Bilkis Bano Case Convicts Petition In Supreme Court: बिलकिस बानो केस के 11 में से 3 दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। कुल 5 दोषियों ने अलग-अलग याचिकाएं दायर करके कोर्ट से सरेंडर की समय अवधि 2 हफ्तों से बढ़ाकर 6 हफ्ते करने की अपील की है।
सभी ने अलग-अलग याचिकाएं दायर करके निजी कारणों का हवाला देते हुए सरेंडर करने के लिए मोहलत मांगी है। गुजरात सरकार का फैसला रद्द किए जाने और सरेंडर करने का आदेश होने के 8 दिन बाद दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट का रूख किया है। सुप्रीम कोर्ट जल्द याचिकाओं पर सुनवाई करेगी।
बढ़ती उम्र, सेहत और परिवार का हवाला दिया
गोविंद भाई नाई, रमेश रूपा भाई चंदना, मितेश चिमन लाल भट्ट, प्रदीप रमण लाल मोडिया, विपिन चंद्र कन्हैया ने याचिका दायर की है। इन सभी ने स्वास्थ्य, घरेलू और पारिवारिक हालातों का हवाला देते हुए सरेंडर करने का समय मांगा है। गोविंद ने 4 हफ्ते और मितेश-रमेश ने 6 हफ्ते की मोहलत मांगी है।
बिलकिस बानो केस के 2 दोषियों ने बढ़ती उम्र और सेहत का हवाला दिया है। गोविंद भाई ने 88 साल के पिता और 75 साल की मां की देखभाल कारण बताया है। मितेश का कहना है कि खेत में फसल तैयार खड़ी है। उसके कटवाकर बेचने के बाद परिवार को आर्थिक सहायता करनी है।
बिलकिस से रेप, उसके 7 परिजनों की हत्या हुई थी
बता दें कि 2002 में गुजरात के गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस में आग लगाई गई थी, जिसके बाद गुजरात में दंगे हुए थे। बिलकिस बानो का परिवार दंगों का पीड़ित है। मार्च 2002 में भीड़ में शामिल लोगों ने 5 महीने की गर्भवती बिलकिस से रेप किया। उसके परिवार के 7 सदस्यों की हत्या कर दी थी।
6 जान बचाकर भागने में कामयाब हो गए थे। मामले में 11 लोगों को दोषी करार देकर CBI कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई। एक दोषी ने फैसले के खिलाफ गुजरात हाईकोर्ट कर दरवाजा खटखटाया और रिमिशन पॉलिसी के तहत रिहाई मांगी।
सुप्रीम कोर्ट ने रद्द किया था सरकार का फैसला
याचिका पर सुनवाई करके हाईकोर्ट ने इसे खारिज किया। इसके बाद दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। मई 2022 में मामले में सरकार को फैसला लेने को कहा गया। जांच कमेटी बनाई गई, जिसकी सिफारिश पर 11 दोषियों को रिहा कर दिया गया।
रिहाई के खिलाफ बिलकिस और कुछ संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली। केस में जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्जल भुइयां की बेंच ने 8 जनवरी 2024 को अहम फैसला सुनाया और गुजरात सरकार के फैसले को रद्द करके दोषियों को सरेंडर करने का समय दिया।