Azadi Ka Amrit Mahotsav: गांधीजी को आजादी के जश्न में शामिल नहीं होने से ज्यादा क्या थी वो अहम बात
Azadi Ka Amrit Mahotsav: देश आज आजादी का 75 साल पूरा होने और 76वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। देशभर में आजादी के अमृत महोत्सव (Azadi Ka Amrit Mahotsav) के तहत कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। देशभर में देश भक्ति और भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार 'हर घर तिरंगा अभियान' भी चला रही है।
आज ही के दिन 15 अगस्त 1947 को भारत ब्रिटिश हुकूमत के चुंगल से आजाद हुआ था। उस दिन देश भर में आजादी का जश्न मनाया गया और जगह-जगह लोगों ने तिरंगा फहराकर अपनी-अपनी खुशियों का इजहार किया था। लेकिन ये इतना आसान नहीं था। देश को आजादी पाने के लिए तकरीबन 200 साल तक जद्दोजहद करनी पड़ी थी। इसके लिए बहुत से स्वतंत्रता सेनानियों को अपनी जान तक की क़ुर्बानी देनी पड़ी।
लेकिन 15 अगस्त 1947 को जब देश को ब्रिटेन की गुलामी से आजादी मिली थी तब इस जश्न में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी शामिल नहीं हुए थे। आजादी दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले गांधी जी अनशन पर बैठे थे। गांधी जी उस समय दिल्ली से हजारों किलोमीटर दूर बंगाल के नोआखली में थे, जहां सांप्रदायिक हिंसा की कई घटनाएं हुई थीं और राष्ट्रपिता उस हिंसा को रोकने के लिए अनशन कर रहे थे।
जवाहार लाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल ने गांधी जी को दिल्ली में मनाए जाने वाले स्वत्रंता दिवस के जश्न में शामिल होने के लिए एक साथ मिलकर खत भी लिखा था। लेकिन वो नोआखली से नहीं आए। उन्होंने कहा था 'मेरे लिए आजादी के ऐलान के मुकाबले में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच अमन कायम करना ज्यादा अहम है।'
बताया जाता है कि 14 अगस्त की मध्यरात्रि को जब जवाहर लाल नेहरू अपना ऐतिहासिक भाषण दे रहे थे उस वक्त गांधी जी सो रहे थे। क्योंकि वह जल्दी सो जाते थे।
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