जान भी ले ली। अगर वह वे 2 फैसले न लेतीं तो न इमरजेंसी लगती, न ऑपरेशन ब्लू स्टार होता और न उनकी हत्या होती। 31 अक्टूबर 1984 की सुबह उनके अपने सिख सुरक्षा कर्मियों ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी थी। आइए BBC की रिपोर्ट और उन पर लिखी गई एक किताब के अनुसार, इंदिरा गांधी के जीवन से जुड़े कुछ अनसुने किस्सों पर बात करते हैं...
बहादुर, धर्म निरपेक्ष और मजबूत शख्सियत
इंदिरा गांधी के एक फैसले की वजह से देश में इमरजेंसी लगी थी। सिखों के पवित्र स्थल स्वर्ण मंदिर में ऑपरेशन ब्लू स्टार हुआ। गोलियां चलीं, लाशें बिछीं। स्वर्ण मंदिर में सेना भेजने के कारण पूरे भारत के सिखों में इंदिरा गांधी के प्रति जबरदस्त असंतोष और गुस्सा था। उन्हें जान से मारने की धमिकयां मिल रही थीं, लेकिन वे निडर रहीं। वे ऐसी निर्भीक महिला थीं कि उन्हें अपनी जान की परवाह नहीं थी। इंदिरा बहुमुखी प्रतिभा की धनी थीं। विचारों से पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष थीं। हिंदुओं, मुस्लिमों, सिखों के बीच किए जाने वाले किसी भी भेदभाव का कड़ा विरोध करती थीं। यहां तक कि जान से मारने की धमकी मिलने के बाद भी पार्टी के कहने पर उन्होंने अपने निजी सिख अंगरक्षकों को बदलने से इनकार कर दिया था। पार्टी द्वारा सिख सुरक्षा कर्मियों को जबरन हटाए जाने के बाद वह नाराज हो गई थीं। उन्होंने खुद अपने सिख सुरक्षा कर्मियों को वापस बुलाया, लेकिन बदकिस्मती से उन्होंने ही उनकी जान ले ली।
जब नाक टूटने पर भी बोलती रहीं इंदिरा गांधी
1967 के चुनाव में उड़ीसा में एक जनसभा करने गई थीं। जैसे ही इंदिरा ने बोलना शुरू किया, भीड़ ने पत्थरों की बारिश कर दी। नेताओं ने उनसे भाषण समाप्त करने का अनुरोध किया, लेकिन उन्होंने बोलना जारी रखा। वह कह ही रही थीं कि क्या इसी तरह आप देश को बनाएंगे? क्या आप इसी तरह के लोगों को वोट देंगे कि एक पत्थर उनकी नाक पर आ लगा। खून बहने लगा। उन्होंने अपने दोनों हाथों से खून पोंछा। नाक की हड्डी टूट गई थी. लेकिन इंदिरा गांधी इससे विचलित नहीं हुईं। चेहरे पर प्लास्टर लगाए पूरे देश में चुनाव प्रचार किया। अपनी नाक के लिए संवेदनशील रहने वाली इंदिरा गांधी ने खुद को लेकर मज़ाक भी किया कि उनकी शक्ल बिल्कुल 'बैटमैन' जैसी हो गई है। इससे पता चलता है कि उनके अंदर कितना जोश और लड़ने की कितनी क्षमता थी। काफ़ी ख़ून बह जाने के बावजूद वे घबराईं नहीं और चुनाव प्रचार जारी रखा।
तड़क-भड़क से चिढ़, पर साड़ियों का शौक रहा
'इंदिरा: इंडियाज़ मोस्ट पॉवरफ़ुल प्राइम मिनिस्टर' किताब लिखने वाली सागरिका घोष बताती हैं कि इंदिरा तड़क-भड़क से दूर रहती थीं। इंदिरा गांधी के पास हैंडलूम साड़ियों का अच्छा कलेक्शन था। उनके लिए साड़ियां दोस्त पुपुल जयकर खरीदकर लाया करती थीं। उनको चमकदार रंग जैसे केसरिया और हरा काफी पसंद थे। इंदिरा ज़ेवर नहीं पहनती थीं, लेकिन रुद्राक्ष की माला उनके गले में होती थी। मर्दों की तरह पर कलाई घड़ी बांधती थी। कभी-कभी हाई हील सैंडिल पहनती थीं, लेकिन उनको दिखावे से बहुत चिढ़ थी। इंदिरा अपने पिता से ज़्यादा वेस्टर्न थीं। सुबह 6 बजे उठना। आधा घंटा योग करतीं। 8 बजे नहाने जाती थीं। हमेशा ठंडे पानी से नहाती थीं, चाहे हाड़ कंपाती ठंड पड़ जाए। नाश्ते में थोड़ा जला टोस्ट, आधा उबला अंडा, एक फल और मिल्क कॉफ़ी लेती थीं। दोपहर में दाल, रोटी और एक सब्जी, वहीं रात में यूरोपीय खाना खाती थीं। इंदिरा ने कभी शराब नहीं पी।
एक फ़ैसला जो भारी पड़ा इंदिरा के करियर पर...
