राजधानी दिल्ली प्रदूषण के मामले में हर साल अव्वल नंबर पर रहता है। हालांकि, उत्तर भारत के कई राज्यों में अक्टूबर से दिसंबर के बीच प्रदूषण इतना ज्यादा होता है कि लोगों का बाहर निकलना और खुली हवा में सांस लेना भी दूभर हो जाता है। सोमवार को केंद्रीय मंत्री नितिन गड़करी ने एक बयान दिया कि दिल्ली में 3 दिन रहने से संक्रमण हो जाएगा। उनका यह बयान तर्कपूर्ण है लेकिन उन्होंने यह एक अध्ययन का दावा करते हुए बोला है। भले ही यह रिसर्च का दावा हो लेकिन दिल्लीवासियों के लिए चिंताजनक बात है। नितिन गड़करी ने यह भी बोला है कि दिल्ली और मुंबई दो रेड जोन हैं, जहां प्रदूषण सबसे अधिक है। इसमें जल और वायु दोनों शामिल हैं और दोनों के सुधार के लिए कई महत्वपूर्ण कदमों को अपनाने की जरूरत है।
गडकरी ने क्या कहा?
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गड़करी ने दिल्ली के प्रदूषण के प्रति चिंता जताते हुए कहा कि शहर में प्रदूषण का स्तर इतना गहरा है कि तीन दिन रहने से भी संक्रमण हो सकता है। उन्होंने रिसर्च का हवाला देते हुए यह भी कहा कि यहां रहने वाले लोगों की जिंदगी औसतन 10 साल घट रही है। इसके अलावा, वह बताते हैं कि हमें बुनियादी ढांचों के साथ-साथ पर्यावरण के प्रति भी सही समाधानों की खोज करनी होगी।
क्या सच में जहरीली है दिल्ली की हवा?
बीते साल दिसंबर में दिल्ली की हवा इतनी ज्यादा जहरीली थी कि लोगों को पूरे 167 दिनों तक खराब हवा के संपर्क में रहना पड़ा था। रिपोर्ट्स के मुताबिक 16 दिसंबर से खराब हवा की श्रेणी में तेजी से गिरावट हुई और फिर लगातार एयर क्वालिटी का स्तर घटता रहा। उस वक्त सीपीसीबी (CPCB) ने एक रिपोर्ट जारी की थी, जो इस बात का दावा करती हैं कि साल 2019 के बाद 2024 में दिल्ली का स्तर अति खराब श्रेणी में आया है।
WHO का वायु प्रदूषण पर क्या कहना?
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाल ही में एक जर्नल पेश प्रकाशित किया है जिसमें उन्होंने एक डाटाबेस कलेक्ट किया दुनिया के सभी देशों के वायु मानकों के प्रभावों का। इस अपडेटेड एयर क्वालिटी स्टैंडर्ड्स डेटाबेस प्रदूषकों और अन्य वायुजनित विषाक्त पदार्थों के लिए राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानकों को कंपाइल करता है। इसमें मानव स्वास्थ्य को लेकर जोखिम पैदा करने वाले प्रदूषकों के लिए कुछ मानकों को लागू किया गया है।
क्या कहता है DATA
WHOके इस डाटा के मुताबिक, जो पार्टिकुलेट मैटर (PM10 और PM 2.5 ), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO 2), सल्फर डाइऑक्साइड (SO 2 ), ओजोन (O 3 ) और कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) के लिए शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म, दोनों स्टैंडर्स के लिए वैल्यू प्रदान करता है। ये वैल्यू औसत समय पर आधारित हैं, जो WHO के वैश्विक वायु गुणवत्ता दिशानिर्देशों के अनुरूप हैं। डाटा के मुताबिक, नियमों और रोकथाम के बाद भी दुनिया भर में बीमारियों के बोझ का एक चौथाई हिस्सा है, प्रदूषण का है। अकेले वायु प्रदूषण से ही लगभग 7 मिलियन मौतें होती है। इनमें से कई मौतें ऊर्जा, परिवहन, कृषि, घरेलू, उद्योग और अन्य क्षेत्रों में नीतियों के माध्यम से रोकी जा सकती हैं। इन बीमारियों के जोखिमों में हार्ट, रेस्पिरेटरी और इम्यूनिटी रिलेटेड प्रॉब्लम शामिल हैं।
AQI का चिंताजनक स्तर क्या है?
