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Colorectal cancer: बेहद खतरनाक है बड़ी आंत का कैंसर, Dr. Tejinder Kataria से जानिए इसके बारे में सबकुछ

Colorectal cancer Symptoms: इन दिनों दुनिया भर में कैंसर तेजी से पैर पसार रहा है। कैंसर के अनेक प्रकारों में अब कोलोरेक्टल कैंसर का नाम भी उभरकर साने आया है। वैसे तो यह बुजुर्गों को सबसे पहले शिकार बनाता है, लेकिन अब युवाओं के लिए भी इससे खतरा बढ़ गया। इसे बड़ी आंत का कैंसर […]

What is Colorectal cancer treatment told by Dr. Tejinder Kataria
Colorectal cancer Symptoms: इन दिनों दुनिया भर में कैंसर तेजी से पैर पसार रहा है। कैंसर के अनेक प्रकारों में अब कोलोरेक्टल कैंसर का नाम भी उभरकर साने आया है। वैसे तो यह बुजुर्गों को सबसे पहले शिकार बनाता है, लेकिन अब युवाओं के लिए भी इससे खतरा बढ़ गया। इसे बड़ी आंत का कैंसर भी कहा जाता है। आखिर आप इससे कैसे बच सकते हैं...इसके लक्षण, कारण और इलाज क्या है? इस बारे में डॉ. तेजिंदर कटारिया ने विस्तार से बताता है। डॉ. तेजिंदर कटारिया गुड़गांव स्थित मेदांता अस्पताल में विकिरण कैंसर विज्ञान सैंटर की चेयरपर्सन हैं।

क्या है कोलोरेक्टल कैंसर?

कोलोरेक्टल कैंसर को कोलोन कैंसर भी कहा जाता है। इसे बड़ी आंत का कैंसर भी कहते हैं। बड़ी आंत को अंग्रेजी में कोलोन कहते हैं। ये वही आंत होती है, जो शरीर में पाचन (Digestion) और पानी के अवशोषण और टॉक्सिक पदार्थों को खत्म करने में अहम भूमिका निभाती है। तेजी से बढ़ते वजन और मोटापा से कोलोरेक्टल कैंसर का खतरा बढ़ जाता है, ये कैंसर तब शुरू होता है जब मलाशय के अस्तर में स्वस्थ कोशिकाएं बदलती हैं और नियंत्रण से बाहर हो जाती हैं, जिससे ट्यूमर बनता है। और पढ़िए – Cancer Screening: स्क्रीनिंग रोक सकती है कैंसर से होने वाली मौतें, एक्सपर्ट्स से जानें इसके बारे में सबकुछ

कोलोरेक्टल कैंसर के सालाना 19,500 लोग शिकार होते हैं

पूरे विश्व में कैंसर का डेटा रखने वाली GLOBOCAN 2018 के अनुसार, भारत में कोलो-रेक्टल कैंसर की घटनाएं पश्चिमी देशों की तुलना में कम हैं। यह भारत का सातवां सबसे आम कैंसर है। इस कैंसर से सालाना 19,500 लोग शिकार होते हैं। इस कैंसर से पीड़ित लोगों की उम्र 5 साल तक कम हो जाती है। पश्चिमी देशों की तुलना में यह भारत में कम है, इसके पीछे की वजह रेड-मीट की कम खपत और शाकाहारी खाद्य पदार्थों का कम सेवन है।

कोलो-रेक्टल कैंसर के लक्षण

  • मल में दर्द के साथ खून आना
  • उल्टी होना
  • भूख न लगना
  • थकान रहना
  • पेट में गैस और दर्द
  • पेट में सूजन
  • बारी-बारी से दस्त
  • कब्ज की समस्या

कोलो-रेक्टल कैंसर के कारण

कोलो-रेक्टल कैंसर में ज्यादातर जैनिटिक मामले सामने आते हैं। इसके अलावा बढ़ता मोटापा, रेड मीट का ज्यादा सेवन, धूम्रपान और अल्कोहल का ज्यादा सेवन आपको इसका शिकार बना सकता है। अधिक शुगर का ज्यादा सेवन और शौच की बदलती आदतों के चलते भी कोलन कैंसर हो सकता है।

कोलोरेक्टल कैंसर का इलाज कैसे किया जाता है?

