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दिल्ली अध्यादेश, अविश्वास प्रस्ताव पर सदन में मोदी सरकार की होगी जीत! जानें आखिर कैसे?

कुमार गौरव, नई दिल्ली: संसद के मानसून सत्र में विपक्षी दलों के गठबंधन ‘INDIA’ ने मणिपुर मुद्दे पर पीएम मोदी के बयान की मांग को लेकर सदन की कार्यवाही को बाधित रखा है। केंद्र सरकार मणिपुर मुद्दे पर केंद्रीय गृह मंत्री ने बयान से आगे बढ़ने को तैयार नहीं है। थक हार कर विपक्षी गठबंधन […]

कुमार गौरव, नई दिल्ली: संसद के मानसून सत्र में विपक्षी दलों के गठबंधन 'INDIA' ने मणिपुर मुद्दे पर पीएम मोदी के बयान की मांग को लेकर सदन की कार्यवाही को बाधित रखा है। केंद्र सरकार मणिपुर मुद्दे पर केंद्रीय गृह मंत्री ने बयान से आगे बढ़ने को तैयार नहीं है। थक हार कर विपक्षी गठबंधन ने प्रधानमंत्री मोदी से संसद में बयान दिलवाने का तरीका ढूंढा और सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया।

ये विपक्ष के लिए आसान था, क्योंकि इसके लिए सिर्फ 50 सांसदों की जरूरत होती है लिहाजा, स्पीकर ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। इस बीच केंद्र सरकार ने दिल्ली के सरकारी सेवाओं पर नियंत्रण वाले अध्यादेश गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली (संशोधन बिल) लोकसभा में पेश कर दिया। अब संसद के दोनों सदनों में केंद्र की मोदी सरकार विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के बीच शक्ति परीक्षण की स्थिति तैयार हो गई है।

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लोकसभा में 8 से 10 अगस्त के बीच अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा

लोकसभा में विपक्ष ने 26 जुलाई को अविश्वास प्रस्ताव पेश किया है, जिस पर अगले हफ्ते 8-10 अगस्त को चर्चा होगी। प्राप्त जानकारी के मुताबिक, 8 अगस्त को प्रश्नकाल के बाद 12 बजे से चर्चा शुरू होगी और फिर इसका समापन 10 अगस्त को प्रधानमंत्री के जवाब से खत्म होगा। अविश्वास प्रस्ताव में वोटिंग का भी प्रावधान है। लोकसभा की स्थिति साफ है। बीजेपी और एनडीए के पास बंपर बहुमत है और अब तो दक्षिण की जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआरसीपी और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की पार्टी भी बीजेपी और एनडीए को समर्थन देने की बात कह चुकी है।

लोकसभा में आंकड़ों का खेल 

लोकसभा की 5 सीटें अभी खाली हैं। बहुमत का आंकड़ा 270 है, जबकि बीजेपी के अपने सांसदों की संख्या ही 301 है। उसकी सहयोगी पार्टियों की संख्या में इसमें जोड़ दी जाए तो आंकड़ा 331 तक पहुंच जाता है। बीजेडी के 12 और वाईएसआरसीपी के 22 जोड़ दे तो ये आंकड़ा 365 के आज पास पहुंच जाता है। मतलब एनडीए का पलड़ा काफी भारी है। केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल के मुताबिक, लोकसभा में सरकार के पास 350 से अधिक का आंकड़ा है।

सत्ता पक्ष अविश्वास प्रस्ताव के वोटिंग को मोदी की जीत दिखाने और विपक्षी गठबंधन की हार दिखाकर उससे खूब भुनाएगा। मतलब अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के पहले से ही संसद की हार को बड़े स्तर पर भुनाकर अपने कार्यकर्ताओं में जोश भरने का काम करेगी।

दूसरी ओर राज्यसभा में इसी हफ्ते दिल्ली का सेवा बिल पेश होगा। लोकसभा से पास होने के बाद इसे उच्च सदन में रखा जाएगा। जहां विपक्षी गठबंधन और सरकार के बीच असल शक्ति परीक्षण होगी। इस बिल को लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने काफी बड़ा रिच आउट कार्यक्रम चलाया था। उन्होंने लगभग पूरे देश का दौरा किया और जहां से भी मदद मिल सकती थी, उन सभी पार्टियों के नेताओं से वो मिले। नतीजा ये रहा कि दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी ने जिसे हराकर सत्ता तक पहुंची, वो कांग्रेस भी इस बिल को लेकर अरविंद केजरीवाल के साथ खड़ी नजर आई।

सोमवार को जब लोकसभा में ये बिल पेश किया गया और उसकी कंपेंटेंसी पर चर्चा हो रही थी। उस दौरान सदन में प्रतिपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी, शशि थरूर और गौरव गोगोई ने इस बिल के इंट्रोडक्शन पर ही सवाल उठाते हुए कहा कि ये बिल फेडरल स्ट्रक्चर पर हमला है।

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राज्यसभा में क्या है सत्ता पक्ष और विपक्ष का आंकड़ा?

राज्यसभा में सत्ता पक्ष और विपक्ष (गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली (संशोधन) बिल) पर आमने-सामने होंगे। राज्यसभा में बीजेपी के सदस्यों की संख्या 92 है। उसकी सहयोगी पार्टियों मनोनीत सांसदों को मिला कर एनडीए के कुल सदस्यों की संख्या 113 हो जाती है। वाईएसआरसीपी और बीजेडी ने सरकार को इस बिल पर भी समर्थन देने का ऐलान किया है।

इस लिहाज से वाईएसआरसीपी के 9 और बीजेडी के 9 सांसद हैं। इनको जोड़ दिया जाए तो उच्च सदन यानी राज्यसभा में केंंद्र सरकार के पास आंकड़ा 131 तक पहुंच जाएगा। इतना ही नहीं, कुछ राजनीतिक दल जो तठस्थ है यानी जो कांग्रेस और बीजेपी दोनों गठबंधन से दूर हैं, वो भी अपने बयान के बाद संसद से बाहर निकल सकते हैं। मतलब वे वोटिग के शामिल नही होंगे, जिसका सीधा लाभ सत्ता पक्ष को मिलेगा।

राज्यसभा में अभी 7 सीट खाली है और वर्तमान आंकड़ा 245 का है। ऐसे में 123 सीट बहुमत के लिए चाहिए और एनडीए दूसरे दलों के सहयोग के साथ 131 के आंकड़े तक पहुंच जाएगी। लिहाजा, राज्यसभा में भी दिल्ली सेवा बिल के जरिए एक बार फिर सरकार विपक्षी गठजोड़ को हराने में कामयाब रहेगी।

लोकसभा चुनाव अगले साल होने हैं और उससे पहले कई राज्यों के विधानसभा चुनाव है। विपक्ष, सत्ता पक्ष के सामने एकजुटता से लड़ कर विपक्षी गठबंधन के एक होने का परसेप्शन बनाने में कामयाब होना चाहता है। वहीं, सत्ता पक्ष भी लोकसभा और राज्यसभा दोनों में विपक्ष को बिल और अविश्वास प्रस्ताव के जरिए पटखनी देकर चुनाव से पहले मिले इस मौके को अपने जीत का परसेप्शन बनाने के लिए उपयोग करने की तैयारी में है।

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