Explainer: मूडीज ने चीन की क्रेडिट रेटिंग की आउटलुक स्टेबल से किया निगेटिव, क्या है वजह?
Moody’s cuts China credit outlook to negative: रेटिंग एजेंसी मूडीज ने चीन को बड़ा झटका दिया है। मूडीज ने चीन के क्रेडिट रेटिंग की आउटलुक को स्टेबल से नेगेटिव कर दिया है। इस वजह से पहले से ही आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहे चीन की आर्थिक वृद्धि प्रभावित होने की आशंका है। दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के लिए यह बुरी खबर है। एजेंसी ने इसके लिए धीमी आर्थिक वृद्धि और रियल एस्टेट क्षेत्र में जोखिमों को वजह बताया है। नेगेटिव का मतलब यह है कि चीन की रेटिंग को डाउनग्रेड किया जा सकता है।
जहां एक तरफ भारत की इकोनॉमी 7 प्रतिशत से ज्यादा की दर से बढ़ रही है तो वहीं चीन की अर्थव्यवस्था सुस्त पड़ी हुई है। वहां की आर्थिक वृद्धि दर कम हो रही है और साथ ही प्रॉपर्टी सेक्टर में भी संकट चल रहा है। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज ने उम्मीद जताई है कि चीन की अर्थव्यवस्था 2024-2025 में चार प्रतिशत की सालाना दर से बढ़ेगी, जो दशक के बाकी के सालों में 3.8 प्रतिशत तक रह जाएगी। एजेंसी को उम्मीद है कि चीन की सालाना आर्थिक वृद्धि दर कम होगी और यह इस दशक के अंत यानी 2026-2030 तक 3.8 फीसदी रह जाएगी।
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क्या होती हैं रेटिंग एजेंसियां
बता दें कि क्रेटिट रेटिंग एजेंसियां दुनियाभर में कंपनियों के अलग-अलग बिजनेस मॉडल को रेट करती हैं। ये बताती हैं कि कौन सी कंपनी स्टेबल है और कौन सी नहीं या किसके बॉन्ड खराब हैं। यह तय करती हैं कि बॉन्ड कितना भरोसेमंद है। जो कंपनियां पेमेंट करने में ज्याद सक्षम हैं उनकी रेटिंग बढ़ जाती है, जबकि जिनके पेमेंट करने की उम्मीद कम होती है उनकी रेटिंग घटा दी जाती है।
कब होती है रेटिंग ज्यादा और कम
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां AAA, BBB, CA, CCC, C, D आदि वर्गों में रेटिंग देती हैं। रेटिंग से ही किसी देश या बड़ी कंपनी का मूल्यांकन किया जाता है। अगर किसी देश की आर्थिक स्थिति ठीक है और उसकी उधार लौटाने की क्षमता ज्यादा है तो उसकी रेटिंग ज्यादा होगी। अमेरिका की रेटिंग सबसे ज्यादा होती है क्योंकि उसके पैसे लौटाने की क्षमता ज्यादा है। अमेरिका सबसे बड़ी और मजबूत अर्थव्यवस्था है। मूडीज के अलावा स्टैंडर्ड एंड पूअर और फिच बड़ी रेटिंग एजेंसियां हैं। हाल ही में फिच ने भारत की रेटिंग के आउटलुक को स्टेबल से पॉजिटिव किया था।
किसी देश की रेटिंग ज्यादा होती है तो वहां निवेशक निवेश करने के लिए ज्यादा आकर्षित होते हैं। जो कंपनियां या देश अच्छा परफॉर्म करते हैं उन्हें ज्यादा आसानी से पैसे मिल जाते हैं। रेटिंग कभी भी बढ़ाई और घटाई जा सकती है। रेटिंग देनें में बहुत सी बातों का ध्यान रखा जाता है। कोरोना संकट के बाद से ही चीन में आर्थिक गतिविधियां धीमी हो गई थीं। प्रॉपर्टी सेक्टर के अच्छे दिन आने की वजह से चीन में बड़ी संख्या में फ्लैट बने, लेकिन अब इन तैयार फ्लैट्स के लिए खरीदार नहीं मिल रहे हैं। इस वजह से रियल स्टेट सेक्टर में गिरावट आई है। कंपनियां पैसे वापस नहीं लौटा पाईं हैं। यही वजह है कि चीन की रेटिंग आउटलुक को स्टेबल से निगेटिव किया गया है।
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