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वैज्ञानिकों की डराने वाली चेतावनी, भूल जाइए सर्दी, दिसंबर-जनवरी में भी छूटेंगे पसीने

Earth Temperature Research: ग्लोबल टेंपरेचर में लगातार बढ़ोतरी दुनिया के लिए चिंताजनक है। एक बार फिर वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है, जो काफी डराने वाली है। जानिए क्या कहते हैं वैज्ञानिक?

Global Warming
IIT KGP study Over Indian Earth Surface Temperature: वैज्ञानिकों ने धरती के लगातार बढ़ रहे तापमान को लेकर चिंता जताई है, क्योंकि ग्लोबल टेंपरेचर में लगातार बढ़ोतरी दुनिया के लिए चिंताजनक है। एक बार फिर वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है, जो काफी डराने वाली है। वैज्ञानिकों का कहना है कि आने वाले समय सर्दी जैसे मौसम का अहसास भी नहीं होगा। मुंबई की तरह, जहां 12 महीने मौसम एक जैसा रहता है, उसी तरह का मौसम पूरी दुनिया में होगा। दिसंबर-जनवरी में जो सर्दी पड़ती है, आने वाले कुछ सालों में वह नहीं दिखेगी और वैज्ञानिकों का ऐसा कहने के पीछे एक वजह है, जो धरती के तापमान से जुड़ी है, जो लगातार बढ़ता ही जा रहा है। इस पर एक रिसर्च भी हुई है, जिसके परिणाम चौंकाने वाले हैं। IIT-KGP की रिसर्च के मुताबिक, साल 2100 तक भारत की सतह का तापमान 1.1 से 5.1 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है। IIT खड़गपुर के ने धरती के तापमान को लेकर स्पेशल स्टडी की है। पिछले महीने नेचर जर्नल में प्रकाशित '1980-2020 के दौरान भारत में सतह के तापमान में वृद्धि और भविष्य के अनुमान: ड्राइवरों और रुझानों के कारण संबंध' शीर्षक वाले शोध पत्र में कहा गया है कि उच्च उत्सर्जन के कारण भारतीय क्षेत्र में तापमान में वृद्धि हो सकती है। 5.1 डिग्री सेल्सियस तक तापमान जा सकता है, जो वैश्विक औसत वृद्धि के ऊपरी अनुमान के लगभग बराबर है। यह भी पढ़ें: धरती के 2900 किलोमीटर की गहराई में मिले 2 पाताल लोक, वैज्ञानिकों ने रिसर्च के बाद रहस्य का किया खुलासा

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ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन तापमान बढ़ने का कारण

वैज्ञानिकों के अनुसार, भारतीय क्षेत्र में अब तक तापमान में वास्तविक वृद्धि वैश्विक औसत से काफी कम रही है। औद्योगिकीकरण की शुरुआत के बाद से ही पृथ्वी की सतह का तापमान काफी बढ़ गया है। ग्रीन हाउस गैसों के उच्च उत्सर्जन ने ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन करने में काफी अहम योगदान दिया है, जिसके जारी रहने की उम्मीद है। संस्थान के वैज्ञानिकों ने 1980-2020 की अवधि के लिए सतह, उपग्रह और पुनर्विश्लेषण डेटा का उपयोग करके भारत में सतह के तापमान के दीर्घकालिक रुझानों की जांच की और कारण कारक शोध पद्धति का उपयोग करके तापमान परिवर्तन में भू-भौतिकीय कारकों और इंसानी गतिविधियों के प्रभाव का आंकलन किया। रिसर्च के दौरान उत्तर-पश्चिम, उत्तर-पूर्व और उत्तर में प्री-मानसून और पोस्ट-मानसून सीज़न के दौरान तापमान में वृद्धि देखी गई। वैज्ञानिकों ने इस बढ़ोतरी के 6 प्रमुख कारक माने हैं, जिनमें से एक इंसान द्वारा किए जाने वाले काम और विकास से जुड़ी गतिविधियां है, जिसके कारण लगातार धरती का तापमान बढ़ रहा है।

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मौसम विज्ञान संस्थान के साथ मिलकर की गई रिसर्च

IIT खड़गपुर के प्रमुख शोधकर्ता और एसोसिएट प्रोफेसर जयनारायणन कुट्टीपुरथ ने बताया कि यह स्टडी पुणे में भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान के सहयोग से किया, जिसने मौसम संबंधी डेटा रिसर्च के लिए, जिसके आधार पर शोध पत्र बनाया गया था। वैज्ञानिकों ने पिछले 40 वर्षों में भारत में सतह के तापमान पर ध्यान दिया है और फिर साल 2100 तक के तापमान के लिए अनुमान लगाए हैं। हमने बहुत सारे डेटा का उपयोग किया है। खासकर भारतीय मौसम विज्ञान विभाग से मिले डेटा का, जो भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान द्वारा प्रदान किया गया था। ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन 2075 तक 3 गुना बढ़ सकता है, इसके अनुसार औसत तापमान साल 2100 तक 3.5-5.1 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने की संभावना है। हालांकि, उत्सर्जन को कम करने के लिए बहुत सारे उपाय किए जा रहे हैं, लेकिन अगर उत्सर्जन कम नहीं हुआ तो यह शायद 3 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है, जो धरती के तापमान में 5.1 डिग्री सेल्सियस तक की बढ़ोतरी कर देगा। यह भी पढ़ें: Airlines ने लड़कियों को नौकरी देने के लिए रखी ऐसी अजीबोगरीब शर्त, जानकर कहेंगे- इससे अच्छा घर बैठो

पिछले 4 दशकों में इस तरह बढ़ा धरती का तापमान

प्रोफेसर जयनारायणन कुट्टीपुरथ ने अपने 3 पीएचडी स्कॉलर्स और पुणे में भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान के एक वैज्ञानिक के साथ धरती के तापमान में वृदि्ध पर रिसर्च किया और उन्हें अनुमानों तक पहुंचने में 2 साल से अधिक का समय लगा। अध्ययन में यह भी कहा गया है कि देश में पिछले 4 दशकों में तापमान में वृद्धि मानसून पूर्व के दौरान प्रति दशक 0.1 से 0.3 डिग्री सेल्सियस और मानसून के बाद के दौरान 0.2-0.4 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक हुई है। मानसून के बाद पूरे देश में तापमान में वृद्धि देखी गई, जिसमें पश्चिमी हिमालय क्षेत्र (0.2-0.5 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक) और उत्तर-पूर्व भारत (0.1-0.4 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक) में तापमान बढ़ना सबसे महत्वपूर्ण है। पिछले 4 दशकों में अक्टूबर और नवंबर में उत्तर-पश्चिम भारत, भारत के पश्चिमी तट और प्रायद्वीपीय भारत में औसत तापमान में प्रति वर्ष लगभग 0.01 से 0.03 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। पिछले 4 दशकों में दिसंबर-फरवरी की अवधि के दौरान, सुदूर उत्तर भारत के कुछ हिस्सों, सुदूर उत्तर-पश्चिम भारत, भारत के पश्चिमी तट और दक्षिण प्रायद्वीपीय भारत में तापमान में प्रति वर्ष लगभग 0.01 से 0.02 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है।


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