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Happy Birthday Firaq Gorakhpuri : महान शायर फिराक का नेहरू से था खास रिश्ता, फिर भी ठुकरा दिया था इंदिरा गांधी एक अनुरोध

Happy Birthday Firaq Gorakhpuri : 20वीं सदी के सबसे चर्चित शायर फिराक गोरखपुरी की आज (28 अगस्त) जयंती है। जिंदगी के दर्द को अपनी शायरी में उतारने वाले फिराक गोरखपुरी उर्फ रघुपति सहाय को जयंती पर जमाना याद कर रहा है। जन्म दिन पर बेशक कोई समारोह या आयोजन नहीं है, लेकिन फिराक साहब आज […]

Happy Birthday Firaq Gorakhpuri
Happy Birthday Firaq Gorakhpuri : 20वीं सदी के सबसे चर्चित शायर फिराक गोरखपुरी की आज (28 अगस्त) जयंती है। जिंदगी के दर्द को अपनी शायरी में उतारने वाले फिराक गोरखपुरी उर्फ रघुपति सहाय को जयंती पर जमाना याद कर रहा है। जन्म दिन पर बेशक कोई समारोह या आयोजन नहीं है, लेकिन फिराक साहब आज भी अपनी शानदार शायरी के जरिये लोगों के जेहन में जिंदा हैं। उन्हें दुनिया से रुख़सत हुए 40 बरस से अधिक हो चुके हैं, लेकिन उनके शेर-ओ-शायरी आज भी उतनी ही मौजूं है, जितनी पुराने दौर में थी। ‘आने वाली नस्लें तुम पर रश्क करेंगी हमअस्रों, जब ये ख्याल आएगा उनको, तुमने फ़िराक़ को देखा था’ यह शेर फिराक साहब ने अपने लिए लिखा था और कितना सच है। हम फिराक गोरखपुरी की जयंती पर बता रहे हैं कि उनसे जुड़े रोचक किस्से, यादें और कहानियां...।

माहौल ने बना दिया मुकम्मल

28 अगस्त, 1896 को गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) में जन्में रघुपति सहाय उर्फ फिराक गोरखपुरी को शायरी विरासत में मिली। पिता मुंशी गोरख प्रसाद पेशे से वकील थे, लेकिन शायरी भी अच्छी लिख लेते थे। यह वह दौर था जब उर्दू अदब को खासा पसंद किया जाता था। उर्दू जुबान उस दौर में वह रुतबा हासिल कर चुकी थी, जो जुबान से निकलकर सामने वाले के दिलों में उतर जाती थी। खैर, पिता को शायरी लिखते और पढ़ते देखकर रघुपति सहाय का मन भी शेर-ओ-शायरी में खूब रमता था। फिर क्या था माहौल और घर में ही गुरु मिला तो शायरी में फिराक साहब चटख रंग भरते रहे और आज के दिन जमाना अपने पसंदीदा शायर को याद कर रहा है।

फिराक ने दिलीप कुमार को पहचानने से कर दिया था इन्कार

ट्रैजेडी किंग के नाम से मशहूर दिलीप कुमार का बॉलीवुड में जलवा था और इधर फिराक गोरखपुरी भी शायरी की दुनिया के चमकते सितारे बन चुके थे। साल 1960 के किसी महीने की बात है। मुंबई में एक बड़ा जलसा था, जिसमें एक्टर दिलीप कुमार को बतौर मुख्य अतिथि आमंत्रित किया गया था। फिराक साहब पहले से बैठे थे। इस बीच दिलीप कुमार साहब आ गए तो महफिल में हलचल मच गई। सब लोग खड़े हो गए, लेकिन फिराक गोरखपुरी अपनी जगह पर बैठे रहे।

... जब दिलीप को फिराक ने लगा लिया गले

दिलीप कुमार खुद उनके पास गए तो उन्होंने कहा- आप कौन? दिलीप साहब ने भी बड़ी ही विनम्रता से अपना परिचय दिया, बावजूद इसके कि वह यह भी जानते थे कि फिराक को उनके बारे में बखूबी जानकारी है। दिलीप साहब की उर्दू जुबान अच्छी थी और उन्होंने सामने बैठे शायर फिराक गोरखपुरी की जमकर तारीफ की। इस पर फिराक साहब खड़े हुए और उन्होंने दिलीप कुमार को गले लगा लिया। [caption id="attachment_320379" align="alignnone" ] Firaq Gorakhpuri[/caption] कहा जाता है कि कलाकार की निजी जिंदगी में कभी झांका नहीं करते, क्योंकि कई बार यह बेहद पथरीली और खुरदरी निकलती है। शायर फिराक गोरखपुरी के साथ भी ऐसा ही था। वह अपने एक रिश्ते से दुखी थे। दरअसल, फिराक गोरखपुरी आइसीएस क्लीयर कर चुके थे। अंग्रेजी के प्रख्यात प्रोफेसर थे, लेकिन दूसरी ओर उनकी पत्नी किशोरी देवी अनपढ़ थीं। इसका मलाल फिराक साहब को तमाम उम्र रहा। उन्होंने पत्नी को पढ़ाने की तमाम कोशिश की। इसके लिए अंग्रेजी भाषा सीखने की तमाम किताबें लेकर आए, लेकिन फिराक की यह कोशिश पत्नी पर बेअसर रही। इस वजह से वह बहुत निराश थे। एक दौर आया जब वह पत्नी को पीटने तक लगे थे। कहा जाता है कि कई बार उन्होंने अपनी पत्नी को सार्वजनिक तौर पर भी पीटा है। यह भी सच है कि पत्नी से मिले दर्द को उन्होंने अपनी शायरी में उतारा।

