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अदालतों ने जब-जब बचाई अरावली की जान, 8 बड़े फैसलों की कहानी

अरावली पहाड़ियां करीब 1.5 बिलियन वर्ष पुरानी हैं. दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से है.

दिल्ली-NCR के लिए फेफड़ों का काम करने वाली अरावली पर्वत मामला आजकल सुर्खियों में है. इसकी वजह है सुप्रीम कोर्ट की अरावली की नई परिभाषा को मंजूरी. नई परिभाषा में कहा गया है कि जो भी पहाड़ 100 मीटर से ऊंचा होगा, उसे ही अरावली माना जाएगा. ऐसे में अरावली का 90% हिस्सा कानूनी संरक्षण से बाहर हो जाएगा. इसको लेकर राजस्थान समेत कई जगहों पर विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं. प्रदर्शनकारियों का कहना है कि इसकी वजह से अरावली में खनन और अवैध निर्माण और ज्यादा बढ़ेगा. विवाद को बढ़ता देख सुप्रीम कोर्ट ने मामले में स्वत: संज्ञान लिया है. सोमवार को 3 जजों की बेंच इस मामले पर सुनवाई की. बेंच में चीफ जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस जेके महेश्वरी और जस्टिस एजी मसीह शामिल थे. सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर महीने के अपने ही आदेश पर रोक लगा दी. इससे पहले भी पिछले कुछ दशकों में खनन और अवैध निर्माण ने इसे खत्म करने की कोशिश की. लेकिन अदालतों ने बार-बार रक्षक की भूमिका निभाई है. आज जानेंगे वे बड़े मौके, जब कोर्ट और NGT ने अरावली को बचाने के लिए बड़े कदम उठाए…

जंगल सफारी पर रोक: अक्टूबर 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार को प्रस्तावित 'अरावली जंगल सफारी' पर कोई भी काम न करने का निर्देश दिया था. इसे दुनिया में अपने तरह का सबसे बड़ा चिड़ियाघर-सफारी प्रोजेक्ट बताया गया था. इस मामले में भारतीय वन सेवा के पांच रिटायर अधिकारियों और पर्यावरण अधिकार समूह 'पीपुल फॉर अरावली' ने याचिका दाखिल की थी. याचिका पर सुनवाई करते हुए CJI बीआर गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने हरियाणा सरकार को नोटिस जारी किया था. यह जंगल सफारी पार्क अरावली क्षेत्र के 10,000 एकड़ एरिया पर बनना था. याचिका में कहा गया था कि इस प्रोजेक्ट की प्राथमिकता व्यावसायिक हित हैं, जिसका असर दिल्ली-एनसीआर के पर्यावरण पर पड़ेगा.

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हरियाणा सरकार को फटकार : 27 फरवरी 2019 को, हरियाणा विधानसभा ने 'पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम' में संशोधन पारित किया था. इसके तहत अरावली क्षेत्र की हजारों एकड़ भूमि को रियल एस्टेट और अन्य गैर-वन गतिविधियों के लिए खोलने का प्रावधान था. इस संशोधन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी. जिस पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा था कि अगर संशोधन पारित करके अरावली क्षेत्र में ऐसी किसी भी गतिविधि को मंजूरी दी जाती है तो सरकार 'मुसीबत' में होगी.

48 घंटे में अवैध खनन पर रोक : साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने उस वक्त हैरानी जताई थी, जब राजस्थान में अरावली की 31 पहाड़ियां गायब होने का मामला उसके सामने आया था. सुप्रीम कोर्ट ने इसके बाद राज्य सरकार को 48 घंटे के भीतर 115.34 हेक्टेयर क्षेत्र में अवैध खनन पर रोक लगाने के लिए कहा था. उस वक्त सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हालांकि राजस्थान अरावली में खनन से करीब 5,000 करोड़ रुपये की रॉयल्टी कमा रहा था. लेकिन दिल्ली के लाखों लोगों के जीवन को खतरे में नहीं डाला जा सकता.

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दिल्ली रिज पर फैसला : सुप्रीम कोर्ट ने मई 2025 में दिल्ली सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों, दिल्ली नगर निगम आयुक्त और एक प्राइवेट डेवलपर को कारण बताओ नोटिस जारी किया था. वसंत कुंज में एमसी मेहता बनाम भारत संघ मामले के तहत 1996 के निर्देश का उल्लंघन करते हुए रिज में निर्माण कार्य किया जा रहा था, इसके लिए उनसे जवाब मांगा गया था. 1996 के निर्देश में कहा गया था कि रिज वाले इलाके में बिना कोर्ट की मंजूरी के कोई भी अतिक्रमण या दूसरा काम नहीं किया जा सकता. रिज दिल्ली का वो इलाका है, जिसे शहर के 'फेफड़े' के रूप में जाना जाता है.

NGT के निर्देश : हरियाणा में अरावली क्षेत्र में जहां अवैध खनन किया गया था, वहां भूमि सुधार को लेकर कोई कदम नहीं उठाए गए थे. इसके बाद राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एक्शन प्लान देने का निर्देश दिया था. अवैध खनन से इकट्ठा किए गए मुआवजे या जुर्माने का ही इस्तेमाल भूमि सुधार में करना था. याचिका 'अरावली बचाओ नागरिक आंदोलन' ने दाखिल की थी. इसमें NGT को बताया गया था कि सरकार को गुरुग्राम, फरीदाबाद और नूंह में अवैध खनन के लिए साल 2010 से 2022 तक 24,96,04,528 रुपये का जुर्माना मिला है.

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वन भूमि की बहाली : साल 2022 में, पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने अरावली पहाड़ियों के क्षेत्र के तहत मांगर बनी गांव की वन भूमि को वापस ग्राम पंचायत को देने की मांग वाली याचिका सुनने के बाद केंद्र और हरियाणा सरकार को नोटिस जारी किया था. इसमें याचिका दाखिल की थी लेफ्टिनेंट कर्नल (रिटायर) सर्वदमन सिंह ओबेरॉय ने. उन्होंने तर्क दिया था कि फरीदाबाद में मांगर अरावली पहाड़ियों का घर है. मांगर बनी के कुल 4,262 एकड़ में से 3,810 एकड़ कृषि अयोग्य वन भूमि है. यह बताया गया कि इन सभी पहाड़ों को प्राइवेट कंपनियों को बेच दिया गया.

निर्माण कार्यों पर रोक : साल 2020 में, पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार को सख्ती से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि अरावली में कोई निर्माण या संबंधित गतिविधि न हो, सिवाय वहां के जहां सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति या केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से अनुमति ली गई हो.

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अतिक्रमण के खिलाफ एक्शन : 2021 में, सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा और फरीदाबाद नगर निगम को खोरी गांव के पास अरावली वन क्षेत्र में करीब 10,000 घरों को हटाने के अपने आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने गांव के पास अरावली वन क्षेत्र में सभी अतिक्रमणों को हटाने का निर्देश दिया था.


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