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El NiNo क्या है, जो 2024 चुनाव में मोदी सरकार के लिए बन सकता है चुनौती, पढ़िये- Inside Story

El NiNo Effect on Economic And Political Risk In India: ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव से पूरी दुनिया चिंतित है। पिछले कई दशकों से ग्लोबल वार्मिंग के साथ अल नीनो का प्रभाव भी देश-दुनिया की चिंता बढ़ा रहा है। बेशक, भारत पर भी इसका असर देखने को मिल रहा है और […]

El NiNo Effect on Economic
El NiNo Effect on Economic And Political Risk In India: ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव से पूरी दुनिया चिंतित है। पिछले कई दशकों से ग्लोबल वार्मिंग के साथ अल नीनो का प्रभाव भी देश-दुनिया की चिंता बढ़ा रहा है। बेशक, भारत पर भी इसका असर देखने को मिल रहा है और इस बात को भारतीय कृषि वैज्ञानिक भी स्वीकार करने लगे हैं। यह भी कहा जा रहा है कि महीना अगस्त अब तक का सबसे शुष्क महीना होने वाला है। अल नीनो की मजबूती के साथ-साथ यह 2024 के चुनावों से पहले मोदी सरकार के लिए एक गंभीर खाद्य मुद्रास्फीति की चुनौती पेश कर सकता है।

वर्ष 2024 होगा अधिक गर्म

वहीं, नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस अधिनियम (NASA) के वैज्ञानिक गेविन शिमिट पहले ही चेतावनी दे चुके हैं कि 2024 में हालात और बिगड़ सकते हैं। शिमिट के मुताबिक, अल नीनो प्रभाव अभी उभरा है और इस साल (2023) के अंत तक यह चरम पर होगा। अल नीनो के प्रभाव से ही 2024 के और अधिक गर्म रहने की आशंका है।

भारत पर राजनीतिक प्रभाव डाल सकता है अल नीनो

ऐसे में यह स्पष्ट है कि अप्रैल और मई 2024 में होने वाले राष्ट्रीय चुनावों से पहले अल नीनो अब भारत में एक प्रमुख आर्थिक और राजनीतिक जोखिम के रूप में उभर रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार, इक्वाडोर और पेरू की ओर मध्य और पूर्वी भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर के पानी के असामान्य रूप से गर्म होने का प्रभाव पहले से ही महसूस होने लगा है। दरअसल, इसे आम तौर पर भारत में बारिश को दबाने के लिए जाना जाता है।

कृषि क्षेत्र पर प्रभाव पड़ना तय

हालात यही रहे तो अगले साल भारत को कृषि क्षेत्र में खासा नुकसान हो सकता है। बताया जा रहा है कि अगस्त में अब तक पूरे देश में सामान्य से 30.7 प्रतिशत कम (यानी एक निश्चित अंतराल के लिए ऐतिहासिक लंबी अवधि का औसत) बारिश दर्ज की गई है। परिणामस्वरूप दक्षिण पश्चिम मानसून सीज़न (जून-सितंबर) के पहले दो महीनों के दौरान कुल 4.2 प्रतिशत अधिशेष 27 अगस्त तक संचयी 7.6 प्रतिशत घाटे में बदल गया है।
इसी का असर रहा कि 8 सितंबर, 2022 को टूटे हुए चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया गया और अन्य सफेद (गैर-उबला हुआ) गैर-बासमती अनाज के शिपमेंट पर 20 प्रतिशत शुल्क लगाया गया। इसके बाद 20 जुलाई, 2023 को सभी गैर-उबले हुए गैर-बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध बढ़ा दिया गया। 25 अगस्त 2023 को उबले हुए गैर-बासमती चावल के निर्यात पर 20 प्रतिशत शुल्क लगाया गया। 1,200 डॉलर प्रति टन की न्यूनतम कीमत, जिसके नीचे निर्यात की अनुमति नहीं होगी को बासमती शिपमेंट के लिए लागू किया गया। लगातार पैदा हो रहे संकट के चलते ही प्याज पर 40 प्रतिशत तक निर्यात शुल्क लगाया गया है।
वहीं, 2 जून, 2023 को अरहर और उड़द पर स्टॉक सीमा लगा दी गई थी। इसके साथ ही थोक व्यापारियों, बड़े खुदरा विक्रेताओं, छोटे स्टोरों और दाल मिलों को निर्धारित मात्रा से अधिक रखने की अनुमति नहीं थी। इससे पहले 3 मार्च को साबुत अरहर पर आयात शुल्क 10 प्रतिशत से घटाकर शून्य कर दिया गया था। इससे भी पहले 12 जून, 2023 को गेहूं पर स्टॉकहोल्डिंग सीमा लागू की गई और फिर 19 अगस्त 2023 को प्याज के निर्यात पर 40 प्रतिशत शुल्क लगा दिया गया। क्या होता है अल नीनो प्रभाव मौसम विज्ञानियों के अनुसार, प्रशांत महासागर में जब व्यापारिक हवाएं चलती हैं तो वह भूमध्य रेखा से होते हुए अपने साथ प्रशांत महासागर की सतह पर मौजूद गर्म पानी को दक्षिण अमेरिका से एशिया की तरफ ले जाती हैं। ऐसी स्थिति में सतह के गर्म पानी की जगह समुद्र की गहराइयों का ठंडा पानी सतह पर आ जाता है। इस पूरी प्रक्रिया को अपवेलिंग (उत्थान) कहा जाता है। अल नीनो प्रभाव में यह प्रक्रिया बदल जाती है, जिसका असर पूरी दुनिया के मौसम पर होता है। पिछले कई दशकों से इसका असर देखा जा रहा है। वहीं, इसके प्रभाव से अमेरिका और कनाडा समेत कई देशों में सामान्य से ज्यादा गर्मी बढ़ जाती है। वहीं, इसके उलट अमेरिका अरब तट और दक्षिण पूर्व के देशों में भारी बारिश होती है। इसका प्रभाव यह होता है कि बाढ़ जैसे हालात पैदा होते हैं।

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