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G-20 का दिल्ली दर्शन: अमेरिका को भारत में क्यों दिख रही है सबसे ज्यादा उम्मीद?

G20 Summit Delhi: पूरी दुनिया के तेज-तर्रार कूटनीतिज्ञों की निगाहें इन दिनों दिल्ली पर टिकी हैं। जी-20 शिखर सम्मेलन के लिए दिल्ली पूरी तरह से तैयार है। जी-20 एक ऐसा मंच है- जिसमें दुनिया के 19 देश और यूरोपीय संघ शामिल हैं। इस मंच से जुड़े देश विश्व के 75 फीसदी कारोबार का प्रतिनिधित्व करते हैं, […]

Anurradha Prasad Editor in Chief G20 Delhi Darshan
G20 Summit Delhi: पूरी दुनिया के तेज-तर्रार कूटनीतिज्ञों की निगाहें इन दिनों दिल्ली पर टिकी हैं। जी-20 शिखर सम्मेलन के लिए दिल्ली पूरी तरह से तैयार है। जी-20 एक ऐसा मंच है- जिसमें दुनिया के 19 देश और यूरोपीय संघ शामिल हैं। इस मंच से जुड़े देश विश्व के 75 फीसदी कारोबार का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि इस मंच से जुड़े देशों की साझा आबादी दुनिया की दो-तिहाई है। ऐसे में इस मंच के जरिए पूरी दुनिया की बेहतरी और खुशहाली का रास्ता निकाले जाने के चांस ज्यादा है। भारत की परंपरा 'वसुधैव कुटुंबकम' यानी पूरी दुनिया को एक परिवार मानने की रही है। ऐसे में कई तरह के संकटों से जूझ रही दुनिया की बड़ी आबादी उम्मीद के साथ भारत की ओर देख रही है। ऐसे में आज आपको बताने की कोशिश करेंगे कि जी-20 का मंच दुनिया की मुश्किलों को हल करने में किस तरह दमदार भूमिका निभा सकता है। इस मंच से जुड़े ताकतवर देशों से भारत क्या चाहता है? भारत से अमेरिका, चीन, रूस जैसे देश क्या चाहते हैं? बदले वैश्विक समीकरण में वाशिंगटन को सबसे बेहतर संभावना दिल्ली से बेहतर रिश्तों में क्यों दिख रही है? चीन और रूस जी-20 के मंच के जरिए क्या साधना चाहते हैं? क्या जी-20 के दिल्ली जुटान में ग्लोबल साउथ की समस्याओं को सुलझाने का रास्ता निकलेगा? क्या वर्कफोर्स के फ्रीफ्लो के लिए पश्चिमी देश अपनी सरहद को और लचीला बनाएंगे? ऐसे सभी सुलगते सवालों को जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे अपने स्पेशल शो जी-20 का दिल्ली दर्शन में...

G-20 का ‘दिल्ली दर्शन’ 

G-20 देशों के मेहमानों के स्वागत के लिए दिल्ली पूरी तरह तैयार है, लेकिन गेस्ट लिस्ट में शामिल मेहमानों में से रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पहले ही आने से मना कर दिया है। इसकी वजह है रूस का कई मोर्चों पर एक साथ जूझना। इसमें यूक्रेन युद्ध से पैदा हालात और आर्थिक चुनौतियां भी हैं, लेकिन पुतिन ने अपने विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव को जी-20 शिखर सम्मेलन में शामिल होने के लिए दिल्ली भेजने का फैसला किया है। सर्गेई कह रहे हैं कि अगर हमारे विचारों को नजरअंदाज किया गया तो जी-20 का घोषणा पत्र रोक देंगे। मतलब, रूस चाहता है कि जी-20 के मंच से उसकी बात पूरी गंभीरता के साथ सुनी जाए। खबर है कि प्रेसिडेंट पुतिन की तरह ही चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी दिल्ली नहीं आ रहे। वो भी अपना प्रतिनिधि जी-20 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए भेज रहे हैं, लेकिन अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन जी-20 के दिल्ली जुटान में बहुत दिलचस्पी ले रहे हैं। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों का भी दिल्ली आना तय है। ऐसे में सबसे पहले ये देखना भी जरूरी है कि 9 और 10 सितंबर को होने वाले जी-20 शिखर सम्मेलन के लिए दिल्ली में क्या-क्या तैयारियां की गई हैं।

