अब युद्ध की नीति और तकनीक बदल गई है और इसकी वजह है छह देशों में चला युद्ध. रूस-यूक्रेन, आर्मेनिया-अजरबैजान, हमास और इजरायल ने जिस स्ट्रेटजी से युद्ध किया उसे देखकर लगता है कि भविष्य में युद्ध के लिए पुरानी तकनीकों को छोड़कर नई पर काम करना होगा. ऑपरेशन सिंदूर के वक्त भी कम्युनिकेशन का शानदार इस्तेमाल हुआ. भारत के रक्षा मंत्रालय ने ये भी तय किया था कि भारत की तीनों सेना अपने मित्र देशों के साथ हर साल वॉर की मॉक ड्रिल करेगी. युद्धाभ्यास से सेनाएं एक दूसरे के साथ अपनी युद्ध नीति साझा करेगी. इसी कड़ी में भारतीय थल सेना मलेशिया की थल सेना के साथ राजस्थान के महाजन फिल्ड ग्राउंड में युद्धाभ्यास कर रही है. ये जगह पाकिस्तान से महज 90 किलोमीटर की दूरी पर है, तो जाहिर है कि पाकिस्तान को भारतीय तोपों और हथियारों की गर्जना साफ सुनाई दे रही होगी.
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क्या है हरिमाऊ शक्ति 2025?
भारतीय सेना का मानना है कि मलेशिया जैसे छोटे देशों के साथ युद्ध नीति साझा करना इसलिए जरूरी है ताकि सही तकनीक की परीक्षा हो सके. मेजर जनरल राजन कोचर के मुताबिक किसी भी दुश्मन को कमजोर नहीं समझना चाहिए. वो किसी भी वक्त वार कर सकता है. इस युद्धाभ्यास का नाम हरिमाउ शक्ति रखा गया है, जिसका मतलब होता है बाघ. भारतीय सेना ने न्यूज 24 से बातचीत करते हुए कहा कि इस युद्द अभ्यास में जंगल युद्द, आंतक विरोधी अभियान, गलवान युद्द के बाद अब सेना को मार्शल युद्द की भी स्पेशल ट्रेनिंग दी जा रही है.
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क्यों जरूरी है युद्धाभ्यास?
वॉर मॉक ड्रिल में एमआई-17 हेलिकॉप्टर से रेंगकर उतरना, लो-हॉवर जंप और काउंटर-आईईडी से जुड़ी जानकारियां साझा की जा रही हैं. दोनों सेनाएं कॉर्डन-एंड-सर्च, सर्च-एंड-डिस्ट्रॉय मिशन, हेलिबोर्न ऑपरेशंस और कॉम्बैट रिफ्लेक्स शूटिंग जैसी गतिविधियों का अभ्यास कर रही हैं. साल 2012 में भारतीय थल सेना और मलेशिया की थल सेना के बीच एक रक्षा करार हुआ था कि दोनों देश हर साल एक दूसरे के साथ युद्द अभ्यास करेंगे. ये एक वार्षिक द्विपक्षीय सैन्य अभ्यास है. ये दोनों देशों में बारी-बारी से आयोजित किया जाता है. इस युद्द अभ्यास में भारतीय सेना की तरफ से डोगरा रेजिमेंट और मलेशिया की तरफ से रॉयल मलेशियन आर्मी की 25वीं बटालियन शामिल है.
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