यूएस एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) बाहरी वायु गुणवत्ता और स्वास्थ्य के बारे में संचार करने के लिए EPA का उपकरण है। AQI में छह कलर कोडिड श्रेणियां शामिल हैं, जिनमें से प्रत्येक इंडेक्स की एक सीमा के अनुरूप है। AQI मान जितना अधिक होगा, वायु प्रदूषण का स्तर उतना ही अधिक होगा और स्वास्थ्य संबंधी चिंता उतनी ही अधिक बढ़ेगी। उदाहरण के लिए, 50 या उससे कम का AQI मान अच्छी वायु गुणवत्ता को दर्शाता है, जबकि 300 से अधिक का AQI मान खतरनाक वायु गुणवत्ता को दर्शाता है। इस ग्राफिक की मदद से समझें।
वायु प्रदूषण के प्रमुख कारण
फॉसिल फ्यूल के जलने से फैलने वाला पाल्यूशन। दिल्ली में हर साल पराली से ही पॉल्यूशन की शुरुआत होती हैं।
इंडस्ट्रियल एमिशन्स, कारखानों, पावर प्लांट्स तथा फैक्ट्री वेस्ट प्रदूषण का एक और कारण है। दिल्ली से सटे नोएडा, गाजियाबाद और फरीदाबाद में कई फैक्ट्रियां मौजूद हैं।
वाहनों से फैलने वाला प्रदूषण।
निर्माण और विध्वंस कार्यों से होने वाला प्रदूषण।
कई कृषि गतिविधियां भी प्रदूषण का कारण होती है।
खराब हवा का शरीर पर क्या असर?
उत्तराखंड के आयुर्वेदिक स्पेशलिस्ट डॉक्टर उज्जवल वर्मा के अनुसार, एयर क्वालिटी इंडेक्स यानी हवा की गुणवत्ता होता है। वे कहते हैं- हम जिस हवा में सांस लेते हैं वह जीवन के लिए आवश्यक है। अच्छी वायु गुणवत्ता हमें बेहतर महसूस कराती है और हमारे स्वास्थ्य की रक्षा करती है। वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) हवा में मौजूद प्रदूषकों और उनके स्तरों को मापता है, जो हमारे शरीर पर होने वाले प्रभावों को रोकने के लिए बहुमूल्य जानकारी प्रदान करता है। वायु प्रदूषण कई बीमारियों का कारण भी बन सकता है जिसमें- हृदय रोग, स्ट्रोक, फेफड़ों का कैंसर और रेस्पिरेटरी इंफेक्शन शामिल हैं। जैसे कि लंबे समय तक खांसी, एलर्जी और गले में खराश आदि होना।
लाइफस्पैन कम हो सकता है?
WHO की रिपोर्ट भी इस बारे में दावा कर चुकी है कि हवा की क्वालिटी अगर खराब रहती है और कोई लंबे समय तक इसके संपर्क में रहता है, तो उसके जीवन की गुणवत्ता कम हो सकती है। खराब हवा के कण शरीर के अंगों के अंदर प्रवेश कर उन्हें क्षतिग्रस्त कर सकते हैं, जिससे लाइफ स्पैन को कम कर सकता है। स्मोकिंग और वायु प्रदूषण दोनों की तुलना सामान्य ही मानी जाती है।
आम नागरिक क्या कर सकते हैं?
स्वस्थ रहने के लिए आम नागरिकों को कुछ बातों का पालन करना होता है, जैसे कि
मास्क पहनना, एयर प्यूरीफायर और घर में प्लांट लगाना।
हेल्दी डाइट से शरीर को डिटॉक्स करना।
नितिन गड़करी का प्लान?
प्रदूषण को कम कर लोगों के जीवन की रक्षा करने के लिए केंद्रीय मंत्री का कहना है कि हमें पर्यावरण के मुद्दे को गंभीरता से लेना होगा। सड़कों पर जाम की स्थिति को कम करने के लिए समाधानों की तलाश करने की जरूरत है। भारत को विश्वगुरु बनाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर निर्माण करने की जरूरत है। इसके लिए हम आयात से ज्यादा निर्यात बढ़ाना होगा।
ये भी पढ़ें- छोटी उम्र में साइलेंट अटैक क्यों?Disclaimer: ऊपर दी गई जानकारी पर अमल करने से पहले विशेषज्ञों से राय अवश्य लें। News24 की ओर से जानकारी का दावा नहीं किया जा रहा है।