Alvida 2022: बिजनेस जगत की वो हस्तियां, जो दुनिया से हुईं रुखसत… तुमको भुला न पाएंगे!
विजय शंकर की रिपोर्ट: वक्त किसी के लिए नहीं ठहरता। अहम ये होता है कि नियति ने आपको जितना वक्त दिया, उसे आपने इस्तेमाल कैसे किया। समाज से आपको जो मिला, उसे आपने किस तरह से समाज को वापस किया। साल 2022 का कैलेंडर पलटने का समय आ चुका है और नए साल का इंतजार हो रहा है। लेकिन, जब भी 2022 के पन्ने को पलटा जाएगा तो बिजनेस वर्ल्ड की उन हस्तियों को भी याद किया जाएगा जिन्होंने इस साल दुनिया को अलविदा कहा।
2022 में बिजनेस वर्ल्ड की कई हस्तियां दुनिया से रुखसत हुईं
किसी ने लोगों को साइकिल से स्कूटर पर चलने का रास्ता दिखाया। किसी ने देश की शहरी आबादी के लिए पीने के साफ पानी का रास्ता निकाला। 2022 में बिजनेस वर्ल्ड की कई हस्तियां दुनिया से रुखसत हुईं। जिन्हें समाज में बदलाव के बाजीगर के तौर पर याद किया जाएगा। जैसी कारोबार जगत की कई हस्तियां इस साल पंचतत्व में विलीन हो गईं। किसी ने बीमारी से जूझते हुए दुनिया को अलविदा कहा तो किसी की रोड एक्सीडेंट में जान गयी। समय का चक्र जैसे अनुकूल रहा या प्रतिकूल कारोबार के इन किंग्स के लिए देश सबसे पहले रहा इन्होंने कारोबारी विस्तार के साथ भारत के आम लोगों के बारे में भी सोचा। लोगों की मुश्किलें कम करने और भारत की तरक्की को नई ऊंचाई देने के लिए पूरे कर्मयोग के साथ काम किया। भारत के नक्शे पर अपनी एक बहुत ही चमकदार पहचान बनाई। कारोबार में मुनाफा ही नहीं सोचा आम लोगों की जिंदगी में बदलाव का काम भी पूरी शिद्दत से किया। सबसे पहले बात राहुल बजाज की ।
राहुल बजाज
1938-2022
[caption id="attachment_119502" align="alignnone" ] राहुल बजाज[/caption]
चेतक स्कूटर के जरिए देश के करोड़ों लोगों से रिश्ता जोड़ा
83 साल की उम्र में भले ही इस साल 12 फरवरी को राहुल बजाज के शरीर का सांसों से रिश्ता टूट गया। लेकिन, उन्होंने बजाज चेतक स्कूटर के जरिए देश के करोड़ों लोगों से जो रिश्ता जोड़ा वो अभी भी लोगों के जेहन में है। भारत के मध्य वर्गीय परिवारों की सैकड़ों यादें बजाज के स्कूटर से जुड़ी हैं। 1990 के दशक के बजाज के इस विज्ञापन को शायद आप अभी भी भूले नहीं होंगे।
साइकिल से स्कूटर की ओर ले जाने का सपना
1970 के दशक में राहुल बजाज ने कारोबार जगत में एक ऐसी लकीर खींची। जिसमें एक ओर लोगों को साइकिल से स्कूटर की ओर ले जाने का सपना था, दूसरी ओर भारत की तरक्की का मंत्र। राहुल बजाज विदेशों में पढ़े-लिखे थे। लेकिन, भारत को लेकर उनकी समझ गजब की थी। जिस दौर में युवा राहुल बजाज ने देश के ट्रांसपोर्ट सेक्टर की तस्वीर बदलने का सपना देखा। तब भारत के ज्यादातर हिस्सों में सड़कें और सार्वजनिक परिवहन यानी पब्लिक ट्रांसपोर्ट की स्थिति अच्छी नहीं थी। ऐसे में 1970 के दशक में राहुल बजाज ने भारत के लोगों को चेतक स्कूटर दिया। उस दौर में बजाज का ये स्कूटर लोगों की आन-बान और शान बन गया। 