Explainer: इजरायल और हमास जंग का मिस्र पर क्या पड़ेगा असर? फिलिस्तीन का करता रहा खुला समर्थन
इजरायल और हमास की लड़ाई का मिस्र पर प्रभाव। फोटो क्रेडिट-एएनआई
Israel Hamas war Explainer: मिस्र और इजरायल के बीच लगातार लड़ाई चल रही है। लेकिन अब दुनिया का ध्यान जंग के बीच मिस्र पर भी हो रहा है। मिस्र ऐसा देश है, जो इजरायल और गाजा से बॉर्डर शेयर करता है। फिलिस्तीन की संकीर्ण पट्टी गाजा 2007 से कट्टरपंथी इस्लामी संगठन हमास के अंडर है। जैसे-जैसे इज़रायली-हमास संकट जारी है, बहुत अधिक ध्यान मिस्र पर केंद्रित हो रहा है। मिस्र इजरायल और गाजा दोनों के साथ सीमा साझा करता है - फिलिस्तीनी क्षेत्र की संकीर्ण पट्टी जो वर्तमान में हमास द्वारा इजरायल के खिलाफ हिंसक हमले के बाद नाकाबंदी के अधीन है, एक कट्टरपंथी इस्लामी संगठन जिसने 2007 से गाजा को नियंत्रित किया है।
मिस्र की जानकारी रखने वाले विशेषज्ञ बताते हैं कि मिस्र के लिए नया युद्ध काफी मायने रखता है। मिस्र की भूमिका का इजरायल और फिलिस्तीन के बीच संतुलनकारी माना जाता है। मिस्र की फिलिस्तीन के मुद्दे के प्रति अपनी प्रतिबद्धता रही है। जिसके पीछे अरब और इस्लामी कारण माने जाते हैं। साफ कह सकते हैं कि भौगोलिक निकटता के कारण गाजा में तनाव का मिस्र के राष्ट्रीय हितों पर सीधा प्रभाव पड़ेगा।
हमेशा तय होती है मिस्र की रणनीति
बता दें कि इजरायल और हमास के बीच जब भी हिंसा होती है, मिस्र की प्रतिक्रिया पहले तय होती है। इस महीने जब हमास ने इजरायल में नरसंहार किया, तो भी मिस्र में संसद सदस्यों और यहां के मीडिया ने इजरायल को हमलावर बताया। वहीं, हमास की पीड़ित के तौर पर दिखाया। साफ है कि मिस्र की फिलिस्तीनियों से एकजुट किसी से छिपी नहीं है। जैसे गाजा में हमास की मदद, घायलों का इलाज अपने यहां और युद्धविराम के लिए मध्यस्थता का ऑफर।
ये कदम मिस्र को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजबूत बनाने की कवायद माने जा रहे हैं। हालांकि ये कतई नहीं कहा जा सकता कि मिस्र इजरायल को अलग-थलग देखना चाहता है। इस्लामी संगठनों के मामले में मिस्र के अपने अनुभव हैं। इजरायल से उसका अपना हित है। मुस्लिम ब्रदरहुड शासन 2013 से मिस्र में बैन किया गया है। इस संगठन को अंतरराष्ट्रीय इस्लामी संगठन माना जाता है। जो 1928 में बनाया गया था। जिसका उद्देश्य मुस्लिम देशों में सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन को बढ़ाना है।
मिस्र भी पार नहीं करना चाहता सीमा
2011 में अरब स्प्रिंग के बाद, ब्रदरहुड ने सत्ता से बेदखल होने से पहले एक साल तक मिस्र में सत्ता संभाली थी। लेकिन मिस्र इसे खतरा मानता है। जिसके बाद हमास और इसमें 2017 में करार होने की बात सामने आई थी कि सिनाई में आतंकवाद से लड़ने में हमास का सहयोग गाजा पर मिस्र की नाकाबंदी को कम करने के साथ पूरा किया जाएगा। इजरायल और मिस्र में मधुर तो नहीं, लेकिन सहयोगात्मक संबंध हैं। दोनों के बीच 1979 में समझौता हो चुका है।
गाजा के साथ मिस्र की भागीदारी की कुछ सीमाएं हैं जिन्हें पार नहीं किया जाएगा। फिलिस्तीनियों के लाभ के लिए इजराइल के खिलाफ मिस्र की कोई सैन्य भागीदारी नहीं होगी। समझौते के बाद ऐसी नीति बनी है। अगर बात करें राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सिसी और अन्य मिस्र के अधिकारियों की, तो वे घोषणाएं कर चुके हैं। जिसके अनुसार मिस्र में गाजावासियों के सामूहिक प्रवेश को भी मंजूरी नहीं दी जाएगी।
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मिस्र ऐसा करता है तो वह सिनाई प्रायद्वीप में अपनी संप्रभुता पर किसी भी अतिक्रमण का विरोध करता है। इसकी प्रमुख चिंता यह है कि विस्थापित फिलिस्तीनी इसके क्षेत्र में स्थायी निवास स्थापित कर सकते हैं। जो संभावित रूप से पहले से ही नाजुक सुरक्षा और आर्थिक स्थिति को कमजोर कर सकता है। यह स्थिति मिस्र के लिए एक बड़ा खतरा है। वहीं, डर ये भी है कि हमास को भारी झटका लगने से गाजा में शासन की कमी, अराजकता और अस्थिरता हो सकती है।
इससे अस्थिरता पैदा होगी और गाजा पट्टी के साथ मिस्र की सीमा पर हथियारों और लड़ाकों की तस्करी को बढ़ावा मिल सकता है। दूसरा सुरक्षा खतरा यह है कि फिलिस्तीनी उग्रवादी समूहों द्वारा सिनाई से इजरायल में आतंकवादी गतिविधियां शुरू की जा सकती हैं। जिससे इजरायल और मिस्र के बीच नाजुक संबंध खतरे में पड़ सकते हैं। युद्ध शुरू होने के बाद से मिस्र गाजा में स्थिति को कम करने के लिए काम कर रहा है और इजरायल, हमास, फिलिस्तीनी प्राधिकरण, अमेरिका, ईरान आदि के साथ बातचीत कर रहा है।
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अरब लीग पहले ही काहिरा में बुलाई जा चुकी है और इस सप्ताह के अंत में मिस्र में एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन होने की उम्मीद है। मिस्र गाजा पट्टी में भोजन और दवा की डिलीवरी के लिए एक मानवीय गलियारा स्थापित करने की भी मांग कर रहा है। संघर्ष का परिणाम कुछ लाभ पहुंचा सकता है। उदाहरण के लिए, मिस्र फिलिस्तीनी प्राधिकरण की वापसी चाहता है, जो गाजा में शासी प्राधिकरण के रूप में कूटनीति और वार्ता में शामिल होने के लिए अधिक इच्छुक है। ऐसा परिदृश्य जहां हमास काफी कमजोर हो गया है, नए विकास का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। जिसमें संभवतः फिलिस्तीनी प्राधिकरण की क्रमिक वापसी भी शामिल है।
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