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टूटी कमर, 3 महीने से बिस्तर पर…कुम्हार का दर्द छलका- दूसरों का घर करता था रोशन, आज अपने ही घर में अंधेरा

Family Suffering Starvation Last Three Months पश्चिम बंगाल आसनसोल के पछगछिया इलाके मे स्थित एक कुम्हार परिवार पिछले तीन महीनों से भुखमरी की मार झेल रहा है, परिवार के मुखिया मनोज कुम्हार मिट्टी का बर्तन बनाने का काम करते हैं।

अमर देव पासवान( पश्चिम बंगाल आसनसोल) Family Suffering Starvation Last Three Months: आसनसोल, दुर्गोत्सव के ख़त्म होने के बाद अब दीपों का पर्व दीपावली आ रहा है, जिसको लेकर तैयारियां भी काफी जोर से चल रही है, दीपावली के मौके पर कहीं माँ काली के पूजा पंडाल बनाए जा रहे हैं, तो कहीं मेला का आयोजन किया जा रहा है, कई माँ काली के मंदिर हैं जिन मंदिरों को माँ के भक्त सजाने और संवारने मे जुट गए हैं, पर उन साज और सजावटों को चार -चाँद लगाने वाला मिट्टी का दीप और तरह -तरह के लाईट व पटाखें अगर नही हों तो पूरा दीपावली का पर्व मानो फीका सा पड़ जाता है। ऐसे में आसनसोल के पछगछिया इलाके मे स्थित एक कुम्हार परिवार पिछले तीन महीनों से भुखमरी की मार झेल रहा है। मनोज का तीन महीने पहले फिसलकर जमीन पर गिरने से कमर टूट गई थी, मनोज ठीक से चल नही पा रहे हैं, चिकित्सकों ने कहा है कि उनको पहले के जैसे पूरी तरह ठीक होने मे करीब एक वर्ष लग जायेंगे।

परिवार तीन महीने से भुखमरी की मार झेल रहा

पश्चिम बंगाल आसनसोल के पछगछिया इलाके मे स्थित एक कुम्हार परिवार पिछले तीन महीनों से भुखमरी की मार झेल रहा है, परिवार के मुखिया मनोज कुम्हार मिट्टी का बर्तन बनाने का काम करते हैं, जिसमे चाय की भांड़ से लेकर दिया सहित कई अन्य तरह के मिट्टी के बर्तन शामिल हैं, मनोज का तीन महीने पहले फिसलकर जमीन पर गिरने से कमर टूट गई थी, मनोज ठीक से चल नही पा रहे हैं, चिकित्सकों ने कहा है कि उनको पहले के जैसे पूरी तरह ठीक होने मे करीब एक वर्ष लग जायेंगे, जिसमे से तीन महीना तो गुजर गया है, लेकिन अभी 9 महीने बाकी हैं, मनोज अपनी पत्नी व पाँच बेटियों के साथ अपने मिट्टी के टूटे -फूटे घर मे रहते हैं, मनोज का परिवार बड़ा है जिसकी वजह से परिवार चलाने के लिये खर्च भी ज्यादा हैं।

घरों में उजाला करने वालें के घर में अंधेरा

मनोज ने खुद को खड़ा करने के लिये अपनी सारी जमा पूंजी तो लगा ही दी है, साथ मे उस चाक को भी बेच दिया है जिस चाक को वह चलाकर वह मिट्टी के बर्तन बनाते थे और उन बर्तनों को बाजार मे बेचकर अपना व अपने परिवार का भरण पोषण करते थे, मनोज का यह सपना था की वह इस वर्ष दीपावली के मौके पर ढेर सारे मिट्टी के दीये बनाकर बाजार मे बेचेंगे और उन दीयों को बेचकर जो उन्हे पैसा मिलेगा उन पैसों से वह अपने घर का थोड़ा -मोडा मरम्मत भी करवाएंगे, यहीं नही मनोज ने दुर्गापूजा के मौके पर अपने व अपनी पत्नी और बच्चों के लिये नए -नए कपड़े खरीदने के भी सपने अपने मन मे संजोय थे। माँ दुर्गा का पूजा पंडाल व मेला घूमने का भी उन्होने योजना बनाया था, पर किस्मत ने मनोज के साथ कुछ ऐसा खेल खेला की मनोज के सारे सपने व उसके द्वारा बनाई गई सारी योजनाओं पर पानी फिर गया, मनोज आज भुखमरी के कगार पर आ गए हैं और मदद की गुहार लगा रहे हैं, यह कहकर की उन्होने जबसे अपना होश संभाला है, तब से वह हर दीपावली के मौके पर अपने हांथों से मिट्टी का दीप बनाकर दूसरों के घरों मे उजाला फैलाने का काम किया है।


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