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भारत पर टैरिफ के खिलाफ US में क्यों उठने लगी आवाज? क्या ट्रंप का ‘तुरुप का इक्का’ बना ‘गले का फांस’

अमेरिका ने भारत पर 50 फीसदी टैरिफ लगाया हुआ है. जबकि चीन पर लगाए गए 145 फीसदी टैरिफ को कम करके 30 फीसदी कर दिया गया.

डोनाल्ड ट्रंप का टैरिफ वाला 'तुरुप का इक्का' उनके लिए ही 'गले का फांस' बनते दिख रहा है

अमेरिका ने भारत और चीन समेत कई देशों पर टैरिफ लगाया था. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पहले चीन पर 145 फीसदी टैरिफ लगाया था, जिसके बदले में चीन ने 125 फीसदी टैरिफ ठोक दिया था. फिर दोनों देशों में बातचीत हुई. इसके बाद अमेरिका ने अपना टैरिफ 30 फीसदी कर दिया तो चीन ने 10 फीसदी. लेकिन भारत की ओर से इस टैरिफ के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया गया. डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 50 फीसदी टैरिफ लगाया था. अमेरिका ने भारत पर दबाव बनाने के लिए यह टैरिफ लगाया था. अमेरिका चाहता था कि भारत रूस से कच्चा तेल ना खरीदे. लेकिन भारत ने अमेरिका की यह शर्त मानने से मना कर दिया. अमेरिका को लगा कि टैरिफ का डर दिखाकर भारत पर दबाव बनाया जा सकता है, लेकिन ट्रंप का यह 'तुरुप का इक्का' उनके लिए ही 'गले का फांस' बनते दिख रहा है. अमेरिका में ही इस टैरिफ के खिलाफ आवाज उठने लगी है.

क्यों लगाया था टैरिफ

यूक्रेन युद्ध को लेकर अमेरिका, रूस के खिलाफ है. अमेरिका चाहता है कि रूस को अलग-थलग कर दिया जाए. इसलिए वह भारत पर दबाव बना रहा था कि रूस से कच्चा तेल ना खरीदा जाए. लेकिन भारत ने यह बात नहीं मानी. भारत ने दोहरे मापदंड का आरोप लगाते हुए कहा कि अमेरिका और यूरोप खुद रूस से यूरेनियम के साथ उर्वरक खरीद रहे हैं. साथ ही कई पश्चिमी देश रूस से कच्चा तेल खरीद रहे हैं तो उन्हें क्यों नहीं रोका जा रहा. जब अमेरिका को लगा कि भारत उसके पाले में नहीं आएगा तो उसने पहले भारत पर 25 फीसदी टैरिफ लगाया था. इसके बाद 25 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ भी लगा दिया. लेकिन अमेरिका की यह रणनीति भी काम नहीं आई. भारत ने फिर भी रूस से सस्ती दरों पर तेल खरीदना बंद नहीं किया.

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अब अमेरिका में ही उठने लगी आवाज

अब अमेरिका के तीन सांसदों ने ही इस टैरिफ के खिलाफ आवाज उठाई है. तीनों सांसदों ने टैरिफ के फैसले के खिलाफ प्रस्ताव पेश किया है. अमेरिकी संसद में यह प्रस्ताव सांसद मार्क वीसे, देबोरा रॉस और राजा कृष्णमूर्ति ने पेश किया है. उन्होंने ट्रंप की नीतियों की आलोचना करते हुए कहा कि इस फैसले का असर अमेरिकियों पर ही पड़ रहा है. उन्होंने मांग की है कि भारत पर लगाए गए टैरिफ को हटाया जाए. उनका मुख्य फोकस भारत पर लगाए गए 25 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ पर था. उन्होंने कहा कि इसका सीधा असर आम जनता और बिजनेसमैन पर पड़ रहा है. बता दें, डोनाल्ड ट्रंप ने ‘नेशनल इमरजेंसी’ का ऐलान करके ये टैरिफ लगाया था. तीनों सांसदों ने इसी को हटाने की मांग की है.

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कैसे अमेरिकियों पर पड़ रहा असर

इन सांसदों का कहना है कि यह फैसला अमेरिकी हितों को आगे बढ़ाने के बजाय, सप्लाई चेन में रुकावट बनाता है. उन्होंने कहा कि इससे कर्मचारियों को नुकसान हो रहा है. साथ ही कहा कि इसका असर कंजूमर्स पर पड़ रहा है, क्योंकि उन्हें चीजों का ज्यादा दाम देना पड़ रहा है. इनका यह भी कहना है कि अमेरिका में भारतीय कंपनियों ने काफी ज्यादा निवेश कर रखा है. इसकी वजह से हजारों की संख्या में नौकरी पैदा होती हैं. अगर भारत के साथ संबंध मजबूत नहीं हुए तो यह नुकसान हो सकता है.

प्रस्ताव पेश करने वाले सांसदों में शामिल नॉर्थ कैरोलिना की सांसद देबोरा रॉस ने कहा कि 'व्यापार, निवेश और भारतीय अमेरिकी समुदाय के जरिए नॉर्थ कैरोलिना की इकॉनमी, भारत से जुड़ी हुई है.' उन्होंने कहा कि टैरिफ लगाने का फैसला भारत और अमेरिका के रिश्ते कमजोर करता है.

डरा रही रूस से नजदीकी

रूस के राष्ट्रपति पुतिन हाल ही भारत के दो दिन के दौरे पर आए थे. पुतिन के दौरे को अमेरिका की रणनीति की हार के तौर पर देखा जा रहा है. जहां एक ओर अमेरिका भारत पर रूस से दूरी बनाने के लिए कह रहा है, वहीं भारत रूस के ज्यादा नजदीक जा रहा है. यह पुतिन के दौरे के दौरान देखने को भी मिला. पीएम मोदी प्रोटोकॉल तोड़कर खुद पुतिन का स्वागत करने एयरपोर्ट पहुंचे थे. इसके बाद एयरपोर्ट से दोनों नेता एक ही कार में सवार होकर निकले थे. इसी दौरान की दोनों नेताओं की एक सेल्फी सामने आई थी. इसी सेल्फी का पोस्टर लेकर अमेरिका की एक सांसद कैमलेगर-डव संसद पहुंच गई थीं.

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सांसद ने उस सेल्फी का पोस्टर बनाकर संसद में लहराया और कहा कि अमेरिका ही भारत को रूस के करीब धकेल रहा है. उन्होंने निशाना साधते हुए कहा कि भारत के साथ हमारी साझेदारी को कमजोर अमेरिका ही कर रहा है. उन्होंने यह भी कहा था कि 'भारत के लिए ट्रंप की नीतियां केवल अपना नुकसान करके दूसरे को सबक सिखाना जैसा है. यह अमेरिका के लिए जागने का वक्त है. एक दबाव बनाने वाला साझेदार होने की एक कीमत चुकानी पड़ती है.'

पुतिन के भारत दौरे के बाद यह आवाज उठना उसी संदर्भ में देखी जा रही है.


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