कैसे काम करेगी यह तकनीक?
एयरो इंडिया 2025 में वॉटरफ्लाई टेक्नोलॉजीज के को-फाउंडर हर्ष राजेश ने इस नए ट्रांसपोर्ट सिस्टम की जानकारी दी। कंपनी सी-ग्लाइडर (Seaglider) तकनीक पर आधारित विंग-इन-ग्राउंड (WIG) क्राफ्ट विकसित कर रही है। यह वाहन समुद्र की सतह से केवल 4 मीटर की ऊंचाई पर उड़ान भरेगा, जिससे यात्रा तेज और किफायती होगी।ग्राउंड इफेक्ट का उपयोग
कंपनी के दूसरे फाउंडर केशव चौधरी ने बताया कि यह ग्राउंड इफेक्ट का फायदा उठाएगा। जब कोई प्लेन पानी या जमीन के बेहद करीब उड़ता है, तो उसके पंखों पर हवा का दबाव बढ़ जाता है, जिससे कम फ्यूल में ज्यादा लिफ्ट मिलती है। इसके कारण प्लेन कम ऊंचाई पर रहते हुए भी तेजी से और कम लागत में उड़ान भर सकेगा। उन्होंने यह भी कहा कि यह समान विमानों की तुलना में सस्ता होगा क्योंकि इसे ज्यादा ऊंचाई पर उड़ान भरने की जरूरत नहीं है, जिससे इसके स्ट्रक्चर को ज्यादा मजबूत बनाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।कम लागत में लंबा सफर
आमतौर पर एक कमर्शियल फ्लाइट को कोलकाता से चेन्नई तक उड़ान भरने के लिए लगभग 2.5-3 टन एविएशन टरबाइन फ्यूल (ATF) की जरूरत होती है, जिसकी लागत 95,000 प्रति किलोलीटर तक होती है। जबकि वॉटरफ्लाई का सी-ग्लाइडर फ्यूल की खपत को कम करके टिकट की कीमतों को बेहद सस्ता बना सकता है।| प्लानिंग | टाइमलाइन |
| 100 किलोग्राम प्रोटोटाइप | 2025 के मिड तक |
| 1 टन वजनी प्रोटोटाइप | 2025 के अंत तक |
| 20-सीटर मॉडल | 2026 में उड़ान भरने की संभावना |