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‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का इकॉनमी पर क्या पड़ेगा असर? JPC की बैठक में एक्सपर्ट्स ने बताया

विशेषज्ञों ने 'वन नेशन, वन इलेक्शन' को चुनावी व्यवस्था के साथ-साथ आर्थिक स्थिरता और विकास के लिए एक अहम सुधार बताया.

'वन नेशन, वन इलेक्शन' पर JPC की बैठक की अध्यक्षता बीजेपी सांसद पीपी चौधरी ने की.

'वन नेशन, वन इलेक्शन' पर बुधवार को JPC की बैठक हुई. बीजेपी सांसद पीपी चौधरी की अध्यक्षता में हुई बैठक में 'वन नेशन, वन इलेक्शन' का अर्थव्यवस्था पर असर को लेकर विशेषज्ञों ने अपनी राय दी. बैठक में विशेषज्ञों ने 'वन नेशन, वन इलेक्शन' को चुनावी व्यवस्था के साथ-साथ आर्थिक स्थिरता और विकास के लिए एक अहम सुधार बताया. हार्वर्ड प्रोफेसर गीता गोपीनाथ ने कहा कि इससे देश की इकॉनमी पर पॉजिटिव असर पड़ सकता है. उन्होंने कहा कि अगर ऐसा होता है तो जीडीपी में बढ़ोतरी के भी चांसेज हैं. वहीं, दूसरे एक्सपर्ट संजीव सान्याल ने कहा, सरकारी स्थिरता के साथ-साथ नीति निर्माण में निरंतरता आएगी.

हार्वर्ड प्रोफेसर और IMF की पूर्व डिप्टी एमडी, गीता गोपीनाथ ने कहा कि 'वन नेशन, वन इलेक्शन' से चुनावों की संख्या कम होगी. इससे देश की अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक असर पड़ेगा. उन्होंने इसे मैक्रोइकोनॉमिक दृष्टि से एक सकारात्मक सुधार बताया. उन्होंने कहा कि आंकड़े बताते हैं कि चुनावी वर्षों में निजी निवेश प्रभावित होता है. चुनाव के साल में निजी निवेश में लगभग 5% की गिरावट आती है और बाद के वर्षों में भी इसकी पूरी भरपाई नहीं हो पाती.

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उनके अनुसार, चुनावों की संख्या घटने से अनिश्चितता कम होगी, जिससे निजी निवेश को बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने यह भी बताया कि चुनावी वर्षों में प्राइमरी डेफिसिट बढ़ता है और पूंजीगत खर्च में कमी आती है. ऐसे में एक साथ चुनाव कराने से सरकारी खर्च की दक्षता और संरचना दोनों में सुधार हो सकता है. इन सभी कारकों के संयुक्त प्रभाव से GDP में 1.5% तक की बढ़ोतरी संभव है. वन नेशन, वन इलेक्शन केवल चुनावी सुधार नहीं, बल्कि एक मजबूत आर्थिक सुधार भी है.

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प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य, संजीव सान्याल ने कहा, 'वन नेशन, वन इलेक्शन' से चुनावों की संख्या कम होने की वजह से लागत में कमी आएगी. हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि केवल पैसों की बचत ही इसका मुख्य कारण नहीं है. उनके मुताबिक, अलग-अलग समय पर होने वाले चुनावों से अर्थव्यवस्था पर अप्रत्यक्ष लेकिन गंभीर प्रभाव पड़ता है. बार-बार चुनाव होने से नीतिगत निरंतरता बाधित होती है, नेतृत्व का ध्यान बार-बार चुनावी प्रचार में चला जाता है और आदर्श आचार संहिता बार-बार लागू होने से विकास कार्य प्रभावित होते हैं.

साथ ही संजीव सान्याल ने कहा कि 'वन नेशन, वन इलेक्शन' से केंद्र और राज्यों के मुद्दों पर एक साथ चर्चा संभव होगी, जिससे नीति निर्माण में निरंतरता आएगी. उन्होंने यह भी कहा कि इससे सरकारी स्थिरता बढ़ेगी, जो दीर्घकालिक फैसलों और नीति नियोजन को मजबूत करेगी.


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