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मद्रास HC ने कौनसे केस में दी पैगंबर मोहम्मद की सीख का हवाला, मदुरै नगर निगम को लगाई फटकार

कोर्ट एक पूर्व वकील की याचिका पर सुनवाई कर रही थी. वकील ने दावा किया था कि नगर निगम ने उन्हें 13.05 लाख रुपये की बकाया राशि नहीं चुकाई.

पैगंबर मोहम्मद की शिक्षाओं का हवाला देते हुए, मद्रास हाईकोर्ट एक ऐसे वकील की मदद के लिए आगे आया है, जो एक नगर निगम से अपनी बकाया कानूनी फीस वसूलने के लिए संघर्ष कर रहा है. कोर्ट ने कहा कि निष्पक्षता का सिद्धांत श्रम और सेवा कानून पर समान रूप से लागू होना चाहिए. जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन ने पैगंबर की शिक्षा - 'मजदूर को उसका पसीना सूखने से पहले भुगतान करें' -  का जिक्र करते हुए कहा, ‘यह सिद्धांत निष्पक्षता का ही एक हिस्सा है और श्रम कानून में पूरी तरह लागू होने योग्य है.’

क्या है मामला?

कोर्ट एक पूर्व वकील, पी. थिरुमलाई की याचिका पर सुनवाई कर रही थी. वकील ने दावा किया था कि नगर निगम ने उन्हें 13.05 लाख रुपये की बकाया राशि नहीं चुकाई. इससे पहले, हाईकोर्ट ने निगम को वकील की अर्जी पर विचार करने को कहा था, जिसके बाद निगम ने दावे के एक बड़े हिस्से को खारिज कर दिया था. इसी वजह से यह नई याचिका दायर की गई.

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हाईकोर्ट ने पूर्व वकील को जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण के पास जाने को कहा. साथ ही प्राधिकरण को उन केसों की लिस्ट सौंपने का निर्देश दिया, जिनमें वह पेश हुए थे. 

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कोर्ट ने निगम को निर्देश दिया कि वह दो महीने के भीतर बिना ब्याज के फीस के बिलों का निपटारा करे। ब्याज न देने का कारण यह बताया गया कि याचिकाकर्ता ने 18 साल की देरी के बाद अपनी आवाज उठाई थी.

जस्टिस स्वामीनाथन ने इसे "शर्मिंदगी की बात" बताया कि राज्य में करीब एक दर्जन 'अतिरिक्त महाधिवक्ता' हैं। उन्होंने कहा कि जब बहुत ज्यादा कानून अधिकारी नियुक्त किए जाते हैं, तो हर किसी को काम देना पड़ता है। नतीजा यह होता है कि उन्हें ऐसे मामले भी सौंप दिए जाते हैं जिनमें उनकी जरूरत ही नहीं होती।

उन्होंने यह भी कहा कि जब कोर्ट में केस पुकारा जाता है, तो सरकारी वकील यह कहकर सुनवाई टालने की मांग करते हैं कि 'अतिरिक्त महाधिवक्ता' कहीं और व्यस्त हैं। जज ने उम्मीद जताई कि 2026 से ऐसी प्रथाएं बंद होंगी।

साथ ही कोर्ट ने कहा कि वह वरिष्ठ वकीलों और कानून अधिकारियों को दी जाने वाली फीस की जांच तो नहीं कर सकती, लेकिन "अच्छे शासन" के लिए जरूरी है कि सरकारी खजाने का पैसा सोच-समझकर खर्च किया जाए, न कि कुछ पसंदीदा लोगों को मनमाने ढंग से बांटा जाए।

थिरुमलाई के दावे को उनकी मेहनत के मुकाबले "बहुत मामूली" बताते हुए कोर्ट ने चिंता जताई कि कुछ कानून अधिकारियों और वरिष्ठ वकीलों को सरकारी संस्थानों द्वारा ‘बहुत ज्यादा’ पैसा दिया जा रहा है.

कहानी प्वाइंटर्स में

  • पी. थिरुमलाई 1992 से 2006 तक (14 साल से अधिक) मदुरै नगर निगम के वकील थे.
  • उन्होंने जिला अदालतों में लगभग 818 केसों में निगम का पक्ष रखा था.
  • वकील की आर्थिक हालत ऐसी नहीं थी कि वह रिकॉर्ड निकालने के लिए कोई क्लर्क रख सकें, इसलिए कोर्ट ने जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण को खुद रिकॉर्ड इकट्ठा करने का आदेश दिया.
  • इसका जो भी खर्च आएगा, वह निगम उठाएगा और बाद में वकील के अंतिम भुगतान से काट लिया जाएगा.


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