Electoral Bond Controversy Supreme Court Hearing: साल 2017 से सुप्रीम कोर्ट में केस चल रहा, 5 चीफ जस्टिस आए और चले गए, लेकिन कोई भी इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bond) का विवाद नहीं सुलझा पाया। अब इस पर फैसला आ गया है तो यह विवाद एक बार फिर सुर्खियों में है। क्योंकि लोकसभा चुनाव 2024 होने वाले हैं तो यह विवाद सुलझाना और ज्यादा अहम हो जाता है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में मुद्दे पर 7 साल में क्या-क्या हुआ? क्या विवाद है और क्यों इस पर सियासत इतनी सरगर्म रही, आइए जानते हैं...
सुप्रीम कोर्ट आज सुनाएगी फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने 31 अक्तूबर 2023 से मामले में रेगुरल हियरिंग शुरू की। केस की सुनवाई प्रधान न्यायाधीश DY चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5-सदस्यीय पीठ ने की। इस पीठ में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति BR गवई, न्यायमूर्ति JB पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा शामिल थे। इलेक्टोरल बॉन्ड को राजनीति में काले धन के इस्तेमाल का तोड़ कहा गया था, लेकिन इस पर विपक्ष ने बवाल कर दिया।
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राज्यसभा में पास नहीं कराना बना मुसीबत
भाजपा सरकार ने साल 2017 में इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम का ऐलान किया। 2 जनवरी 2018 को अधिसूचित किया। इलेक्टोरल बॉन्ड के तहत कोई भी शख्स किसी राजनीतिक दल को गुप्त तरीके से फंड दे सकता है। कोई भी कंपनी या कोई भी व्यक्ति इसे खरीद सकता है, लेकिन इस पर विवाद इसलिए हुआ, क्योंकि इसे मनी बिल बनाकर पारित कर दिया गया था। मनी बिल को पारित करने के लिए राज्यसभा में बिल को पास कराने की जरूरत नहीं होती थी।
यह भी थी विवाद की असली वजह
इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम फाइनेंस एक्ट बनाकर लाया गया था। इसके लिए सरकार ने RBI, इनकम टैक्स, रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपल समेत 5 एक्ट बदले थे। इसलिए इसे भाजपा सरकार की मनमानी स्कीम कहा गया। जब इसे मनी बिल के रूप में चुनावी सुधार बताकर पेश किया गया तो विपक्ष ने मुद्दा बनाया।
7 साल में क्या-क्या हुआ?सितंबर 2017 में NGO ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी समेत ने भी याचिका दायर की। उस समय CJI जेएस खेहर थे, जिनकी पीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए नोटिस जारी किया।
फरवरी 2018 में CJI दीपक मिश्रा की पीठ ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की याचिका पर सरकार को नोटिस भेजा।
अप्रैल 2019 में उस समय के CJI रंजन गोगोई की पीठ ने अंतरिम आदेश दिया कि इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए पार्टियों को जो चंदा मिला है, उसका लेखा जोखा सील बंद लिफाफे में पेश किया जाए।
मार्च 2021 में इलेक्टोरल बॉन्ड पर रोक लगाने की मांग हुई, लेकिन उस समय के CJI शरद अरविंद बोबडे की पीठ ने रोक लगाने से मना कर दिया।
अक्टूबर 2022 में जस्टिस BR गवई की पीठ ने सुनवाई की। सरकार ने स्कीम को पारदर्शी बताते हुए अपना पक्ष रखा।
अक्टूबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय पीठ ने सुनवाई शुरू की और 2 नवंबर 2023 को फैसला सुरक्षित रख लिया।
फरवरी 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड केस पर फैसला सुनाया, जिसमें इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक करार दिया गया।