साल 2025 बीजेपी के लिए कुल मिलाकर मजबूत और असरदार प्रदर्शन का साल रहा। 2024 के लोकसभा चुनाव में 240 सीटों पर जीत जरूर उम्मीद से कम रही, लेकिन उसके बाद के राजनीतिक घटनाक्रमों ने यह साफ कर दिया कि पार्टी की चुनावी पकड़ अब भी कायम है। 2025 में अलग-अलग राज्यों में मिली जीत ने न सिर्फ पार्टी का मनोबल बढ़ाया, बल्कि यह संदेश भी दिया कि बीजेपी अब भी राष्ट्रीय राजनीति की सबसे प्रभावशाली ताकत बनी हुई है। दिल्ली और बिहार जैसे अहम राज्यों में जीत ने इस भरोसे को और मजबूत किया।
बिहार में बीजेपी और एनडीए का प्रदर्शन खास तौर पर उल्लेखनीय रहा। 2010 के बाद यह दूसरी बार है जब एनडीए ने राज्य में 200 का आंकड़ा पार किया। 15 साल पहले जदयू ने 115 और बीजेपी ने 91 सीटें जीती थीं, जबकि 2025 में बीजेपी ने 89 और जदयू ने 85 सीटों पर जीत दर्ज की। अन्य सहयोगी दलों को जोड़कर एनडीए ने दोबारा 200 से ज्यादा सीटें हासिल कीं। सबसे अहम बात यह रही कि बीजेपी पहली बार बिहार में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, जो उसके बढ़ते संगठनात्मक और चुनावी प्रभाव को दिखाता है।
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साल का आखिरी महीना बीजेपी के लिए दक्षिण के दरवाजे खोलने वाला साबित होता दिखा। केरल में हुए स्थानीय निकाय चुनावों के नतीजों ने पार्टी को नई उम्मीद दी। तिरुवनंतपुरम नगर निगम में ऐतिहासिक जीत दर्ज कर बीजेपी ने वामपंथी दलों के गढ़ में सेंध लगाई। केरल की राजनीति के लिहाज से यह बीजेपी के लिए एक ऐतिहासिक पल है, जो आने वाले समय में राज्य में पार्टी की जड़ें मजबूत करने में मददगार हो सकता है।
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खासतौर पर इसलिए भी, क्योंकि केरल और तमिलनाडु जैसे दक्षिणी राज्यों में 2026 में विधानसभा चुनाव होने हैं। कर्नाटक को छोड़ दें तो बीजेपी अब तक दक्षिण भारत में सीधे सत्ता तक नहीं पहुंच पाई है, ऐसे में 2025 के ये संकेत पार्टी के लिए अहम माने जा रहे हैं।
युवा नेतृत्व और संगठनात्मक बदलाव
2025 में बीजेपी ने यह भी साफ कर दिया कि उसकी राजनीति अब सिर्फ चुनाव जीतने तक सीमित नहीं है, बल्कि वह आने वाले दशकों को ध्यान में रखकर खुद को नए सिरे से ढाल रही है। संगठन और सरकार—दोनों स्तरों पर लिए गए फैसले इसी दीर्घकालिक सोच का हिस्सा रहे। नितिन नवीन को राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने का फैसला इस बदलाव की सबसे बड़ी मिसाल बना। इस नियुक्ति के जरिए पार्टी ने यह स्पष्ट संकेत दिया कि अब नेतृत्व की अगली पीढ़ी को आगे लाने का वक्त आ गया है। संगठन और राज्य सरकार, दोनों का अनुभव रखने वाले नितिन नवीन जैसे नेता यह दिखाते हैं कि बीजेपी भविष्य के लिए ऐसे चेहरों पर दांव लगा रही है जो लंबे समय तक पार्टी को संभाल सकें।
यह बदलाव सिर्फ दिल्ली तक सीमित नहीं रहा। राज्यों में भी इसे जमीन पर उतारने की कोशिश हुई। गुजरात में पूरी कैबिनेट का नए सिरे से गठन और बिहार में बड़े पैमाने पर मंत्रियों को बदलना इस बात का संकेत है कि बीजेपी अब सरकार चलाने के पुराने ढर्रे से बाहर निकल रही है। पार्टी ने साफ कर दिया कि नेतृत्व का पैमाना सिर्फ वरिष्ठता नहीं, बल्कि प्रदर्शन, सक्रियता और राजनीतिक ऊर्जा होगा। संदेश साफ है, पद स्थायी नहीं हैं, जिम्मेदारी वही निभाएगा जो परिणाम देकर दिखाएगा।
इसी सोच के तहत 2025 में युवाओं को राजनीति से जोड़ने की कोशिशें और तेज की गईं। ‘विकसित भारत’ से जुड़े कार्यक्रमों और संवादों के जरिए बीजेपी और केंद्र सरकार ने यह दिखाने की कोशिश की कि 2047 का लक्ष्य केवल एक नारा नहीं है, बल्कि उसके लिए आज से ही राजनीतिक और प्रशासनिक नेतृत्व तैयार किया जा रहा है। गैर-राजनीतिक पृष्ठभूमि से आने वाले युवाओं को मंच देना इस बात का संकेत है कि पार्टी पारंपरिक राजनीति की सीमाओं से बाहर निकलकर नए वर्गों तक पहुंच बनाना चाहती है। उद्देश्य सिर्फ चुनावी समर्थन जुटाना नहीं, बल्कि ऐसी पीढ़ी तैयार करना है जो भविष्य में नीति निर्माण, संगठन संचालन और शासन, तीनों स्तरों पर भूमिका निभा सके।
सरकार के स्तर पर भी यही सोच दिखाई देती है। मोदी सरकार की कैबिनेट की औसत उम्र हर कार्यकाल के साथ धीरे-धीरे कम होती गई। 2014 में औसत उम्र करीब 62 साल थी, 2019 में यह लगभग 60 साल हुई और 2024 के तीसरे कार्यकाल में घटकर करीब 58 साल रह गई। यह बदलाव इस रणनीति को दर्शाता है कि पार्टी अनुभव को बनाए रखते हुए युवा ऊर्जा को आगे ला रही है। नए और युवा सांसदों को मंत्री बनाना, कुछ वरिष्ठ नेताओं को संगठनात्मक या मार्गदर्शक भूमिकाओं तक सीमित करना और 15–20 साल आगे की राजनीति को ध्यान में रखकर नेतृत्व तैयार करना, ये सभी इस प्रक्रिया का हिस्सा हैं। नए साल में उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, राजस्थान में कैबिनेट विस्तार की तैयारी है, वही केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी विस्तार होना है। इन सबमें भी बीजेपी को युवाओं को आगे लाने की कवायद दिखेगी ।
गठबंधन और राजनीतिक संतुलन
गठबंधन राजनीति के मोर्चे पर भी बीजेपी ने 2025 में संतुलित और व्यावहारिक रवैया अपनाया। बिहार में सहयोगी दलों को साथ लेकर चलना और नेतृत्व का सम्मान करना यह दिखाता है कि पार्टी सत्ता साझा करने और एनडीए को मजबूत बनाए रखने की रणनीति पर कायम रही।
कुल मिलाकर, 2025 बीजेपी के लिए उपलब्धियों और बदलावों का साल रहा। पार्टी ने अपनी चुनावी ताकत बनाए रखी, संगठन और सरकार, दोनों स्तरों पर पीढ़ीगत बदलाव की शुरुआत की और 2026 के बड़े राजनीतिक इम्तिहान के लिए खुद को तैयार किया।