हाईप्रोफाइल मेहमान इस हफ्ते करेंगे दिल्ली में लैंड 

ऐसे ही कई हाईप्रोफाइल मेहमान इस हफ्ते दिल्ली में लैंड करेंगे। चाइना और रूस के राष्ट्रपति भले ही कुछ वजहों से G-20 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए दिल्ली नहीं आ रहे हैं, लेकिन दोनों ही मुल्कों के प्रतिनिधियों की लिस्ट फाइनल हो चुकी है। ऐसे में जब मेहमानों की लिस्ट इतनी हाईफाई हो तो तैयारियां भी उसी तरह की हैं। पूरी दिल्ली को महीनों पहले से दुल्हन की तरह सजाया जा रहा है। स्पेशल मेहमानों को एयरपोर्ट से होटल और शिखर सम्मेलन स्थल तक लाने-ले जाने की फुल ड्रेस रिहर्सल की जा रही है। दिल्ली का कोना-कोना जहां चमक-दमक रहा है, वहीं VVIP मेहमानों की सुरक्षा का तगड़ा इंतजाम किया गया है। दिल्ली के चप्पे-चप्पे पर निगरानी के लिए ऐसा लंबा-चौड़ा मैकेनिज्म तैयार किया गया है, जिससे आसमान से जमीन तक हर छोटी-बड़ी हरकत पर पैनी नजर रखी जा सके। इतना ही नहीं, VVIP के मूवमेंट वाले हर रूट पर सुरक्षा इंतजामों की रिहर्सल की गई। VVIP मेहमान जिस होटल में ठहरेंगे- वहां उनका किस तरह से स्वागत किया जाएगा । वहां, खाने-पीने का इंतजाम किस तरह का होगा...खाने के मेन्यू में क्या-क्या होगा? ऐसी हर छोटी-बड़ी चीज का बहुत बारीकी से ध्यान रखा गया है।

जो बाइडेन के लिए खास प्रेजिडेंशियल सुइट 

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन दिल्ली के आईटीसी मौर्या होटल में ठहरेंगे। राष्ट्रपति बाइडेन के स्वागत के लिए ITC मौर्या के सबसे खास प्रेजिडेंशियल सुइट को स्पेशल तरीके से सजाया जा रहा है। जी-20 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए दिल्ली पहुंचने वाले VVIP गेस्ट और प्रतिनिधिमंडल को ठहराने के लिए दिल्ली और गुडगांव के प्रमुख और बड़े होटलों में करीब 3,500 कमरे बुक किए गए हैं। G-20शिखर सम्मेलन के जरिए पूरी दुनिया एक ओर भारत की मेहमानवाजी देखेगी और सबकी बेहतरी और कल्याण के लिए भारत के जर्रे-जर्रे से निकल रही वसुधैव कुटुंबकम वाली खुली सोच भी। भारत की परंपरा से ही वसुधैव कुटुंबकम निकला है। ऐसे में भारत जी-20 के मंच का इस्तेमाल दुनिया की पेचीदा समस्याओं को सुलझाने के लिए करना चाहता है। मसलन, दूसरे विश्वयुद्ध के बाद वजूद में आई वैश्विक वित्तीय संस्थाओं की विश्वसनीयता शक के दायरे में है। वर्ल्ड बैंक और इंटरनेशनल मॉनिटरिंग फंड यानी IMF में अमेरिका का वर्चस्व है। Global Financial Institutions के दम पर अमेरिका ने एक तरह के डॉलर को ग्लोबल करेंसी बना दिया। ऐसे में नए दौर की चुनौतियों से निपटने और दुनिया की बेहतरी के लिए ग्लोबल फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशंस में विस्तार और बदलाव की जरूरत महसूस की जा रही है। इतना ही नहीं, भारत जी-20 की छतरी के नीचे अफ्रीकी यूनियन को भी लाना चाहता है।

जलवायु परिवर्तन की समस्या का समाधान

साथ ही, पिछले कुछ दशकों में जिस तरह से दुनिया में शांति स्थापित करने के लिए बने संयुक्त राष्ट्र और इसकी सुरक्षा परिषद अपने मकसद में कायमाब कम और नाकाम ज्यादा दिखी है। उस कमी को पूरा करने की मंशा भी दिल्ली डिप्लोमेसी में साफ-साफ झलक रही है। भारत जी-20 के मंच के जरिए जलवायु परिवर्तन की समस्या के समाधान के साथ-साथ सस्टेनेबल डवलपमेंट के एजेंडे को भी आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। भारत की तरक्की की रफ्तार पूरी दुनिया हैरत भरी नजरों से देख रही है। दुनियाभर के काबिल अर्थशास्त्री उस फॉर्मूले को समझने की कोशिशों में जुटे हैं कि जब अमेरिकी अर्थव्यवस्था सुस्ती के दौर से गुजर रही है, यूरोपीय देशों की हालत खराब है। दुनिया की फैक्ट्री कहे जाने वाले चीन का हाल भी बेहाल है, तो फिर भारत किस तरह से तेज रफ्तार से आगे बढ़ रहा है। दुनिया की जीडीपी में जी-20 देशों की हिस्सेदारी करीब 80 फीसदी है। दुनिया के कारोबार में 75 फीसदी हिस्सा इन्हीं देशों का है। मतलब, जी-20 से बाहर की दुनिया का हिसाब लगाया जाए तो 20 फीसदी जीडीपी, 25 फीसदी कारोबार और एक तिहाई आबादी में सब सिमट जाएगा। ऐसे में जी-20 की छतरी तले भारत दुनिया की खुशहाली का रास्ता निकालने की कोशिश कर रहा है।

