इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला रखा सुरक्षित, ECI से दो हफ्ते में मांगा गुमनाम फंडिंग का डेटा
Supreme Court
Electoral Bond scheme Supreme Court reserves verdict BJP Congress Donation: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की इलेक्टोरल बॉन्ड (गुमनाम फंडिंग) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने इलेक्शन कमीशन (ECI) से सभी राजनीतिक दलों को 30 सितंबर तक मिले गुमनाम फंडिंग का डेटा तलब किया है। इसके लिए ईसीआई को दो हफ्ते का समय दिया गया है। ईसीआई को डेटा एक सीलबंद लिफाफे में देना होगा। हालांकि अगली सुनवाई की तारीख का खुलासा नहीं किया गया है।
इलेक्टोरल बॉन्ड की वैधता को चुनौती देने के लिए चार याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गईं। याचिकाकर्ताओं में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR), कांग्रेस नेता जय ठाकुर और सीपीएम पार्टी शामिल है। जिस पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने की है। केंद्र सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलीलें रखीं। वहीं, वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने याचिकाकर्ताओं का पक्ष रखा।
तीसरे दिन की सुनवाई में क्या हुआ?
गुरुवार को चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने केंद्र सरकार से इलेक्टोरल बॉन्ड की जरूरत के संबंध में सवाल पूछा। चंदा कौन दे रहा है, यह सरकार को पता होता है। बॉन्ड मिलते ही सरकार को पता चल जाता है कि किसने कितना चंदा दिया। इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार यह बिल्कुल नहीं जानना चाहती कि किसने चंदा दिया। क्योंकि चंदा देने वाला अपनी पहचान छिपाना चाहता है। वह नहीं चाहता कि दूसरी पार्टी को पता चले।
भाजपा शासन में आया इलेक्टोरल बॉन्ड
इलेक्टोरल बॉन्ड भाजपा शासन में नोटिफाई हुआ। केंद्र सरकार ने 2 जनवरी 2018 को इस स्कीम को नोटिफाई किया था। इसके तहत इलेक्टोरल बॉन्ड को कोई अकेले या मिलकर खरीद सकता है। इस स्कीम को 2017 में चैलेंज किया गया था, लेकिन सुनवाई 2019 में शुरू हुई।
पी चिदंबरम ने भाजपा पर लगाए थे गंभीर आरोप
कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने 30 अक्टूबर को भाजपा पर आरोप लगाया था कि भाजपा बड़े कॉर्पोरेट्स से गुप्त और षडयंत्रकारी तरीके से फंड जुटाना चाहती है। हम पारदर्शी और लोकतांत्रिक तरीके से फंडिंग में विश्वास रखते हैं। वहीं, अटॉर्नी जनरल वेंकटरमणी ने 29 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में बताया कि लोगों को पार्टियों को मिलने वाले फंड्स का सोर्स जानने का अधिकार नहीं है। क्योंकि ये स्कीम किसी प्रकार के कानून या अधिकारों का उल्लंघन नहीं करती है।
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