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‘महिला लिव-इन पार्टनर पर रेप का आरोप नहीं लगा सकती…’, दिल्ली हाईकोर्ट की अहम टिप्पणी, जानें पूरा मामला

Delhi High Court Order on Live In Relation: दिल्ली हाईकोर्ट ने लिव-इन रिलेशन को लेकर गुरुवार को अहम टिप्पणी की। अदालत ने कहा कि एक विवाहित महिला यह दावा नहीं कर सकती कि उसे शादी का झांसा देकर यौन संबंध बनाने के लिए उकसाया गया था। अंत में दिल्ली हाईकोर्ट ने विवाहित महिला के खिलाफ […]

Live In Relation
Delhi High Court Order on Live In Relation: दिल्ली हाईकोर्ट ने लिव-इन रिलेशन को लेकर गुरुवार को अहम टिप्पणी की। अदालत ने कहा कि एक विवाहित महिला यह दावा नहीं कर सकती कि उसे शादी का झांसा देकर यौन संबंध बनाने के लिए उकसाया गया था। अंत में दिल्ली हाईकोर्ट ने विवाहित महिला के खिलाफ उसके लिव-इन पार्टनर द्वारा बलात्कार के मामले को रद्द कर दिया।

व्यस्कों को नहीं दी जा सकती सुरक्षा

जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने गुरुवार को जारी एक आदेश में कहा कि इस केस में दो व्यक्ति शामिल थे। जो कानूनी रूप से एक-दूसरे से शादी करने के लिए अयोग्य थे, लेकिन लिव-इन रिलेशनशिप में साथ रह रहे थे। भारतीय दंड संहिता की धाारा 356 के तहत दी गई सुरक्षा ऐसी पीड़िता को नहीं दी जा सकती है। जस्टिस शर्मा ने कहा कि सहमति से अलग-अलग लोगों से शादी करने वाले दो वयस्कों के बीच लिव-इन रिलेशनशिप को आपराधिक अपराध नहीं बनाया गया है। लोगों को अपनी पसंद तय करने का अधिकार है। चाहे वह पुरुष हो या महिला। लेकिन दोनों को ऐसे रिश्तों के दुष्परिणामों को लेकर अलर्ट रहना चाहिए।

शिकायतकर्ता नहीं थी तलाकशुदा

अदालत ने कहा कि जब शिकायतकर्ता खुद कानूनी रूप से तलाकशुदा नहीं थी और आज तक तलाकशुदा नहीं है, तो याचिकाकर्ता कानून के अनुसार उससे शादी नहीं कर सकता था। लिव-इन रिलेशन समझौते में इस बात का भी जिक्र नहीं है कि वे किसके साथ रह रहे थे या संबंध बनाए रख रहे थे। अदालत ने कहा कि जब पीड़िता स्वयं किसी अन्य साथी से मौजूदा विवाह के कारण कानूनी तौर पर किसी और से शादी करने के योग्य नहीं है, तो वह शादी के झूठे बहाने के तहत यौन संबंध बनाने के लिए प्रेरित होने का दावा नहीं कर सकती है। इस प्रकार आईपीसी की धारा 376 उस पीड़िता पर लागू नहीं किया जा सकता जो कानूनी तौर पर उस व्यक्ति से शादी करने की हकदार नहीं थी जिसके साथ वह यौन संबंध में थी। मामले में आरोपी ने कथित बलात्कार की एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी। उसने आरोप लगाया था कि महिला का आचरण ठीक नहीं है।

लोगों को ऐसे रिश्तों को लेकर सचेत रहना चाहिए

अदालत ने यह भी कहा कि हम नैतिकता का उपदेश देने वाले कानूनी नैतिकतावादियों के रूप में काम नहीं कर सकते हैं। यदि दो वयस्कों के बीच स्वेच्छा से यौन संबंध स्थापित किए जाते हैं, तो उनकी वैवाहिक स्थिति के बावजूद कोई अपराध नहीं माना जा सकता है। लिव-इन रिलेशनशिप के कई मामलों में दोनों पक्ष अविवाहित हो सकते हैं या उनमें से कोई एक विवाहित हो सकता है या दोनों अपने-अपने जीवनसाथी से विवाहित हो सकते हैं। व्यक्तिगत वयस्क ऐसे निर्णय लेने के लिए भी स्वतंत्र हैं जो सामाजिक मानदंडों या अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं हो सकते हैं। हालांकि लोगों को इसके दूरगामी परिणामों के प्रति सचेत रहने की आवश्यकता है। यह भी पढ़ें: महिला आरक्षण बिल राज्यसभा से भी पास, सदन में मौजूद 215 सांसदों ने किया समर्थन, विरोध में नहीं पड़ा एक भी वोट


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