पत्नी को आती थी सिर्फ अवधी-भोजपुरी

बेशक फिराक साहब अंग्रेजी के विद्वान थे, लेकिन अनपढ़ पत्नी किशोरी देवी को लेकर बहुत चिंता रहती थी। स्थिति यह थी कि किसी जलसे-कार्यक्रम में जाते तो दूसरे लोग पत्नियों के साथ होते तो फिराक साहब अकेले जाते थे। फिराक साहब की पत्नी बिल्कुल देहाती थी, लेकिन वह चाहते थे कि पत्नी कम से कम बड़े लोगों की तरह उठना-बैठना और बातचीत करना सीख ले। ऐसा नहीं हुआ तो वह अकेले ही प्रोग्राम में जाते। कहा जाता है कि फिराक गोरखपुरी से उनकी पत्नी सिर्फ सुबह और शाम को बात करती थी। उनके रटे रटाए दो वाक्य होते थे। रात को सोते समय पूछतीं ‘कब जइबा’ और सुबह घर से निकलते समय पूछतीं ’कब आइबा’।

धोखा देकर कराई गई थी फिराक की शादी

बताया जाता है कि फिराक गोरखपुरी की शादी उनके करीबी और परिवार के जानने वाले ने कराई थी। फिराक साहब चाहते थे कि उनकी शादी किसी पढ़ी-लिखी लड़की से हो। यह बात शादी कराने वाले और लड़की के घरवालों को पता थी। बावजूद इसके फिराक को धोखा मिला। बताया जाता है कि फिराक गोरखपुरी के परिवार की महिलाएं होने वाली दुल्हन को देखने के लिए गई थीं। लड़की किसी जमींदार की बेटी थी। घर पर लड़की के हाथ में एक किताब पकड़ा दी गई, जिससे वह पढ़ी-लिखी लगे, जबकि यह सच नहीं था। शादी हो गई और कुछ दिनों बाद जब सच सामने आया तो फिराक गोरखपुरी को धोखे का पता चला। इसके बाद वह टूट गए। अंदर से टूटी फिराक साहब की सिसकियां उनकी शायरी में हैं। उनका यह शेर ‘गमे फिराक तो उस दिन गम-ए-फिराक हुआ, जब उनको प्यार किया मैंने जिनसे प्यार नहीं’ फिराक के हालात को हूबहू बयां करता है। फिराक ने एक जगह लिखा है- ‘यौन जरूरतों के सामने कोई भी बदसूरत चेहरा या भावनात्मक लगाव नहीं देखता। मैं चाहता था कि मेरे बच्चे हों, लेकिन मेरी शादी ने मुझे अकेलेपन का शिकार बना दिया।’
 

‘नेहरू को आती है आधी अंग्रेजी’

फिराक गोरखपुरी अंग्रेजी के प्रोफेसर थे और उनका अंग्रेजी प्रेम भी जगजाहिर था। उधर, देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू तो अंग्रेजी के लिए प्रख्यात थे। फिराक और नेहरू के बीच गहरी दोस्ती थी। बावजूद इसके फिराक साहब मजाक में कहा करते थे- ‘हिंदुस्तान में सही अंग्रेज़ी सिर्फ ढाई लोगों को आती है। एक मैं, एक डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन और आधा जवाहरलाल नेहरू।’ यह बात जब नेहरू तक पहुंची तो उन्हें जरा भी बुरा नहीं लगा, क्योंकि वह फिराक गोरखपुरी की शायरी और अंग्रेजी ज्ञान, दोनों के कायल थे।

... जब भड़क गए थे नेहरू पर

फिराक गोरखपुरी और पंडित जवाहर लाल नेहरू में गहरी दोस्ती थी। नेहरू प्रधानमंत्री बनने के बाद 1940 के दशक में इलाहाबाद आए थे। फिराक भी दोस्त (नेहरू) से मिलने पहुंच गए और अपना नाम लिखकर रिसेल्शनिस्ट को दे दिया। 15 मिनट बाद भी जब नेहरू की ओर से कोई बुलावा नहीं आया तो वह नाराज होकर भड़क गए। इस बीच शोर सुनकर नेहरू बाहर आ गए।
सामने देखा तो फिराक गुस्से से लाल थे। दरअसल, जो स्लिप फिराक साहब ने रिसेप्शनिस्ट को दी थी, उस पर लिखा था- रघुपति सहाय' नेहरू पूरा मामला समझ गए और दोस्त फिराक को शांत करते हुए कहा- ‘मैं 30 साल से तुम्हें रघुपति के नाम से जानता हूं, मुझे क्या पता ये आर सहाय कौन है?’ यहां पर बता दें कि जवाहर लाल नेहरू से फिराक साहब का खास रिश्ता था और आनंद भवन के करीबी रहे। ऐसे में इंदिरा गांधी ने राज्यसभा भेजना का ऑफिर दिया तो उन्होंने मना कर दिया। उन्होंने इंदिरा गांधी से कहा कि आपका स्नेह इसी तरह बना रहे। 3 मार्च, 1982 को दुनिया को अलविदा कहने से पहले शायर फिराक गोरखपुरी बीमार रहने लगे थे। बताया जाता है कि वह विक्षिप्त की स्थिति में पहुंच गए थे। जीवन के अंतिम लम्हें में उन्होंने क्या महसूस किया होगा, इसके लिए यह शेर ही काफी है- ‘जिंदगी क्या है ऐ दोस्त, सोचें और उदास हो जाएं।’    

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