1971 में रायबरेली के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी जीती थीं, लेकिन उनकी जीत को प्रतिद्वंद्वी राजनरायण ने चुनौती हाईकोर्ट में चुनौती दी। 1975 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फ़ैसले ने इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द कर दिया। इंदिरा गांधी की तरफ से मशहूर वकील एन पालखीवाला ने फैसले के खिलाफ अपील सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की। 22 जून 1975 को जस्टिस वीआर कृष्ण अय्यर ने सुनवाई की। 24 जून 1975 को जस्टिस अय्यर ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फ़ैसले को स्थगित कर दिया, लेकिन यह आंशिक स्थगन था। अय्यर ने फैसला दिया था कि इंदिरा गांधी संसद की कार्यवाही में भाग ले सकती हैं, लेकिन वोट नहीं कर सकतीं। इस फ़ैसले के बाद विपक्ष ने इंदिरा गांधी पर हमले तेज़ कर दिए। 25 जून को दिल्ली में जयप्रकाश नारायण की रैली रामलीला मैदान में हुई। इसी रैली के बाद इंदिरा गांधी ने आधी रात को देश में आपातकाल की घोषणा कर दी। इसके बाद उनका राजनीतिक करियर बर्बाद होने लगा था।
दूसरा फ़ैसला जो भारी पड़ा इंदिरा की जान पर...
5 अक्टूबर 1983 को सिख उग्रवादियों ने कपूरथला से जालंधर जा रही बस रोक ली और इसमें सवार हिंदू सवारियों को मार दिया। इस घटना से इंदिरा गांधी भड़क गईं। उन्होंने अगले ही दिन पंजाब में कांग्रेस के मुख्यमंत्री दरबारा सिंह की सरकार को भंग करके राष्ट्रपति शासन लगा दिया। सहयोगियों से चर्चा के बाद फैसला लिया कि स्वर्ण मंदिर को भिंडरवाला समर्थकों से खाली कराया जाएगा। ऑपरेशन का नाम रखा गया 'ऑपरेशन सन डाउन'। सरकार और सेना दोनों तैयार थीं, लेकिन आखिरी पलों में इंदिरा ने सेनाध्यक्ष RS वैध से सवाल पूछा कि ऑपरेशन में कितने लोगों की जान जा सकती है, जिसके जवाब में बताया गया 30-40 लोग मर सकते हैं। यह सुनते ही इंदिरा ने प्लान खारिज कर दिया, लेकिन सेनाध्यक्ष ने आश्वासन दिया कि कोई मारा नहीं जाएगा। सैन्य अधिकारियों ने इंदिरा गांधी को अंधेरे में रखा, जिसकी कीमत 500 से ज्यादा लोगों को जान देकर चुकानी पड़ी। इसी ऑपरेशन का बदला लेने के लिए उनकी हत्या की गई।
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