2047 तक भारत को विकसित देश बनाने का टारगेट

पिछले तीन दशकों में भारत की कूटनीति की ड्राइविंग सीट पर Economic Pragmatism रहा है। कूटनीतिक रिश्ते परिभाषित करने में इस फैक्टर ने अहम भूमिका निभाई है, लेकिन एक बड़ा सच ये भी कि कोरोना महामारी के दौर में भारत ने वैक्सीन के जरिए न सिर्फ अपने मुल्क के लोगों की जान बचाई, बल्कि वसुधैव कुटुंबकम की भावना को सही मायनों में चरितार्थ करते हुए दुनिया के जरूरतमंद कई देशों को वैक्सीन दी। प्रधानमंत्री मोदी ने 2047 तक भारत को विकसित देश बनाने का टारगेट सेट किया है।

'मेक फॉर द ग्लोबल' मुहिम

साथ ही अपनी तीसरी पारी में भारत को दुनिया की तीसरी बड़ी जीडीपी बनाने का वादा भी किया है। पीएम मोदी का अब तक जोर मेक इन इंडिया पर रहा है, जिसे 'मेक फॉर द ग्लोबल' मुहिम के जरिए और रफ्तार देने की कोशिश हो रही है। ऐसे में भारत G-20 के मंच का इस्तेमाल एक ऐसे पुल की तरह करना चाहता है जिससे दुनिया के बाजारों में भारतीय प्रोडक्ट का एक्सेस और ज्यादा बढ़े। अब बात अमेरिका की। सुपर पावर अमेरिका भी एक साथ कई मोर्चों पर जूझ रहा है। वहां की आर्थिक स्थिति भी हिचकोले खा रही है। ऐसे में राष्ट्रपति जो बाइडेन को अपने मुल्क की समस्याओं को सुलझाने में भारत के साथ बेहतर रिश्ता अंधेरी सुरंग में एक चमकदार रोशनी की तरह दिख रहा है। संभवत: जी-20 के मंच से जो बाइडन एक तीर से कई निशाना साधने की रणनीति पर आगे बढ़ रहे हैं।

चीन की गोद में बैठ चुका है पाकिस्तान 

पिछले कुछ वर्षों में पूरी दुनिया में जिस तरह से शक्ति संतुलन बदला है उसमें कभी दक्षिण एशिया में अमेरिका का सबसे करीबी सहयोगी रहा पाकिस्तान अब चीन की गोद में बैठ चुका है। कभी अमेरिका के इशारे पर ज्यादातर फैसला लेने वाला सऊदी अरब भी अपने हिसाब से रिश्तों को परिभाषित कर रहा है। अमेरिका के धुर-विरोधी ईरान के साथ सऊदी अरब ने हाथ मिलाया है- वो भी चीन के इशारे पर। चीन और अमेरिका के रिश्ते किसी से छिपे नहीं हैं। ऐसे में भारत के साथ बेहतर कैमेस्ट्री में अमेरिका अपने लिए एक बड़ा बाजार और दक्षिण एशिया में चीन को रोकने वाला मजबूत सहयोगी देख रहा है। वहीं, चीन के साथ LAC पर ऑपरेशन और बिजनेस में Cooperation दोनों साथ-साथ चल रहे हैं। भारत अच्छी तरह समझ रहा है कि चाइना से अगर एक झटके में सप्लाई चेन टूटी तो नुकसान किस हद तक हो सकता है। ऐसे में G-20 के मंच के जरिए चीन भी चाहता है कि उसकी फैक्ट्रियों की रफ्तार किसी कीमत पर धीमी न पड़े।

दो खेमों में बंटी दुनिया 

यूक्रेन युद्ध के बाद दुनिया दो खेमों में बंट चुकी है। एक ओर यूक्रेन के समर्थन में अमेरिका और यूरोपीय देश हैं दूसरी ओर रूस और चाइना हैं। वहीं, भारत ने रूस-यूक्रेन युद्ध को अर्थव्यवस्था और मानवता के मुद्दे की तरह देखा है। बगैर किसी दबाव और प्रभाव के यूक्रेन के मामले में भी भारत की विदेश नीति बिल्कुल स्वतंत्र रही है। यह राष्ट्रीय हितों के हिसाब से आगे बढ़ी है। भारत में अपनी जरूरतों के हिसाब से अगर रूस से कच्चा तेल खरीदने का फैसला किया तो अमेरिका और फ्रांस से हथियार की डील भी की।

जी-20 जैसे मंच का इस्तेमाल 

माना जा रहा था कि भारत ही दुनिया में इकलौता ऐसा देश है जहां एक छत के नीचे अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन जी-20 के दिल्ली शिखर सम्मेलन में दिखेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हो पाएगा। बदली परिस्थितियों में भारत चाहता है कि जी-20 जैसे मंच का इस्तेमाल दुनिया की समस्याओं को सुलझाने के लिए किया जाए। सभी देश मिलकर एक ऐसी विश्व व्यवस्था का निर्माण करने में पूरा सहयोग दें। किसी भी तरह की होड़ या राष्ट्रवाद के नाम पर दूसरों को कुचलने वाली सोच के लिए रत्ती भर भी जगह न हो, जिसके जर्रे-जर्रे से सही मायनों में वसुधैव कुटुंबकम का भाव निकलता हो।


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