हिजाब के लिए पढ़ाई लिखाई तो नहीं छोड़ सकते!
नई दिल्ली: आजादी के 75 साल बाद जब देश अमृत काल मना रहा है, इस देश की सबसे बड़ी अदालत इस मसले पर सुनवाई कर रही है कि स्कूलों में पढ़ने वाली लड़कियां अपना सिर ढँककर स्कूल जा सकती हैं या नहीं? सुप्रीम कोर्ट में इस सवाल का जवाब ढूँढने की कोशिश हो रही है। संविधान के प्रावधानों और कुरान के सूरा और आयतों के आलोक में दलीलें पेश हो रही हैं।
इस बीच कोर्ट को यह बताया गया कि कर्नाटक में हिजाब बैन के फैसले के चलते भारी संख्या में मुस्लिम लड़कियों ने स्कूल जाना छोड़ दिया है। हिजाब बैन के खिलाफ दलील देते हुए वरिष्ठ वकील हुजैफा अहमदी ने PUCL की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कोर्ट को बताया कि हिजाब बैन के फैसले के बाद करीब 17 हजार लड़कियों ने स्कूल जाना छोड़ दिया। अगर यह सच है तो चिंताजनक बात है। इसलिए यह सवाल उठता है कि क्या हिजाब के लिए पढ़ाई लिखाई छोड़ देंगे?
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सुप्रीम कोर्ट में दो जजों जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच हिजाब बैन को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। राजीव धवन, कपिल सिब्बल, प्रशांत भूषण, कोलिन गोंजाल्विस, हुजैफा अहमदी जैसे बड़े वकील और अब्दुल मजीद दार और निजाम पाशा जैसे इस्लामिक लॉ और कुरान के जानकार वकील यह साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि स्कूलों जाने वाली लड़कियों को हिजाब पहनकर जाना उनका अधिकार है। उनको हिजाब पहनने से रोकना उनके मौलिक अधिकार का हनन है।
स्कूलों में जब पगड़ी, तिलक और क्रॉस को बैन नहीं किया गया तो फिर हिजाब पर बैन क्यों? यह सिर्फ एक धर्म को निशाना बनाने के लिए किया गया है। अगर रोकना है तो मिनी स्कर्ट पहनने से रोका जा सकता है, ना कि हिजाब से। हिजाब से तो सर ढंकता है। जहां तक शैक्षणिक संस्थानों के सुचारू संचालन, उनकी मर्यादा और नैतिकता का सवाल है तो हिजाब से इन भावनओं को कोई ठेस नहीं पहुंचता है।
धर्म से जुड़े मामलों को मौलिक अधिकारों की कसौटी पर सही ठहराने के लिए अदालत यह देखती है कि कोई प्रथा, रिवाज उस धर्म का अनिवार्य हिस्सा है या नहीं। हिजाब पहनने को लेकर भी इस तरह की बहस हो रही है। मुस्लिम पक्ष चाहता है कि हिजाब पहनने का अधिकार मौलिक अधिकार से जुड़ा है इसलिए इसे बड़ी बेंच को भेज दिया जाना चाहिए। लेकिन अदालत में एक सवाल पर चर्चा अभी भी नहीं हो रही है कि हिजाब के लिए पढ़ाई लिखाई से कैसे समझौता किया जा सकता है? यह सवाल अदालत से भी हो सकता है। यही सवाल सरकार से और उन लोगों से भी जो हिजाब पहनने के अधिकार को शिक्षा से अधिक महत्व दे रहे हैं!
हिजाब विवाद की शुरुआत कर्नाटक के उडुपी के एक सरकारी प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज से हुआ जब मुस्लिम छात्राओं को हिजाब पहनकर क्लास में जाने से रोक दिया गया था। मुस्लिम लड़कियों ने संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों की दुहाई देते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। दलील दी कि हिजाब पहनने की अनुमति न देना संविधान के अनुच्छेद 14 और 25 के तहत उनके मौलिक अधिकारों का हनन है। मामला अदालत गया लेकिन अदालत तक ही सीमित नहीं रहा। क्योंकि इसमें धर्म का एंगल था, सियासत शुरू हो गयी।
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हाईकार्ट ने फैसला सुनाया हिजाब पहनना इस्लाम धर्म में आवश्यक धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है और उसने कक्षाओं में हिजाब पहनने की अनुमति देने के लिए मुस्लिम छात्राओं की खाचिकाएं खारिज कर दी। हाईकोर्ट के फैसले के बाद राज्य सरकार की तरफ से एक सर्कुलर जारी हुआ कि शैक्षणिक संस्थानों में स्कार्फ, हिजाब, भगवा शॉल जैसे कपड़े पहनकर आने की इजाजत नहीं होगी।
हाईकोर्ट और सरकार के फैसले को मुस्लिम लड़कियों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। हिजाब बैन को लेकर कुछ दिन खूब होहल्ला मचा। लेकिन फिर हमेशा की तरह सियासत को नया मुद्दा मिल गया और यह मुद्दा फिलहाल कोर्ट तक सिमट कर रह गया है। यह मुद्दा एक बार फिर जोर पकड़ेगा जब सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला सुनाएगा।
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