1970 के दौर में जब बजाज का स्कूटर बाजार में आया तो इसके लिए महीनों की वेटिंग होती थी। कुछ वर्षों के भीतर ही बजाज का स्कूटर लोगों की आन-बान और शान का प्रतीक बन गया। ऐसे में राहुल बजाज ने चेतक स्कूटर के जरिए देश के हर हिस्से के लोगों से एक गहरा रिश्ता जोड़ लिया। ये उनकी सोच और दूरदृष्टि का ही कमाल था कि बजाज लोगों के दिलों पर राज करता रहा। अपने दौर में बजाज दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी स्कूटर बनाने वाली कंपनी बनी। राहुल बजाज एक ऐसे कारोबारी थे। जिन्होंने हमेशा गलत को गलत और सही को सही कहने की हिम्मत दिखाई।
स्वतंत्रता सेनानी और कारोबार जमनालाल बजाज के पोते
स्वतंत्रता सेनानी और कारोबार जमनालाल बजाज के पोते थे राहुल बजाज। ऐसे में उन्हें विरासत में सिर्फ कारोबार ही नहीं उच्च आदर्श भी मिले थे। पिता कमलनयन बजाज के निधन के बाद जब बजाज ग्रुप की कमान पूरी तरह से राहुल बजाज के हाथों में आईं। उन्होंने टू व्हीलर और थ्री व्हीलर बनाने वाली अपनी कंपनी बजाज ऑटो को ना सिर्फ खड़ा किया बल्कि उसे नई पहचान भी दिलाई। राहुल बजाज अपनी बेबाकी के लिए भी जाने जाते थे। कॉरपोरेट इंडिया की चिंता हो या देश हित का मुद्दा उन्होंने कभी खुलकर बोलने से गुरेज नहीं किया। राहुल बजाज ने अपनी बुलंद सोच से ना सिर्फ अपने बिजनेस अंपायर को आगे बढ़ाया बल्कि देश को लोगों को सपने देखने और उसे पूरा करने का भी मंत्र दिया समाज में योगदान के लिए उन्हें साल 2001 में पद्म भूषण से भी नवाजा गया। वो राज्यसभा सांसद भी रहे। दो बार सीआईआई के अध्यक्ष भी। भले ही वक्त के साथ बजाज स्कूटर को बाजार में कड़ी चुनौती मिलने लगी और वो एक सुनहरा अतीत बन गया। लेकिन, राहुल बजाज ने बिजनेस और समाज को आगे बढ़ाने के लिए जो रास्ता चुना और जितनी बेवाकी के साथ ताउम्र अपनी बात कहते रहे। ऐसे में वो लोगों की यादों में हमेशा बने रहेंगे। देश के युवा कारोबारी भारत निर्माण में अपनी दमदार भूमिका के लिए उनसे रौशनी लेते रहेंगे।
राकेश झुनझुनवाला
(1960-2022)
[caption id="attachment_119504" align="alignnone" ] राकेश झुनझुनवाला[/caption]
पीएम मोदी भी थे मुरीद
भारत के लोगों को शेयर बाजार में निवेश और अच्छी कमाई का फलसफा राकेश झुनझुनवाला सिखा गए। इस कारोबारी की कामयाबी की कहानी एक आम आदमी के शेयर बाजार का सिकंदर बनने की कहानी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इनके मुरीद थे। शेयर बाजार की नब्ज पहचानने में राकेश झुनझुनवाला का कोई जवाब नहीं था। साल 1985 में पांच हजार रुपये की पूंजी को 46 हज़ार करोड़ में बदल दिया। ये किसी चमत्कार से कम नहीं है। इसलिए राकेश झुनझुनवाला को भारत के वॉरेन बफे के नाम से जाना जाता था। पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट राकेश झुनझुनवाला ने जब शेयरों की खरीद-ब्रिकी में हाथ आजमाया उनकी पहचान एक ऐसे शख्स की बनी, जिसमें वो जिस शेयर में हाथ लगाते वो सोना बन जाता और जिसे छोड़ देते मिट्टी हो जाता। जो भी शेयर राकेश झुनझुनवाला के पोर्टफोलियो में शामिल होता। उसमें लोग आंख बंद कर पैसा लगाने लगते। शेयर बाजार की दुनिया में उनकी छवि एक आत्मविश्वासी निवेशक और घोर आशावादी की बनी।
मैं वही करता हूं, जो मुझे पसंद है...
