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Ram Sita Milan: ऐसे हुई पुष्प वाटिका में राम-सीता की पहली भेंट, जानें प्रेम और मर्यादा की यह अनुपम कथा

Ram Sita Milan: त्रेतायुग में भगवान राम और माता सीता का प्रथम मिलन एक अन्यतम अद्भुत घटना है. जनकपुर के पुष्प वाटिका में राम-सीता मिलन की यह कथा युगों-युगों से मन को छूती आई है? आखिर उस क्षण में ऐसा क्या था जिसने जीवन की दिशा ही बदल दी? आइए जानते हैं, राम-सीता की पहली भेंट की अनुपम कथा.

Ram Sita Milan: अहिल्या को श्राप से मुक्त करने के बाद, राम, लक्ष्मण और विश्वामित्र आगे बढ़े और मिथिला के राजा जनक की राजधानी जनकपुर की ओर गए. यहां सीता का स्वयंवर होना था. त्रेतायुग का जनकपुर आध्यात्मिकता और सौंदर्य का अद्भुत संगम था. यहां के महल, उपवन और मंदिर हर ओर पवित्रता की आभा बिखेरते थे. इन्हीं उपवनों में एक थी 'पुष्प वाटिका', जहां स्वच्छ जलस्रोतों की कल-कल ध्वनि और खिले फूलों की महक वातावरण को स्वर्ग जैसा बना देती थी. इसी मनोहर स्थल पर होने वाला राम-सीता मिलन इतिहास की सबसे सुंदर कथाओं में एक है. आइए जानते हैं, पुष्प वाटिका में राम-सीता की पहली भेंट कैसे हुई थी और यह कथा क्या संदेश देती है?

गुरु आज्ञा से वाटिका पहुंचे श्रीराम

एक दिन विश्वामित्र जी ने पूजा के लिए शुभ पुष्प लाने का आदेश दिया. आदेश मिलते ही श्रीराम और लक्ष्मण उस वाटिका की ओर चल पड़े. राम के कदमों के साथ एक दिव्य शांति फैलती जाती थी, मानो प्रकृति स्वयं उन्हें स्वागत करने के लिए सजी हो.

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गिरिजा पूजा खातिर आईं सीता माता

उसी समय मां जानकी अपनी सहेलियों के साथ देवी गिरिजा भवानी की पूजा के लिए फूल चुनने पहुंचीं. जैसे ही वे उपवन में आगे बढ़ीं, हवा में हल्की-सी सुगंध और सौम्यता और भी बढ़ने लगी. उनकी सहज विनम्रता और सौम्य रूप पूरे उपवन को आलोकित कर रहे थे.

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प्रथम दर्शन: मौन में बंधा एक दिव्य संवाद

भगवान राम और माता सीता, इन दोनों की की नजर जैसे ही एक-दूसरे पर पड़ी, समय मानो थम गया. श्रीराम की दृष्टि में मर्यादा और सौम्यता थी. सीता के नेत्रों में लज्जा और दिव्यता का मिश्रण. हालांकि, वे दोनों स्तंभित थे लेकिन ऐसा लग रहा था कि मौन में भी एक दिव्य संवाद चल रहा हो.

किसी ने कुछ नहीं कहा, पर उस क्षणभर के मौन में एक गहरा, पवित्र और आजीवन चलने वाला संबंध जन्म ले चुका था. ऐसा लगा मानो उनकी आत्माएं एक-दूसरे को पहचान चुकी हों.

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श्रीराम का मन हुआ विचलित

वाटिका से लौटने के बाद श्रीराम का मन विचलित हो उठा. उन्हें लगा जैसे किसी ने उनके शांत हृदय-सरोवर में एक कंकरी डाल दी हो और उसमें उठने वाली लहरें बार-बार सीता की छवि उभार रही हों. यह भाव नया था, पर स्वाभाविक भी.

सीता की मनोदशा पर बहनों की चुटकी

उधर जानकी भी अपने कक्ष में चुपचाप बैठी थीं. बहनों ने मुस्कराकर कहा- 'दीदी का मन तो लगता है पुष्प वाटिका में ही रह गया.' सीता चुप रहीं, पर उनके भीतर संकल्प जन्म ले चुका था. वे मन ही मन राम को अपने पति रूप में स्वीकार कर चुकी थीं.

देवी सीता की मां पार्वती से प्रार्थना

राजा जनक ने स्वयंवर के लिए कठोर शर्त रखी थी कि जो शिवधनुष उठाकर प्रत्यंचा यानी डोरी चढ़ाएगा, वही सीता का वर बनेगा. सीता को चिंता हुई कि कहीं राम इस परीक्षा में सफल होंगे या नहीं. उन्होंने पार्वती मां से प्रार्थना की कि उन्हें वही वर मिले जो उनके मन में बस चुके हैं. मां पार्वती ने आशीर्वाद दिया- 'चिंता मत करो, तुम्हारा विवाह उसी से होगा, जो तुम्हारे लिए ही अवतरित हुआ है.'

राम-सीता मिलन का आध्यात्मिक संदेश

राम-सीता का यह मिलन मात्र प्रेम कथा नहीं, बल्कि मर्यादा, शुचिता, समर्पण और दिव्य नियति का प्रतीक है. यह मिलन सिखाता है कि पवित्र प्रेम मौन में भी अपना मार्ग बना लेता है और जो युगल ईश्वर की नियति में लिखा हो, उनका मार्ग स्वयं ब्रह्मांड प्रशस्त करता है.

यह प्रसंग हमें सिखाता है कि प्रेम में पवित्रता होनी चाहिए. हमारे संबंध कर्तव्य और मर्यादा पर टिके होने चाहिए. मन का संकल्प और विश्वास कठिन परिस्थितियों को भी सरल बना देता है. राम-सीता का प्रथम मिलन केवल दिव्य प्रेम ही नहीं, बल्कि धर्म और मर्यादा की विजय का भी अनूठा संदेश देता है.

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।


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