कोलोरेक्टल कैसंर में सबसे शुरुआती चरण सर्जरी होता है। सर्जरी के बाद कीमोथैरेपी और या रेडिएशन है। सर्जरी का प्रकार कैंसर के चरण (सीमा) पर निर्भर करता है, जहां यह कोलन में होता है, और सर्जरी का लक्ष्य इसे ठीक करना होता है। वहीं कीमोथेरेपी में कैंसर रोधी दवाओं के साथ उपचार किया जाता है, जबकि रेडियेशन थेरपी की मदद से कैंसर की कोशिकाओं को नष्ट किया जाता है। इसके लिए उच्च-ऊर्जा किरणों (जैसे एक्स-रे) या कणों का उपयोग करके इलाज किया जाता है। और पढ़िए – Weight loss TIPS: ये पानी घटा देगा पेट की जिद्दी चर्बी…बढ़ेगी इम्युनिटी, मिलेंगे 6 जबरदस्त फायदे, बस ऐसे करें सेवन

इन ट्रीटमेंट की मदद भी ली जाती है

कोलोरेक्टल कैंसर के इलाज में सीरम ट्यूमर मार्कर-सीईए, लोअर जीआई एंडोस्कोपी या अल्ट्रासोनोग्राम एंडोस्कोपी और बायोप्सी की मदद ली जाती है। इस कैंसर के इलाज में सीटी स्कैन और एमआरआई (Magnetic resonance imaging) की मदद ली जा सकती है। क्योंकि एक सीटी स्कैन आपके शरीर के विस्तृत क्रॉस-सेक्शनल चित्र बनाने के लिए एक्स-रे का उपयोग करता है। यह परीक्षण यह बताने में मदद कर सकता है कि क्या कोलोरेक्टल कैंसर पास के लिम्फ नोड्स या आपके लीवर, फेफड़े या दूसरे अंगों में फैल है या नही।

एंडोस्कोपी से प्री-कैंसर पॉलीप्स का पता लगता है

एंडोस्कोपी पर कोलोरेक्टल कैंसर के प्री-कैंसर पॉलीप्स का पता लगाया जा सकता है। ऐसा करके कैंसर के विकास को रोका जा सकता है। इसे सर्विलांस एंडोस्कोपी के रूप में जाना जाता है। अगर मरीज के किसी रिश्तेदार को कोलन कैंसर है तो परिवार के सदस्यों को डॉक्टर की सलाह पर 50 साल की उम्र में सर्बीलेंस एंडोस्कोपी शुरू कर देनी चाहिए। आपको बता दें कि एंडोस्कोपी एक चिकित्सा प्रक्रिया है, जिसका उपयोग ऊतक या आंतरिक अंग को विस्तार से देखने के लिए किया जाता है।

वंशानुगत मामलों में दी जाती है इम्यूनोथेरेपी की सलाह

कोलो-रेक्टल कैंसर में माइक्रो-सैटेलाइट-अस्थिरता (MSI) कैंसर कोशिकाएं कई डीएनए उत्परिवर्तन करती हैं। यह वंशानुगत मामलों में आम होता है। यह लगभग 15% कोलो-रेक्टल कैंसर में होता है, इसके लिए कीमोथेरेपी कारगर नहीं होती। ऐसे रोगियों का इलाज इम्यूनोथेरेपी और लक्षित दवाओं के साथ किया जाता है। आपको बता दें कि इम्युनोथैरेपी कैंसर कोशिकाओं को चिह्नित करती है, जिससे इम्यून सिस्टम के लिए उन्हें खोजने, नष्ट करने और कैंसर के खिलाफ बेहतर काम करने में मदद मिलती है। और पढ़िए – हेल्थ से जुड़ी अन्य बड़ी ख़बरें यहाँ पढ़ें


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