राकेश झुनझुनवाला को जिस कंपनी के शेयर ने बिग बुल बनायावह थी टाटा की टाइटन कंपनी। उनके शेयर ट्रेडिंग पैटर्न को करीब से देखने वालों के मुताबिक राकेश झुनझुनवाला किसी भी कंपनी के 5 से 15 फीसदी शेयर खरीदते थे। कहा जाता है कि राकेश झुनझुनवाला परदे के पीछे से अपने पोर्टफोलियों में शामिल शेयर वाली कंपनियों को फैसलों को प्रभावित करते थे। जब उनके बिजनेस के तौर-तरीकों को लेकर सवाल उठता तो उनका जवाब होता था- मैं वही करता हूं, जो मुझे पसंद है। शेयर बाजार के इस खिलाड़ी का अपना स्टाइल था...16 अगस्त को उन्होंने आखिरी सांस ली । लेकिन, शेयर बाजार में निवेश करने वालों को वो दो मंत्र दे गए। पहला–भेड़चाल से बचें यानी दूसरों की देखा-देखी शेयर बेचने और खरीदने की आदत छोड़ दें। दूसरा, शेयर बाजार में धैर्य सबसे जरूरी है। मतलब, शॉट टर्म फायदे वाली सोच से बचें।
पालोनजी मिस्त्री
(1929-2022)
[caption id="attachment_119516" align="alignnone" ] पालोनजी मिस्त्री [/caption]
टी फैंटम ऑफ बॉम्बे हाउस के नाम से मशहूर
गुजरात के एक पारसी परिवार में पैदा हुए पालोनजी मिस्त्री टी फैंटम ऑफ बॉम्बे हाउस के नाम से मशहूर थे। कंस्ट्रक्शन सेक्टर की दिग्गज कंपनियों में एक शापोरजी पलोनजी ग्रुप के सर्वेसर्वा रहे पालोनजी को देश का गुमनाम अरबपति माना जाता था। जो सार्वजनिक मंचों से दूर रहते हुए चुपचाप अपना काम करते रहे। लेकिन, इस साल जून में जब 93 साल के इस बिजनेस टायकून ने आखिरी सांस ली। देश की शहरी आबादी के नम आंखों से इसे श्रद्धांजलि दी। शापूरजी पालोनजी ग्रुप की यूरेका फोर्ब्स नाम की कंपनी ने भारत के शहरी लोगों को शुद्ध पानी पीना सिखाया। इस कंपनी ने देश के लोगों का परिचय वाटर प्यूरीफायर से कराया। बाद में यूरेका फोर्ब्स ने वैक्यूम क्लीनर, एयर प्यूरीफायर जैसे प्रोडक्ट भी बनाए। लेकिन, पिछले साल सापूरजी पालनजी ग्रुप ने यूरेका फॉर्ब्स को एक अमेरिकी प्राइवेट कंपनी को बेच दिया था। भले ही पालोनजी मिस्त्री अब इस दुनिया में नही हैं। उनकी कंपनियां पूरी दुनिया में छाई हुई हैं और जब भी वाटर प्यूरीफायर की बात होगी तड़क-भड़क से दूर रहने वाला ये कारोबार का किंग लोगों के जेहन में आएगा।
साइरस मिस्त्री
1968 –2022
[caption id="attachment_119521" align="alignnone" ] साइरस मिस्त्री[/caption]
युवा बिजनेस की चलती-फिरती यूनिवर्सिटी
