Assam News: असम में कल कैबिनेट मीटिंग के दौरान मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने कई बड़े ऐलान किए गए है। इसमें अस्पतालों और राज्यभर के नर्सिंग होम्स पर भी फैसला लिया गया है कि अब से कोई भी स्वास्थ्य सेवा में लगा संस्थान किसी मृतक के परिवार को उनके परिजन के शव को देने से नहीं रोक सकता है। हिमंता ने इसे मानव गरिमा के खिलाफ बताया है। आइए जानते हैं उनके इस फैसले की वजह क्या है और देश के अन्य राज्यों में कैसे नियम हैं।
असम सरकार का फैसला अडिग
दरअसल, कल इस बैठक के दौरान मुख्यमंत्री ने स्पष्ट रूप से कहा है कि सिर्फ इलाज का पूरा बिल न चुकाया जाना, इस आधार पर शवों को बंधक के रूप में अस्पताल में रखना अमानवीय है, जो इंसानियत को दर्शाता है। अगर कोई भी अस्पताल या नर्सिंग होम ऐसा करता पाया गया तो उन पर कड़ी कार्रवाई के साथ-साथ लाइसेंस को हमेशा के लिए रद्द भी किया जा सकता है।
कब रोकी जाती है 'डेड बॉडी'?
भारत में शव सौंपने के लिए भी नियमों का पालन करना होता है। हालांकि, अधिकांश राज्यों में रूल्स एंड रेगुलेशन एक जैसे हैं मगर कुछ बदलाव हो सकते हैं। देश में जन्म और मृत्यु का पंजीकरण अधिनियम, 1969, भारतीय दंड संहिता (IPC), और स्थानीय स्वास्थ्य व प्रशासनिक दिशानिर्देशों पर आधारित है। इसके तहत ही शव को रोका या दिया जाता है। हालांकि, शवों को रोकने के पीछे कई ठोस कारण भी हैं, जैसे कि अज्ञात शव, एक्सिडेंट केस, कानूनी प्रक्रिया और परिवार के बीच शव स्वीकार न करना। प्राइवेट अस्पतालों में बकाया बिल चुकाना भी एक कारण है शवों को रोकने का। असम सरकार का नया नियम भी इस आधार पर है।
शव सौंपने के नियम क्या हैं?
सभी राज्यों में शवों को सौंपने के नियम लगभग एक जैसे हैं। निजी अस्पतालों के इस नियम को भी गैरकानूनी माना गया है लेकिन कई बार अस्पताल ऐसा करते हैं। शव सौंपने के लिए परिवार और उनकी पहचान के दस्तावेज चाहिए होते हैं। शव देने से पहले पोस्टमार्टम होता है और फिर डेथ सर्टिफिकेट दिया जाता है। इसमें मृतक का नाम, मौत का समय, कारण और उम्र समेत जरूरी जानकारी दी जाती है। अगर मौत दुर्घटना, खुदकुशी या किसी अन्य अप्राकृतिक कारण से होती है, तो वह भी इस पर लिखा जाता है। पुलिस का भी बयान भी इसमें मौजूद होता है।
अन्य राज्यों के क्या हैं नियम?
दिल्ली के अस्पताल भी बिल न चुकाने पर शव रोकना गैरकानूनी माना जाता है। वहीं, लीगल केस होने पर पोस्टमार्टम के साथ-साथ फॉरेंसिक रिपोर्ट भी जरूरी होती है। इंदौर हाईकोर्ट भी इसे अमानवीय बताता है, वहां शव रोकने पर उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज की जा सकती है। गुजरात में कानूनी मामलों में फंसे मृत देह को सौंपने से पहले पुलिस एफआईआर और पोस्टमार्टम रिपोर्ट देनी होती है। यहां ग्रामीण इलाकों में भी सभी के डेथ सर्टिफिकेट देने का नियम है, जो पंचायत प्रदान करता है।
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