साइरस मिस्त्री जब भी लोगों के बीच आते। उनके चेहरे पर हमेशा मुस्कान रहती। उन्हें युवा बिजनेस की चलती-फिरती यूनिवर्सिटी कहते थे। लेकिन, इस साल 4 सितंबर को महाराष्ट्र में एक भीषण सड़क हादसे में साइरस मिस्त्री की मौत हो गई। इस हादसे ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया। रोड सेफ्टी नियमों को लेकर भी सवाल उठे। साइरस मिस्त्री की एक पहचान ये है कि देश की शहरी आबादी को शुद्ध पानी पिलाने वाले पालोनजी मिस्त्री के सबसे छोटे बेटे थे। दूसरा परिचय है कि साइरस मिस्त्री टाटा ग्रुप की कंपनी टाटा संस के छठे और सबसे युवा चेयरमैन रहे। बाद में उन्हें इस पद से हटा दिया गया। साइरस मिस्त्री ने अपने फैमली बिजनेस को गजब की ऊंचाई तक पहुंचाया। उनकी कामयाबी और कारोबार का तौर-तरीका दुनियाभर के नामी बिजनेस स्कूल के छात्रों के लिए केस स्टडी है। ये भी एक अजीब इत्तेफाक है कि साइरस मिस्त्री की सड़क हादसे में मौत पिता पालोनजी मिस्त्री के निधन के ठीक 68वें दिन हुई। इतने बड़े कारोबारी को जिस तरह से दुनिया से असमय जाना पड़ा उसमें एक संदेश ये भी है कि सड़क के नियमों का पालन करना जरूरी है। मौत अमीर-गरीब में भेद नहीं करती है।
विक्रम एस किर्लोस्कर
1958-2002
[caption id="attachment_119523" align="alignnone" ] विक्रम एस किर्लोस्कर[/caption]
पंप सेट से लेकर ट्रैक्टर बनाने तक में बड़ी भूमिका
देश के एक और जाने-माने बिजनेस टायकून की कमी पूरी दुनिया महसूस करेगी- टोयोटा किर्लोस्कर मोटर के वाइस प्रेसिडेंट विक्रम एस किर्लोस्कर। जिन्होंने 64 साल की उम्र में 29 नवंबर को आखिरी सांस ली। मौत की वजह हार्ट अटैक। विक्रम किर्लोस्कर एक ऐसे कारोबारी घराने से ताल्लुक रखते हैं जिसने भारत निर्माण में हमेशा अगुवा की भूमिका निभाई है। जब 1888 में किर्लोस्कर की स्थापना हुई तब इस कंपनी ने भारत जैसे कृषि प्रधान देश के लिए लोहे का हल बनाना शुरू किया। बाद में चारा काटने की मशीन। समय के साथ कंपनी का विस्तार होता रहा और किर्लोस्कर ने पंप सेट से लेकर ट्रैक्टर बनाने तक में बड़ी भूमिका निभाई। विक्रम एस किर्लोस्कर ने 1990 के दशक में जापान की टोयोटा मोटर कॉर्प को भारत लाने में बड़ी भूमिका निभाई। Fortuner हो या Innova, Glanza हो या Camry जैसी गाड़ियां अगर भारत की सड़कों पर दिख रही हैं तो इसमें विक्रम किर्लोस्कर की अहम भूमिका है।
जब भी आधुनिक भारत का इतिहास पलटा जाएगा...
भारत की सनातन परंपरा में कहा गया है कि इंसान का शरीर चला जाता है- इस धरती पर उसके कर्म ही रह जाते हैं। ऐसे में जब भी आधुनिक भारत का इतिहास पलटा जाएगा। जब भी भारत गढ़ने में अहम भूमिका निभाने वाले शिल्पकारों की चर्चा होगी उसमें साल 2022 का भी जिक्र होगा। क्योंकि, इस साल भारत ने राहुल बजाज, राकेश झुनझुनवाला, पालोनजी मिस्त्री, साइरस मिस्त्री और विक्रम एस किर्लोस्कर को खोया है।अब इनके कारोबारी साम्राज्य, सामाजिक सरोकार और आदर्शों को आगे बढ़ाने में इनकी अगली पीढ़ी लगी है ।
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